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यूपी में PF घोटालाः समझें क्या है पूरा मामला, कहां फंसे हैं करोड़ों रुपये

इस मामले में उत्तर प्रदेश स्टेट पावर सेक्टर एंप्लॉइज ट्रस्ट और उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन अंशदायी भविष्य निधि ट्रस्ट के तत्कालीन सचिव प्रवीण कुमार गुप्ता और पूर्व निदेशक (वित्त) सुधांशु द्विवेदी को पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया है.

यूपी में PF घोटाला (फाइल फोटो) यूपी में PF घोटाला (फाइल फोटो)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 05 नवंबर 2019,
  • अपडेटेड 4:36 PM IST

  • 2,268 करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम डीएचएफएल में फंसी
  • बिजली विभाग के 45,000 से ज्यादा कर्मचारियों का पैसा फंसा

बिजली विभाग के 45,000 से ज्यादा कर्मचारियों के जीपीएफ और सीपीएफ खातों में जमा 2,268 करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम दीवान हाउसिंग फाइनेंस कंपनी (डीएचएफएल) में फंस गई है. इस मामले में उत्तर प्रदेश स्टेट पावर सेक्टर एंप्लॉइज ट्रस्ट और उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन अंशदायी भविष्य निधि ट्रस्ट के तत्कालीन सचिव प्रवीण कुमार गुप्ता और पूर्व निदेशक (वित्त) रहे सुधांशु द्विवेदी को पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया है.

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क्या है पूरा मामला

वर्ष 2014 में फैसला लिया गया कि उन कंपनियों में उत्तर प्रदेश स्टेट पावर सेक्टर एंप्लॉइज ट्रस्ट और उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन अंशदायी भविष्य निधि ट्रस्ट के पैसे का निवेश किया जाए, जहां से ज्यादा ब्याज मिले. इसके बाद दिसंबर, 2016 से हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों में निवेश शुरू किया गया.

मार्च, 2017 में पावर सेक्टर एंप्लॉइज ट्रस्ट ने करीब 4,121 करोड़ रुपये का निवेश DHFL में किया. यह निवेश दो एफडी के रूप में किया गया. एक एफडी एक साल के लिए और दूसरी एफडी तीन साल के लिए कराई गई. एक साल की एफडी में करीब 1,854 करोड़ और तीन साल की एफडी में करीब 2,268 करोड़ रुपये का निवेश किया गया.

एक साल की FD दिसंबर, 2018 में मेच्योर हो गई, जिसका पैसा ट्रस्ट के पास वापस आ गया. वहीं, तीन साल की एफडी मार्च, 2020 में पूरी होगी. अब यही पैसा कंपनी में फंस गया है, क्योंकि बॉम्बे हाई कोर्ट ने कई संदिग्ध कंपनियों और सौदों से जुड़ा होने की सूचना के मद्देनजर डीएचएफएल के भुगतान पर रोक लगा दी है. अब यही डर है कि कहीं कर्मचारियों की गाढ़ी कमाई फंस न जाए.

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ईओडब्ल्यू की शुरुआती जांच में पता चला है कि पीएफ के निवेश के लिए कोई टेंडर नहीं हुआ था. महज कोटेशन के जरिए डीएचएफएल में 2,268 करोड़ रुपये लगा दिए गए थे. कहा जा रहा कि कर्मचारियों के 2268 करोड़ रुपये न फंसते. डीएचएफएल में पहला निवेश 17 मार्च, 2017 को हुआ. इसके बाद 24 मार्च, 2017 को जब बोर्ड ऑफ ट्रस्ट की मीटिंग हुई जब निवेश किया गया.

मीटिंग में 17 मार्च को हुए निवेश पर सवाल करने के बजाय बोर्ड ऑफ ट्रस्टी की मीटिंग में यह भी प्रस्ताव पास हुआ कि सचिव, ट्रस्ट केस टू केस बेसिस मामले में निदेशक वित्त से अनुमोदन लेंगे. अगर 24 मार्च, 2017 को ही बोर्ड बैठक में इस प्रस्ताव पर सवाल उठ जाता तो शायद बिजली कर्मचारियों के 2268 करोड़ रुपये न फंसते.

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