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डर्टी पिक्चर फेम डायरेक्टर मिलन लूथरिया बॉलीवुड में अपनी कहानियों की ताजगी और सिनेमाई कला के लिए जाने जाते हैं. कहानियों का उनका ट्रीटमेंट भी दर्शकों के साथ-साथ क्रिटीक्स को चौंकाता है. 'वंस अपॉन ए टाइम न मुंबई दोबारा' की रिलीज के बाद उन्होंने इस फिल्म से जुड़े कुछ अनुभव साझा किए. प्रस्तुत है उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश-
आजकल बॉलीवुड में सीक्वल का चलन काफी बढ़ गया है. क्या ये बेवजह कहानी को खींचने की कोशिश नहीं है?
हर फिल्म की कहानी में सीक्वल की गुंजाइश नहीं होती. 'वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई' ऐसे शॉट के साथ खत्म हुई थी, जहां फिल्म खत्म होने के बाद भी कहानी खत्म नहीं होती. अपने पीछे कई सवाल छोड़ जाती है.
पहले से सोच रखा था कि वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई का सीक्वल बनाएंगे?
बिलकुल नहीं. मैंने अपनी किसी फिल्म का सीक्वल नहीं बनाया. जब पहला पार्ट बना रहा था, तब भी नहीं सोचा था. उसके बाद डर्टी पिक्चर बनाने में व्यस्त हो गया. सीक्वल का आइडिया डर्टी पिक्चर के दौरान ही आया. पहली फिल्म को दर्शकों ने काफी पसंद किया था. एक फ्रेंड ने बातों-बातों में सीक्वल का आइडिया दे डाला. इस पर काफी सोचा. आइडिया मुझे भी इंटरेस्टिंग लगा. डर्टी पिक्चर खत्म होने के बाद इस फिल्म की स्क्रिप्ट और कास्टिंग पर काम शुरू कर दिया.
पहला पार्ट बनाने के बाद आपने कहा था कि रणदीप हुडा इस फिल्म की डिसकवरी हैं. अजय देवगन और कंगना राणाउत की भी काफी तारीफ की थी. लेकिन सीक्वल में पुराने लोगों को जगह नहीं मिली. क्यों?
नई कहानी की थीम, लोकेशन और स्क्रिप्ट बिलकुल नए चेहरों की डिमांड कर रही थी. चरित्र वही थे, लेकिन वक्त, जगह और संदर्भ बदल गए थे. हालांकि फिल्म बनाने के दौरान अजय की कमी खली क्योंकि हमारी केमेस्ट्री बहुत कमाल की है. लेकिन हर नए काम के साथ नए अनुभव और नई चुनौतियां जुड़ी होती हैं. नयापन हमेशा कमाल का होता है. पहले से तय रास्तों पर चलने में कोई चैलेंज नहीं.
सीक्वल में अंडरवर्ल्ड मुंबई से उठकर दुबई पहुंच गया है?
हां. लेकिन सिर्फ दुबई तक सीमित नहीं है. मुंबई और बॉलीवुड की गलियों से अंडरवर्ल्ड का कनेक्शन बना हुआ है.
हालांकि फिल्म हिट रही है, लेकिन सीक्वल को पहली फिल्म की तरह दर्शकों रिस्पांस नहीं मिला?
ऐसा नहीं है. दूसरे पार्ट ने भी अच्छी कमाई की है. फिल्म को अच्छे रिव्यू मिले हैं और दर्शकों को भी फिल्म पसंद आई है. दोनों फिल्मों की तुलना नहीं की जा सकती. दोनों अपने आप में इंडीविजुएल क्रिएटिव अनुभव हैं.
अक्षर कुमार के साथ यह आपकी पहली फिल्म है. उनके साथ काम का अनुभव कैसा रहा?
शानदार. अक्षय में गजब का अनुशासन है. हर बात को बारीकी से सुनना और समझना उनकी खासियत है. एक ओर काम को लेकर बहुत गंभीर हैं तो दूसरी ओर हंसी-मजाक और मस्ती करने में भी पीछे नहीं रहते. सिर्फ मैं ही क्यों, पूरे क्रू को उनके साथ काम करने में बहुत मजा आया.
एकता कपूर के साथ आपकी जोड़ी जम गई है. उनके साथ यह तीसरी फिल्म बनाई है आपने.
एकता बहुत प्रोफेशनल हैं और बिजनेस को लेकर उनकी नजर बहुत पारखी है. वह इस बात का अनुमान लगा लेती हैं कि कौन सी कहानी दर्शकों को पसंद आएगी. लेकिन साथ ही क्रिएटिव मामलों में बहुत हस्तक्षेप भी नहीं करतीं. वह डायरेक्टर को पूरी आजादी के साथ काम करने का मौका देती हैं. कभी-कभी तकरार भी होती है, लेकिन उसमें भी मजा है.
क्या आप आज भी अपने गुरु महेश भट्ट के साथ अपनी सभी फिल्मों का फर्स्ट डे, फर्स्ट शो देखते हैं?
हां. अभी तक तो हमारी रिकॉर्ड बना हुआ है. महेश भट्ट कितना भी व्यस्त हों, साथ फिल्म देखने के लिए वक्त निकाल ही लेते हैं.
लेकिन अपने गुरु महेश भट्ट की तरह की फिल्में नहीं बनाते?
मैं किसी के भी तरह की फिल्में नहीं बनाता. मैं अपनी तरह की फिल्में बनाता हूं. कच्चे धागे से लेकर वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई दोबारा तक मेरी हर फिल्म अलग है.
अब फिल्म रिलीज हो गई है तो फ्री होकर क्या कर रहे हैं?
फ्री तो मैं कभी नहीं होता. फुरसत में गोल्फ खेलता हूं या दोस्तों के साथ बैठकी. लेकिन तब भी दिमाग में फिल्में ही चलती रहती हैं.
आने वाली फिल्म कौन-सी है?
यह सवाल कुछ ज्यादा ही जल्दी नहीं है. थोड़ा इंतजार करिए.