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अमेरिकी लेखक टॉम क्लैंजी ने लिखा है, “मेरा मानना है कि सेक्स दुनिया की सबसे खूबसूरत, प्राकृतिक और मुकम्मल सुख देने वाली ऐसी चीज है जिसे पैसे से खरीदा जा सकता है.” टॉम की इन पंक्तियों से बॉलीवुड सबक ले चुका है. टॉम ने यह बात भले किसी और संदर्भ में कही हो लेकिन बॉलीवुड का पिछला रिपोर्ट कार्ड देखें तो यह सिद्ध हो जाता है कि भारतीय दर्शकों में भी ऐसा तबका तैयार हो गया है जो पैसा देकर पर्दे पर सेक्स कॉमेडी या इरॉटिक थ्रिलर देखने जा रहा है.
बॉलीवुड में ऐसी पौध भी तैयार हो रही है जो इसी जॉनर की फिल्में ही बनाना चाहती है. फिर वह चाहे प्रीतीश नंदी की बेटी रंगीता नंदी हों या फिर सीनियर फिल्ममेकर इंद्र कुमार या इरॉटिक की क्वीन कही जाने वाली प्रोड्यूसर एकता कपूर. बॉलीवुड में इरॉटिक फिल्मों के जॉनर की लोकप्रियता से ही पोर्न स्टार से हिंदी फिल्मों में नाम बन चुकीं सनी लियोनी ने यह घोषणा कर दी है, “2016 एडल्ट कॉमेडीज का साल रहने वाला है.” उन्होंने यह बात यूं ही नहीं कही है. साल के पहले महीने में ही दो एडल्ट कॉमेडी रिलीज हो रही हैं. 22 जनवरी को क्या कूल हैं हम सीरीज की तीसरी फिल्म और 29 जनवरी को सनी लियोनी की मस्तीजादे.
इस तरह इरॉटिक फिल्मों का एक ऐसा जॉनर तैयार हो चुका है जिसमें न सिर्फ प्रोड्यूसर अच्छा पैसा कमा रहे हैं बल्कि उन कलाकारों के लिए भी यह मलाई खाने जैसा हो गया है, जिनका करियर मेनस्ट्रीम फिल्मों में पटरी पर नहीं आ सका और फिर ऐसे नए लोग भी हैं जिन्हें बॉलीवुड में करियर शुरू करने के लिए मौके की तलाश है.
गिरते करियर को उठान
जिस समाज में सेक्स को वर्जना समझा जाता हो वहां ऐसे कौन-से सितारे हैं जो इस जॉनर की फिल्में कर रहे हैं? इस बात को डेजी शाह की मिसाल से भी समझा जा सकता है. उन्होंने अपनी इरॉटिक थ्रिलर हेट स्टोरी-3 के हिट होने के बाद कहा था, “अगर मुझे जय हो के बाद अच्छे ऑफर मिले होते तो मैंने हेट स्टोरी-3 नहीं की होती.” यह इरॉटिक फिल्मों से जुड़ी वर्जना ही थी, जिसकी वजह से उन्होंने ऐसा कहा क्योंकि उन्होंने बॉलीवुड में अपने करियर की शुरुआत जय हो (2014) से सुपरस्टार सलमान खान के साथ की थी. उसके बाद उन्हें कोई अच्छा मौका नहीं मिल सका. हालांकि उन्होंने यह भी माना, “हिट स्टोरी-3 करना मेरा सही फैसला था.”
कुछ ऐसी ही कहानी जरीन खान की भी थी, जिन्होंने 2010 में वीर में सलमान खान के साथ कपड़ों में दबी-ढकी राजकुमारी का रोल किया था, पर 2015 आते-आते उन्हें हेट स्टोरी-3 में बोल्ड अंदाज को चुनना पड़ा. उन्होंने अपनी मदमस्त अदाओं से दर्शकों के दिलों पर छुरियां चलाईं और हेट स्टोरी फ्रेंचाइजी का कामयाबी का सफर जारी रखा. उन्होंने कहा, “ईमानदारी से कहूं कि अगर मुझे बिना लवमेकिंग या किसिंग वाली फिल्म करनी पड़े तो यह धार्मिक फिल्म ही होगी.”
