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उनकी अकूत दौलत और ऊंची राजनैतिक पैठ के बारे में किसी को कभी गलतफहमी नहीं रही. उनके काले कारनामों के ढेरों कागजात वर्षों से मुख्यमंत्री कार्यालय, सीबीसीआइडी, आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय में पड़े रहे हैं. इसके बावजूद उनकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा. जब उत्तर प्रदेश में मायावती की सरकार थी, तब वे नोएडा अथॉरिटी का चीफ इंजीनियर थे और उन्होंने जमकर पैसा कमाया. 2012 में अखिलेश यादव की नई सरकार आई और उस पर शिकंजा कसने का नाटक हुआ. सीबीसीआइडी जांच भी हुई, लेकिन उन्हें फटाफट क्लीनचिट मिल गई. साथ ही तोहफे में नोएडा के अलावा ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी और यमुना एक्सप्रेस-वे अथॉरिटी की चीफ इंजीनियरी भी मिल गई. 1,000 करोड़ रु. की दौलत के मालिक बताए जा रहे यादव सिंह पैसा कमाने की वह सरकारी मशीन हैं, जिन्हें सजा देना तो दूर, हाशिए पर डालने की कोशिश भी उत्तर प्रदेश की कोई सरकार नहीं कर सकी. आखिर इतना पैसा कोई अकेले थोड़े ही खाता है, कोई न कोई सियासी आका तो होगा जिसके पास रिश्वत की रकम का बड़ा हिस्सा पहुंचता है.
उनकी बड़ी-बड़ी कोठियों के फोटो देखने को मिले. पसंदीदा महंगी कार की डिक्की से 10 करोड़ रु. नकद निकलते भी लोगों ने देखे. ऐसे में लग रहा है कि एक बहुत बड़ी भ्रष्ट मछली आयकर विभाग के हत्थे चढ़ी है. लेकिन न तो वे अब तक गिरफ्तार हुए हैं और न मौजूदा हालात में उनके गिरफ्तार होने की संभावना है. आयकर विभाग जिन प्रावधानों के तहत कार्रवाई कर रहा है, उसमें यादव सिंह को अपनी काली कमाई पर अधिकतम 30 फीसदी टैक्स चुकाना होगा और इससे ज्यादा कुछ नहीं. उसके बाद वे फिर से सफेदपोश बन जाएंगे.
वे जेल तभी जाएंगे जब नई एफआइआर के बाद प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) उन पर कार्रवाई शुरूकरे. या फिर किसी तरह वे कालेधन पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से बनाए गए विशेष जांच दल (एसआइटी) के रडार पर आ जाएं. इसीलिए यादव सिंह इस कोशिश में लगे हैं कि ईडी की कार्रवाई से पहले उनके खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार विजिलेंस जांच बैठा दे ताकि मामला उनके लिए महफूज लखनऊ के गलियारों से बाहर न जाए. क्योंकि इससे पहले भी 950 करोड़ रु. के नोएडा भूमि घोटाले में वे आरोपी रह चुके हैं. लेकिन तब उन्होंने एक नेता को इस बात के लिए मना लिया कि जांच राज्य सरकार की सीबीसीआइडी करे ताकि मामला आसानी से सुलट जाए. सीबीसीआइडी के एक अधिकारी का कहना है कि इस डील के एवज में उस नेता को नोएडा सेक्टर 37 में एक होटल उपहार में दिया गया था, जिसकी कीमत करोड़ों रु. बताई जाती है.
(मायावती के राज में यादव सिंह की तूती बोलती रही और आरोप लगे और अखिलेश के कार्यकाल में उसे बरी कर दिया गया)
2012 में यादव सिंह के खिलाफ भूमि घोटाले की जांच में शामिल रहे एक पुलिस अफसर कहते हैं, ‘‘उनका सियासी रसूख इस कदर था कि उनके वरिष्ठ अधिकारी भी उनके फैसलों पर उंगली नहीं उठाते थे. इस तरह वे अपने लोगों को बेशकीमती जमीन माटी के मोल आवंटित करते रहे. इससे यह भी इशारा मिलता है कि वे अपने सीनियर अफसरों और राजनैतिक आकाओं को भी फायदा पहुंचा रहे थे.’’ वैसे भी उनका एक दामाद उत्तर प्रदेश में आइएएस अफसर और दूसरा झारखंड में आइपीएस अफसर है. आइएएस अफसर दामाद दो साल पहले ट्रेन में छेड़छाड़ के मामले में निलंबित हो चुका है.
