
इंग्लिश प्रीमियर लीग की टीम वेस्ट हैम यूनाइटेड के लिए खेल कर इतिहास बनाने वाली इंडियन गोलकीपर अदिति चौहान आज खेलों की दुनिया में अच्छा नाम कमा चुकी हैं. लेकिन क्या आप यकीन करेंगे कि अदिति ने कभी भी फुटबॉलर बनने का सपना नहीं देखा था.
कराटे और वॉलीबॉल खेलती थीं
जी हां ये सच है अदिति ने कभी फुटबॉलर बनने का सपना नहीं देखा था. वैसे तो अदिति ने काफी छोटी उम्र से ही खेलों में भाग लेना शुरू कर दिया था लेकिन वो फुटबॉल नहीं खेलती थीं. बास्केटबॉल और कराटे की अच्छी प्लेयर अदिति कराटे में ब्लैक बेल्ट धारक होने के साथ ही स्कूल लेवल की बास्केटबॉल टीम में भी अहम सदस्य थी. लेकिन जब उसने एक बार फुटबॉल खेलना शुरू किया तो सब पीछे छूटता चला गया.
शुरू में हुई थी दिक्कतें
शुरुआत में तो जब अदिति ने फुटबॉल में करियर बनाने की सोची तो घरवालों, खासतौर से पापा का यही मानना था कि अदिति को फुटबॉल नहीं खेलना चाहिए. क्योंकि टेनिस के अच्छे प्लेयर रह चुके अदिति के पापा अभयवीर चौहान और यूनिवर्सिटी लेवल पर नेशनल रिकॉर्ड ब्रेकर शॉटपुटर रह चुकी अदिति की नानी को पता था कि यहां खेलों में बहुत अच्छा भविष्य नहीं है, खासतौर से टीमगेम्स में.
गोलकीपिंग कोच नहीं मिला
खैर पापा तो मान गए लेकिन अब समस्या थी गोलकीपिंग कोच की. आज से 8-9 साल पहले हमारे देश में गोलकीपिंग कोच मिलना लगभग नामुमकिन ही था. अदिति के पापा के मुताबिक, 'जब इसने कहा कि ये फुटबॉलर बनना चाहती है तो हमें लगा कि वक्त बर्बाद कर रही है कोई फ्यूचर नहीं है. वैसे भी इसमें तमाम परेशानियों के साथ सबसे बड़ी दिक्कत तो ये थी कि यहां कोई गोलकीपिंग कोच ही नहीं मिलता था. हमने काफी कोशिशें की लेकिन गोलकीपिंग का स्पेश्लाइज कोच नहीं मिला. फिर हमने सोचा कि ट्रेनिंग शुरू करते हैं धीरे-धीरे मैनेज हो जाएगा और यही सोचकर हम प्रैक्टिस के लिए अदिति को लेकर रोज द्वारका से जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम आने लगे.'
कौन ले जाए रोज स्टेडियम
यहां से शुरू हुई अदिति की फुटबॉल जर्नी, जर्नी के शुरू होते ही एक बड़ी दिक्कत सामने आ गई. और ये दिक्कत थी कि अदिति के एसपीजी ऑफिसर पापा पीएम की सिक्योरिटी में थे और मम्मी टीचर थीं जिसके चलते अदिति को रोज-रोज प्रैक्टिस के लिए लाने-ले जाने में बहुत दिक्कत होती थी. एक बार को तो लगा कि अदिति की फुटबॉल यात्रा अब थम जाएगी लेकिन तभी उसकी नानी जो कि एक बड़े एनजीओ की मुरादाबाद शाखा की फाउंडर चेयरमैन हैं. वो आगे आईं और अदिति के लिए उन्होंने दिल्ली आकर उसे रोज ट्रेनिंग के लिए लाने-ले जाने का जिम्मा उठा लिया.
मिला कड़ी मेहनत का फल
जल्द ही अदिति और उसकी फैमिली को मेहनत के नतीजे भी दिखने लगे और अदिति ने पहले दिल्ली अंडर-19 और फिर इंडिया अंडर-19 वीमेंस टीमों के लिए खेलने के बाद इंडियन नेशनल फुटबॉल टीम में अपनी जगह बनाई. अदिति के करियर में सबसे बड़ा मोड़ तब आया जब उन्होंने इंग्लैंड की लॉन्जबर्ग यूनिवर्सिटी में स्पोर्ट्स मैनेजमेंट में डिप्लोमा के लिए दाखिला लिया. लॉन्जबर्ग में पढ़ने के साथ ही अदिति यूनिवर्सिटी की फुटबॉल टीम के लिए भी खेलने लगीं और वहां से अदिति को मौका मिला वेस्ट हैम यूनाइटेड की लेडीज टीम के लिए खेलने का. आज भले ही अदिति ने इंडियन फुटबॉल में वो मुकाम हासिल कर लिया है जो आज तक कोई नहीं कर पाया था लेकिन अदिति ने कभी फुटबॉलर बनने के लिए नहीं सोचा था और ना ही इतना सब हासिल करने का सपना ही देखा था.
कभी नहीं लगा कि फुटबॉलर बनना है
अदिति कहती हैं, 'मुझे कभी नहीं लगा कि मुझे फुटबॉलर ही बनना है. जब मैंने पहली बार फुटबॉल खेला तब मैं क्लास 9 में पढ़ती थी. पहली बार फुटबॉल खेलने के बाद ये गेम मुझे इतना पसंद आया कि मैं खेलती गई. फिर जब मैं 15 साल की थी तब मैंने दिल्ली स्टेट की अंडर-19 टीम के लिए पहली बार खेला था. फिर दो साल बाद मैं इंडियन अंडर-19 टीम के लिए सेलेक्ट हो गई और फिर इंडियन नेशनल टीम के लिए खेलने लगी.'
यूके पढ़ाई करने आई थी
अदिति आगे कहती हैं, 'आगे की पढ़ाई के लिए जब मैं यूके आई थी तो मुझे सिर्फ पढ़ाई करनी थी मैं यहां ये सोचकर नहीं आई थी कि मुझे प्रीमियर लीग में खेलना है. मैं तो घर से यही सोचकर निकली थी कि यूनिवर्सिटी की फुटबॉल टीम में सेलेक्शन हो जाए. जिससे की नए एक्सपीरिएंस के साथ ही मेरी प्रैक्टिस भी होती रहे. वहां मेरा गेम देखकर लोगों ने मुझसे क्लबों के लिए ट्रायल देने की बात कही. मैंने सोचा कि इसमें क्या दिक्कत है दे देते हैं. फिर मैं वीकेंड्स पर कभी ट्रायल वगैरह दे देती थी. ऐसे ही एक ट्रायल के बाद मेरा सेलेक्शन यहां हो गया. मैंने कभी इतना सब हासिल करने का सपना तो नहीं देखा लेकिन हां मैंने मेहनत बहुत की है. और पूरी तरह से पॉजिटिव रहते हुए मैंने गेम को अपना 100 परसेंट दिया है. और उसी का नतीजा है कि मैं यहां हूं.'