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EVM में गड़बड़ी का आरोप कोरी कल्पना है: एम एस गिल

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त इस वाई कुरेशी तो की बार कह चुके हैं कि ईवीएम में छेड़छाड़ की बात ही बकवास है. जब जौहर दिखाने की बारी आती है तो कोई आगे नहीं आता. जबकि समय के मुताबिक ईवीएम और VVPAT की सुरक्षा को भी अपडेट रखा जाता है.

फाइल फोटो फाइल फोटो
संजय शर्मा/रोहित
  • नई दिल्ली,
  • 18 दिसंबर 2017,
  • अपडेटेड 6:24 AM IST

कोर्ट से लेकर चीफ इलेक्शन कमिश्नर तक ईवीएम की अभेद्य सुरक्षा की तस्दीक कर चुके हैं. पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त चाहे एसवाई कुरैशी हों या डॉ मनोहर सिंह गिल या फिर नवीन चावला या वीएस सम्पत. सबने एकसुर में ईवीएम पर विश्वास जताया. रही बात अदालतों की तो सुप्रीम कोर्ट ने भी एक नहीं तीन-तीन बार याचिकाकर्ताओं की दलीलें और जिरह सुनी, एक्सपर्ट्स की राय ली और फैसला दिया कि ईवीएम अपराजेय है.

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पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त इस वाई कुरेशी तो की बार कह चुके हैं कि ईवीएम में छेड़छाड़ की बात ही बकवास है. जब जौहर दिखाने की बारी आती है तो कोई आगे नहीं आता. जबकि समय के मुताबिक ईवीएम और VVPAT की सुरक्षा को भी अपडेट रखा जाता है. 1997 में पहली बार ईवीएम से तमिलनाडु विधानसभा चुनाव कराने वाले पूर्व मुख्यचुनाव आयुक्त डॉ मनोहर सिंह गिल ने दोटूक कहा ईवीएम तब भी सबसे ज्यादा सुरक्षित थी और अब भी. सवाल उठाने वाले बदल गए. इन्हीं ईवीएम ने जब सत्ता में बैठाया तो ईवीएम अच्छी और सच्ची. हार गए तो ईवीएम बेकार और झूठी.

गिल ने कहा जब वो मुख्य चुनाव आयुक्त थेतो 1997 में पहली बार ईवीएम से चुनाव हुए थे. तब जयपुर में ईवीएम की गुणवत्ता औरजनता में मुहर बनाम मशीन पर प्रतिक्रिया जानने खुद सड़कों नुक्कड़ों पर तम्बू लगाकर महिलाओं को बुला-बुलाकर कहते- बगल के तम्बू में जाकर नए तरीके से वोट डालकर आओ. फिर उनसे अनुभव जानते. इन 20 सालों में ईवीएम की गुणवत्ता और सुरक्षा और मजबूत हुई. हरेक CEC और आयोग ने इसमें कुछ ना कुछ इजाफा किया. अब तो VVPAT का फीचर भी जुड़ गया. पर चुनाव में हारने वाली पार्टी और नेता इस पर सवाल उठा रहे हैं.

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जबकि मेक इन इंडिया का सबसे जोरदार ब्रांड ये ईवीएम हैं. अब तो इतनी तादाद में हैं कि किसी अफसर को पता नहीं होता कि कौन सी ईवीएम किधर जानी है. ऐसे में कोई गड़बड़ कैसे करेगा. जबकि निर्माता कम्पनी एक बार प्रोग्रामिंग करने के बाद खुद भी चिप में बदलाव नहीं कर सकती. ये दरअसल बर्नसीडी और डीवीडी जैसा ही होता है. इसमें रीराइट जैसा कोई विकल्प है ही नहीं. ऐसे में गड़बड़ी का आरोप कोरी कल्पना है.

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त गिल को जब पता चला कि कांग्रेस नेता और देश के पूर्व कानूनमंत्री एम वीरप्पा मोइली ने ईवीएम का समर्थन किया है तो पहले उन्हें हैरानी हुई और फिर बेइंतहा खुशी.

गिल ने कहा जिन्हें ईवीएम में खामी दिखती है वो कचहरी जाएं. कचहरी का आदेश होगा तो शिकायतकर्ता को ईवीएम खोलने और खेलने को भी मुहैया करा दी जाएगी. वो जोरआजमा कर देख लें. कामयाब हुए तो आयोग ईवीएम को और ज्यादा सुरक्षित कर देगा. वरना अभेद्य सुरक्षा तो है ही.

नैनीताल हाईकोर्ट के जज राजीव शर्मा और शरद शर्मा के खण्डपीठ ने अपने 17 पेज के आदेश के पांचवें पन्ने में साफ लिखा है कि चुनाव आयोग की ईवीएम को हैक नहीं किया जा सकता है. आयोग की औरेश रिलीज और अन्य सबूतों के गहन अध्ययन के बाद अदालत को ये यकीन है कि ईवीएम पूरी तरह सुरक्षित हैं. देश में ही इनकी चिप बनती है और वन टाइम प्रिंटबल है. माइक्रो नम्बर सिस्टम के साथ कई ऐसे उन्नत सिस्टम इनमें लगे हैं कि ये अभेद्य हो जाती हैं. यहां तक कि इन्हें कहीं ले जाते वक्त या किसी भी तरीके से हैक नहीं किया जा सकता।

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अपने 17 पेजी आदेश के आखिरी पन्ने पर लिखा है कि कोर्ट का दायित्व और ज़िम्मेदारी है कि संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा बनाए रखने में मदद करे. हमें अभिव्यक्ति की आजादी होने का मतलब ये कतई नहीं है कि संवैधानिक संस्थाओं पर बेवजह छींटाकशी करें. उनकी गरिमा से खिलवाड़ करें.

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