बहरहाल, सत्ता को अपनी उंगलियों पर इस कदर नचाने का गुमान रखने वाला यह शख्स कभी आगरा के गरीब दलित परिवार में जन्मा था. इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमाधारी यादव सिंह ने 1980 में जूनियर इंजीनियर के तौर पर नोएडा अथॉरिटी में नौकरी शुरू की. 1995 में प्रदेश में पहली बार जब मायावती सरकार आई तो 1995 में 19 इंजीनियरों के प्रमोशन को दरकिनार कर सहायक प्रोजेक्ट इंजीनियर के पद पर तैनात यादव सिंह को प्रोजेक्ट इंजीनियर के पद पर प्रमोशन दे दिया गया. साथ ही उन्हें डिग्री हासिल करने के लिए तीन साल का समय भी दिया गया. वर्ष 2002 में यादव सिंह को नोएडा में चीफ मेंटिनेंस इंजीनियर (सीएमई) के पद पर तैनाती मिल गई. अगले नौ साल तक वे सीएमई के पद पर ही तैनात रहे, जो प्राधिकरण में इंजीनियरिंग विभाग का सबसे बड़ा पद था. इस वक्त तक अथॉरिटी में सीएमई के तीन पद थे. यादव सिंह इससे संतुष्ट नहीं थे. उन्होंने कई पद खत्म कराकर अपने लिए इंजीनियरिंग इन चीफ का पद बनवाया. यानी वे जो चाह रहे था, सरकारें उसे पेश करने को हाजिर थीं.
(यादव सिंह की नोएडा वाली कोठी, जहां आयकर विभाग ने छापा मारा)
लेकिन क्यों? इसका जवाब देते हैं बीजेपी सांसद किरीट सोमैया, जिन्होंने नवंबर 2011 में इस मामले को सबसे पहले उठाया था. (देखें-बातचीत) पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट सोमैया ने यादव सिंह की फर्जी कंपनियों और उनके रातोरात बढ़ते टर्नओवर के जो साक्ष्य पेश किए हैं, वे दिखाते हैं कि यादव सिंह पहुंचे हुए खिलाड़ी हैं. उन्होंने बेनामी कंपनियों का जाल बुना है. कुछ सौ रुपए से शुरू होने वाली ये कंपनियां कुछ ही साल में करोड़ों रु. का कारोबार करने लगती हैं. ज्यादातर कंपनियों का मालिकाना हक उनकी पत्नी कुसुमलता, बेटे सनी और बेटियों करुणा और गरिमा के पास है. कोई कंपनी ऐसी नहीं है जिसका मालिक यादव सिंह खुद हों.
इनमें से एक कंपनी है चाहत टेक्नोलॉजी प्रा. लि. इस कंपनी का दफ्तर 612, गोबिंद अपार्टमेंट्स, बी-2, वसुंधरा एन्कलेव, दिल्ली 96 दिखाया गया है. इसके मालिकान में यादव सिंह की पत्नी कुसुमलता भी शामिल हैं. 2007-08 में इस कंपनी की कुल परिसंपत्ति और कारोबार 1,856 रु. और पेड अप कैपिटल 100 रु. थी. लेकिन एक साल में ही इस कंपनी ने ऐसा कारोबार किया कि पेड अप कैपिटल 1 लाख रु. और कंपनी की नेट फिक्स्ड परिसंपत्ति 5.47 करोड़ रु. हो गई. यानी हजार रु. की कंपनी एक साल में पांच करोड़ की कंपनी बन गई. एक और कंपनी है कुसुम गारमेंट्स प्रा. लि., कंपनी का कार्यालय बी-144, न्यू अशोक नगर, दिल्ली 96 है. इस कंपनी में यादव सिंह की पत्नी, दोनों बेटियां और बेटा डायरेक्टर हैं. 2007 में इस कंपनी का टर्नओवर 2,300 रु. और पेड अप कैपिटल 100 रु. थी. अगले ही साल कंपनी की मार्केट वैल्यू 2 करोड़ रु. हो गई. आयकर विभाग के मुताबिक अकेले कुसुमलता के नाम पर 40 से ज्यादा कंपनियां हैं.(देखें ग्राफिक) इनमें से ज्यादातर कंपनियां 2007 में यानी मायावती सरकार बनने के बाद वजूद में आईं. यही नहीं, नोएडा अथॉरिटी के अलग-अलग अफसरों की पत्नियों के नाम पर अब तक 67 कंपनियों का पता चल चुका है. यानी बेनामी कंपनियों का चस्का सबको है.