शिल्पा शुक्ला का भी ऐसा ही मामला है. बी.ए. पास अच्छी फिल्म थी, जिसके साथ जुडऩा किसी भी हीरोइन के लिए चुनौती भरा था. लेकिन चक दे! (2007) से बॉलीवुड में पहचान बनाने वाली शिल्पा को फिर से खुद की पहचान कायम करने का मौका बी.ए. पास की सेक्सी आंटी से ही मिला. तुषार कपूर, वीरदास और आफताब शिवदासानी ऐसे ही नाम हैं जो एडल्ट कॉमेडीज के दम पर ही बॉलीवुड में अपना सफर जारी रखे हुए हैं. तुषार कपूर क्या कूल हैं हम सीरीज की दो सफल फिल्में कर चुके हैं. आफताब की किस्मत भी एडल्ट कॉमेडी ग्रैंड मस्ती (2013) से दोबारा क्लिक हुई और इस साल उनकी दो एडल्ट कॉमेडी क्या कूल हैं हम-3 और ग्रेट ग्रैंड मस्ती रिलीज होंगी. इस तरह यह जॉनर करियर की नई राहें खोल रहा है. हेट स्टोरी-3 के डायरेक्टर विशाल पांड्या कहते हैं, “हेट स्टोरी की हर फिल्म में ऐसी हीरोइनों को चुना गया जिन्होंने इससे पहले इस जॉनर में हाथ नहीं आजमाया था. कंटेंट की वजह से फिल्में चली भीं.” वे मानते भी हैं कि इमेज के चक्कर में बड़े सितारे इन फिल्मों में हाथ आजमाने से बचते हैं.
डेजी शाह ने हाल ही में कहा था, “भारतीय फिल्मों में सेक्स पिछले दस साल से बिक रहा है. अगर फिल्म में बड़ा सितारा न हो तो फिल्म को चलाने के लिए ऐसे मसाले की जरूरत है. लोग थिएटरों में मनोरंजन के लिए आ रहे हैं, वे मोटा पैसा खर्च कर रहे हैं और उन्हें बोल्ड कंटेंट की जरूरत है.” डेहली बेली में इमरान खान को छोड़ दिया जाए तो पूरी स्टारकास्ट एकदम नई थी. इसी तरह अपने बोल्ड महिला पात्रों की वजह से हिट होने वाली हेट स्टोरी में पाउली डैम ने बोल्डनेस की हदें पार की थीं तो दूसरे पार्ट में सुरवीन चावला ने यह बीड़ा उठाया. इस तरह ग्रैंड मस्ती की सभी महिला पात्र चाहे वह करिश्मा हों या फिर ब्रूना अब्दुल्ला या फिर मरियम-बॉलीवुड के लिए बहुत नई ही थीं.
ग्रेट ग्रैंड मस्ती की हीरोइनें सोनाली राउत और उर्वशी रौतेला भी बॉलीवुड में एक फिल्म ही पुरानी हैं. सोनाली ने हिमेश रेशमिया की एक्सपोज में खूब एक्सपोज किया था, और सुर्खियां बटोरी थीं. एकता कपूर के प्रोडक्शन की एक और फिल्म ट्रिपल एक्स के स्टार्स के कॉन्ट्रेक्ट में तो न्यूडिटी क्लॉज तक जोड़ दी गई है. उधर, विक्रम भट्ट की लव गेम्स में पत्रलेखा (सिटीलाइट्स) और तारा अलिशा बेरी (मस्तराम) ने सिर्फ एक-एक फिल्म ही की है. एक फिल्म विशेषज्ञ कहते हैं, “अक्सर बड़े सितारे इरॉटिक जॉनर से दूरी बनाकर रखते हैं, उन्हें लगता है कि इस तरह की फिल्म से वे टाइपकास्ट हो सकते हैं, और उनसे आगे भी इसी तरह की मांग की जा सकती है जबकि युवा सितारों को ब्रेक चाहिए होता है. अगर डायरेक्टर बड़ा है. बैनर बड़ा है तो वे इस तरह का जोखिम उठा लेते हैं.”
