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...इनकी वजह से हुआ सिलाई मशीन का आविष्कार

अगर इन जनाब ने अपने दिमाग का कमाल ना दिखाया होता, तो फटने वाले कपड़े कभी सिल ना पाते और ना ही हम कभी फैशनेबल कपड़े पहन पाते.

Elias Howe Elias Howe
वंदना भारती
  • नई दिल्ली,
  • 10 सितंबर 2017,
  • अपडेटेड 11:33 AM IST

पहले लोग कपड़े तो जरूर पहनते होंगे लेकिन शायद वे इतने खूबसूरत और फैशनेबल नहीं होते होंगे जितने आज होते हैं. एलायस होवे को दुनिया सिलाई मशीन के आविष्कारक के तौर पर जानती है. आज जितने फैशनेबल कपड़े पहनते हैं ये उन्हीं के आविष्कार की देन हैं. उन्होंने साल 1846 में 10 सितंबर को  सिलाई मशीन का पेटेंट कराया था.

जानते हैं उनके बारे में

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एलायस होवे का जन्म साल 1819 में 9 जुलाई को हुआ था.

उन्होंने साल 1835 में अमेरिका की एक टेक्सटाइल कंपनी में बतौर प्रशिक्षु अपने करियर की शुरुआत की.

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साल 1846 में उन्हें सिलाई मसीन से लॉकस्टिच डिजाइन के लिए पहले अमेरिकी पेटेंट पुरस्कार से नवाजा गया था.

अमेरिका में कोई भी शख्स इस मशीन को खरीदने के लिए तैयार नहीं हुआ. होवे के भाई ने ब्रिटेन तक का सफर तय कर इसे 250 पाउंड में बेचा.

उन्होंने साल 1851 में जिपर (पेंट में लगने वाली चेन) का आविष्कार कर उसे पेटेंट कराया.

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सिलाई मशीन सिलाई की प्रथम मशीन ए. वाईसेन्थाल ने 1755 ई. में बनाई थी। इसकी सूई के मध्य में एक छेद था तथा दोनों सिरे नुकीले थे। 1790 ई. में थामस सेंट ने दूसरी मशीन का आविष्कार किया.

भारत में सिलाई मशीन

भारत में भी उन्नीसवीं शताब्दी के अंत तक मशीन आ गई थी. इसमें दो मुख्य थीं, अमरीका की सिंगर तथा इंग्लैंड की 'पफ'. स्वतंत्रता के बाद भारत में भी मशीनें बनने लग गई जिनमें 'उषा' प्रमुख तथा बहुत उन्नत है.

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भारत में 1935 में कोलकाता (कलकत्ता) के एक कारखाने में उषा नाम की पहली सिलाई मशीन बनाई गई. मशीन के सारे पुर्जें भारत में ही बनाए गए थे. अब तो भारत में तरह-तरह की सिलाई मशीनें बनती हैं जिन्हें विदेशों में भी बेचा जाता है. सिंगर के आधार पर मेरिट भी भारत में ही बनती है.

दो हजार से ज्यादा तरह की मशीनें अलग-अलग कार्यों के लिए इस्तेमाल की जाती है:- जैसे कपड़ा, चमड़ा, आदि सीने की. अब तो बटन टांकने, काज बनाने, कसीदा का सब प्रकार की मशीनें अलग-अलग बनने लगी हैं. अब मशीन बिजली द्वारा भी चलाई जाती है.

 

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