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'हिंदुस्तान में कहीं भी, कोई जनजाति नहीं करती महिषासुर की पूजा'

टीआरआई के पूर्व निदेशक उरांव ने बताया, 'सांख्यिकी संबंधी किसी भी किताब में महिषासुर से जनजाति के लोगों का कोई संबंध नहीं पाया गया है.'

चित्रकार लाल रत्नाकर द्वारा बनाई गई महिषासुर की तस्वीर चित्रकार लाल रत्नाकर द्वारा बनाई गई महिषासुर की तस्वीर
स्‍वपनल सोनल/IANS
  • रांची,
  • 28 फरवरी 2016,
  • अपडेटेड 3:34 PM IST

दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में महिषासुर शहादत दिवस मनाए जाने को लेकर संसद में गरमा-गरमी है. इस बीच झारखंड के एक जनजातीय विद्वान प्रकाश उरांव ने कहा है कि देवी दुर्गा ने जिसे मारा था और जिसे सब दानव के रूप में जानते हैं, वह भारत की किसी जनजाति के लिए प्रेरणादायी या पूज्य नहीं रहा है.

झारखंड सरकार की संस्था ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट (टीआरआई) के पूर्व निदेशक उरांव ने बताया, 'सांख्यिकी संबंधी किसी भी किताब में महिषासुर से जनजाति के लोगों का कोई संबंध नहीं पाया गया है.' पूर्व निदेशक ने कहा कि एक जानकार होने के नाते खुद जनजातीय समुदाय से होने के बावजूद उन्होंने ऐसा कभी नहीं सुना कि महिषासुर किसी भी आदिवासी समुदाय के लिए एक प्रेरणास्रोत रहा.

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जनजातीय लोग अहिंसक और भोले-भाले
उन्होंने कहा, 'ऐसा लगता है कि यह कुछ लोगों का नया पैदा किया हुआ है. मैं झारखंड में ही पला-बढ़ा हूं. मैं जनजातीय हूं, लेकिन कभी नहीं सुना कि महिषासुर किसी भी जनजातीय समुदाय के लिए प्रेरणा है.' उरांव ने आगे कहा, 'वास्तव में असुर एक जनजाति है, जिसका पेशा लोहा गलाना है. लेकिन उनका भी महिषासुर से कोई लेना-देना नहीं है.' उन्होंने कहा कि जनजातीय लोग अहिंसक और भोले-भाले होते हैं.

स्मृति ईरानी ने राज्यसभा में दिया था हवाला
बता दें कि महिषासुर और दुर्गा को लेकर विवाद तब शुरू हुआ जब केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने गुरुवार को राज्यसभा में इसका हवाला दिया. उन्होंने कहा था कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में महिषासुर शहादत दिवस मनाया जाता है. उन्होंने यह भी कहा था कि इस तरह के कार्यक्रमों के आयोजक देवी दुर्गा के खिलाफ अपमानजनक संदर्भो का हवाला देकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग कर रहे हैं.

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