(आगरा के नंदपुरा, देवरीरोड पर बना यादव सिंह का आलीशान घर)
इन हालात में यादव सिंह चौकन्ना हैं. चाहत टेक्नालॉजी प्राइवेट लि. के डायरेक्टरों में आज सिर्फ राजेंद्र कुमार मनोचा और नम्रता मनोचा का नाम दिख रहा है. यादव सिंह की ज्यादातर कंपनियों के डायरेक्टर के तौर पर इसी दंपती का नाम है. नोएडा में यादव सिंह के बंगले पर जब आयकर विभाग का छापा पड़ा तो 10 करोड़ रु. नकद वहां मौजूद राजेंद्र मनोचा की गाड़ी की डिक्की से ही मिले थे. यादव सिंह ने अपने कारोबार का मुखौटा अब मनोचा को ही बना दिया है. दूसरी तरफ इस तरह की बात भी जोरों से कही जा रही है कि यादव सिंह ने अपनी पत्नी को तलाकशुदा बता रखा है. ऐसे में किसी के गलत काम के लिए वे जिम्मेदार कैसे होंगे?
इस उलझे हुए मामले पर सीबीआइ के पूर्व निदेशक जोगिंदर सिंह कहते हैं, ‘‘यह मामला सरकारी प्रश्रय में चल रहे भ्रष्टाचार का है. यादव सिंह के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज होना चाहिए और फैसला आने तक संपत्ति जब्त कर लेनी चाहिए.’’
लेकिन पहले बीएसपी और अब सपा के करीबी हो गए यादव सिंह के पास कई नजीरें हैं. जिसकी पहली नजीर मायावती के छोटे भाई आनंद कुमार हैं. आनंद के खिलाफ शिकायत पर तब आयकर विभाग ने कार्रवाई की और आनंद की 400 करोड़ रु. की जायदाद जब्त कर ली. लेकिन नवंबर 2013 में आयकर विभाग इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि आनंद से जुड़ी सारी कंपनियों ने उचित टैक्स चुकाया है. इसके बाद आनंद के जब्त किए गए 400 करोड़ रु. उन्हें वापस कर दिए गए. अब यादव सिंह के मामले में भी कार्रवाई उसी दिशा में बढ़ती दिख रही है.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का बयान अंदेशे को और बल देता है. अखिलेश ने इतना कहा, ‘‘आयकर विभाग मामले की जांच कर ही रहा है. जांच करने को ईडी भी है. ये दोनों राज्य सरकार से बड़ी जांच एजेंसियां हैं. आयकर विभाग की रिपोर्ट आने के बाद ही राज्य सरकार यादव सिंह के खिलाफ कोई कार्रवाई करेगी.’’
उधर, आयकर विभाग के सूत्र बताते हैं कि यादव सिंह का पासपोर्ट जब्त कर लिया गया है. इस बात का अंदेशा था कि वे नेपाल या मलेशिया भाग सकता है, जहां कथित तौर पर उनका पैसा लगा है. इस बीच आयकर विभाग को दो संवेदनशील डायरियां भी मिली हैं. पहली डायरी उनके नोएडा वाले घर से मिली, जिसमें उन्होंने अपने गैर-कानूनी लेनदेन का जिक्र किया है. दूसरी डायरी दिल्ली के एक बैंक के लॉकर से मिली. इस डायरी में कुछ कारोबारी घरानों के साथ यादव सिंह के लेनदेन का विस्तृत ब्योरा है.
आइटी निदेशक (इनवेस्टिगेशन) अशोक कुमार त्रिपाठी ने कहा, ‘‘यादव सिंह और उनके शेयर होल्डर्स ने अब तक 50 करोड़ रु. काला धन होने की बात कबूल ली है. जल्द ही हम उनके लॉकर खोलेंगे और वहां से और जानकारी मिलने की उम्मीद है.’’ इसी दबाव का असर है कि यादव सिंह के बड़े भाई कपूर सिंह ने आगरा में उनके घर पहुंचे पत्रकारों पर ही हमला कर दिया. लेकिन ये हमले यादव सिंह के बचाव के लिए नाकाफी हैं.
-साथ में आशीष मिश्र और सिराज कुरैशी