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EXCLUSIVE: पश्चिम बंगाल में बच्चे पढ़ेंगे ममता बनर्जी और TMC नेताओं पर चैप्टर

स्कूल पाठ्यपुस्तकों से भगवान राम के संदर्भ को हटाने के फैसले के बाद ममता बनर्जी सरकार ने एक और विवादित कदम उठाया है. इस बार सरकार ने राज्य में इतिहास की किताबों में तृणमूल कांग्रेस के एक दर्जन से ज्यादा नेताओं के नाम जोड़ने का फैसला किया है.

टीएमसी नेता ममता बनर्जी टीएमसी नेता ममता बनर्जी
इंद्रजीत कुंडू/खुशदीप सहगल
  • कोलकाता,
  • 02 फरवरी 2017,
  • अपडेटेड 10:03 PM IST

स्कूल पाठ्यपुस्तकों से भगवान राम के संदर्भ को हटाने के फैसले के बाद ममता बनर्जी सरकार ने एक और विवादित कदम उठाया है. इस बार सरकार ने राज्य में इतिहास की किताबों में तृणमूल कांग्रेस के एक दर्जन से ज्यादा नेताओं के नाम जोड़ने का फैसला किया है.

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इंडिया टुडे के पास पश्चिम बंगाल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन की ओर से तैयार नई पाठ्यपुस्तक की ड्राफ्ट कॉपी है जिसमें सिंगुर जमीन आंदोलन पर अध्याय जोड़ा गया है. बता दें कि इसी आंदोलन की वजह से ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस की पश्चिम बंगाल में सरकार बनाने की मुहिम को तेजी मिली थी. 'अतीत ओ एत्झयो' नाम की ये पाठ्यपुस्तक कक्षा आठ के लिए प्रकाशित की जा रही है. इसे अगले शैक्षणिक सत्र से पढ़ाया जाएगा.

सिंगुर संबंधी अध्याय मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खुद के संदर्भ से शुरू होता है. फिर इसमें तृणमूल कांग्रेस के अन्य नेताओं- पार्थ चटर्जी, मुकुल रॉय, पुर्णेंदु बासु, अशिमा पात्रा, डोला सेन, बृत्या बासु, अर्पिता घोष, सोवन चटर्जी, फिरहद हकीम, सोवनदेब चटर्जी, सुब्रता बक्शी, रबिंद्रनाथ भट्टाचार्जी, बेचाराम मन्ना आदि के भी नाम आते हैं.

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अध्याय में सिंगुर आंदोलन को 'ऐतिहासिक' बताते हुए ममता बनर्जी को ऐसा नेता बताया गया है जिन्होंने जमीन अधिगृहण विरोधी आंदोलन को संगठित किया और किसानों के संघर्ष को दिशा दी. अध्याय में कहा गया है कि आंदोलन ने बहुफसली जमीन पर लखटकिया कार प्रोजेक्ट के लिए फैक्ट्री स्थापित करने की खराब कोशिश को रोक दिया जिसके पीछे विकास के लिए औद्योगिकरण और रोजगार सृजन का नाम लिया जा रहा था.

राज्य सरकार की ओर से पाठ्यपुस्तकों को रिडिजाइन करने के लिए जिम्मेदार एक्सपर्ट कमेटी के चेयरमैन अवीक मजूमदार ने इस कदम को सही ठहराया है. मजूमदार ने कहा, 'अगर उन्होंने आंदोलन की अगुआई की है तो ये वैधानिक है कि उन्हें शामिल किया जाए. क्या हम किसी को इसलिए शामिल नहीं करें कि वो एक राजनीतिक दल से संबंध रखते हैं.'

मजूमदार के मुताबिक पाठ्यक्रम कमेटी ने ये संतुलन बनाने की पूरी कोशिश की है कि पुराने जमीन आंदोलनों को भी बनाए रखा जाए. इस संबंध में मजूमदार ने तेभागा आंदोलन का नाम गिनाया. मजूमदार के मुताबिक सिंगुर को भारत के अन्य जमीन आंदोलनों की कड़ी मे शामिल किया गया है. इस आंदोलन के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट का फैसला सामने आया जिसने शताब्दी पुरानी जमीन अधिगृहण व्यवस्था को बदल दिया.

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बीते साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल की पूर्व लेफ्ट फ्रंट सरकार के उस फैसले को रद्द कर दिया था जिसमें टाटा नैनो प्रोजेक्ट के लिए जमीन अधिगृहीत की गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को ऐसे किसानों को जमीन वापस करने का आदेश भी दिया था जिन्होंने प्रोजेक्ट का विरोध करते हुए अपनी जमीन नहीं देने की इच्छा जताई थी. सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ममता बनर्जी के लिए ऐतिहासिक राजनीतिक जीत बताया गया था. बीते साल आने सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद से ममता बनर्जी सरकार को सिंगुर अध्याय को पाठ्यक्रम से जोड़ने का विचार आया था. यहां ये बताना दिलचस्प होगा कि राजस्थान में वसुंधरा राजे की अगुआई वाली बीजेपी सरकार ने भी हाल में ऐसा ही फैसला किया. वसुंधरा राजे सरकार ने 12वीं कक्षा की अर्थशास्त्र की पुस्तक में नोट बंदी और कैशलेस अर्थव्यवस्था पर चैप्टर जोड़ने का फैसला किया. इसे अगले शैक्षणिक सत्र से पढ़ाया जाएगा.

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