विदेशी चमड़ी का जादू बरकरार है. भारतीयों को हमेशा से विदेशी बालाओं का क्रेज रहा है. बॉलीवुड इस बात का सबसे बड़ा गवाह है, जहां हर दूसरे या तीसरे शुक्रवार ऐसी फिल्म रिलीज होती है जिसमें कोई नई विदेशी बाला लॉन्च होती है. यही हसीनाएं इरॉटिक फिल्मों का चेहरा बन रही हैं. जिस्म-2 या मस्तीजादे की सनी लियोनी या फिर क्या कूल हैं हम-3 की मंदाना करीमी और ग्रैंड मस्ती में ब्रूना अब्दुल्ला (ब्राजीलियन मॉडल) और मरियम जकरिया (स्वीडिश-ईरानी) ने अपनी अदाएं दिखाई हैं. मस्तीजादे की प्रोड्यूसर रंगीता नंदी भी अपनी फिल्म की यूएसपी सनी लियोनी को ही बताती हैं.
लगभग दो दशक पहले तक मॉर्निंग शो इरॉटिक फिल्में देखने के ठिकाने होते थे. पर इंटरनेट के कदम रखने के साथ ही यह सामग्री लोगों की जद में आ गई और हॉलीवुड की अमेरिकन पाइ से लेकर अन्य भाषाओं की बोल्ड फिल्में सभी के लिए उपलब्ध हो गईं. ऐसे में बॉलीवुड में भी आजमाइश शुरू हुई. शुरू में मेनस्ट्रीम हीरोइनों ने इसमें हाथ आजमाने की कोशिश भी की.
इसकी मिसाल मनीषा कोइराला की एक छोटी सी लव स्टोरी (2002) है. जिसमें एक किशोर अपने से दोगुनी उम्र की लड़की के मोहपाश में फंस जाता है. उधर, बिपाशा बसु ने जिस्म (2003) से चमत्कार किया और जूली (2004) में नेहा धूपिया ने भी दर्शकों की कल्पना को पंख लगा दिए. हालांकि बड़े सितारों के साथ खतरा टाइपकास्ट होने का बन जाता है, जिसकी शिकार नेहा धूपिया आगे चलकर हुईं. दो लड़़कियों के बीच समलैंगिक संबंधों पर बनी गर्लफ्रेंड (2004) कमजोर स्क्रिप्ट की वजह से फ्लॉप रही जबकि इसी साल मलिका सहरावत की द अनफेदफुल की रीमेक मर्डर सुपरहिट रही.
2011 आते-आते एडल्ट कॉमेडीज के इस जॉनर ने डेहली बेली के साथ मजबूत कदम जमा लिए. यह तथ्य शुरू से ही कायम रहा कि कमजोर कहानी या फूहड़ता के दम पर फिल्म नहीं चलाई जा सकती. रंगीता भी इससे इत्तेफाक रखती हैं, “मैंने मिलाप झवेरी को फिल्म की स्क्रिप्ट सुनने के लिए 10 मिनट दिए थे. उन 10 मिनट में मेरा हंस-हंसकर बुरा हाल हो गया. अगर फिल्म खराब होगी तो लोग एक ही बार देखेंगे लेकिन कहानी में दम होगा तो बार-बार देखेंगे.”
तभी तो 2015 में रिलीज हुई गुड्डू की गन जैसी कमजोर कहानी वाली फिल्म बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिर गई जबकि हंटर (2015) ने दर्शकों का दिल जीता. कहते हैं “जो दिखता है वह बिकता है.” यह इस जॉनर के बारे में सही है और ऐसा हो भी रहा है. पर इसे टिकने के लिए मजबूत कहानी का दामन थामे रखना होगा.