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EXCLUSIVE: ध्यानचंद का नाम तय होने के बावजूद तेंदुलकर को क्यों मिला भारत रत्न?

सचिन तेंदुलकर को जब भारत रत्न से नवाजा गया था, तब भी विवाद हुआ था कि क्यों इस सम्मान के लिए हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले ध्यानचंद को दरकिनार किया गया? क्या मनमोहन सिंह ने राजनीतिक फायदे के लिए सचिन को देश का सबसे बड़ा सम्मान देने का फैसला किया था. इस पूरे मामले में आजतक ने एक बड़ा खुलासा किया है.

File photo: जब भारत रत्न से नवाजे गए थे सचिन तेंदुलकर File photo: जब भारत रत्न से नवाजे गए थे सचिन तेंदुलकर
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 30 जुलाई 2014,
  • अपडेटेड 5:26 PM IST

सचिन तेंदुलकर को जब भारत रत्न से नवाजा गया था, तब भी विवाद हुआ था कि क्यों इस सम्मान के लिए हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले ध्यानचंद को दरकिनार किया गया? क्या मनमोहन सिंह ने राजनीतिक फायदे के लिए सचिन को देश का सबसे बड़ा सम्मान देने का फैसला किया था. इस पूरे मामले में आजतक ने एक बड़ा खुलासा किया है.

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जब सचिन को भारत रत्न दिया जा रहा था तब कई दिग्गजों ने ये सवाल उठाया था कि देश के सबसे बड़े सम्मान के लिए खिलाड़ी के तौर पर ध्यानचंद इसके पहले अधिकारी हैं. आजतक को मिले दस्तावेज से साफ पता चलता है कि मेजर ध्यानचंद और प्रोफेसर सीएनआर राव के नामों पर सहमति बन जाने के बाद अचानक तेंदुलकर का नाम भारत रत्न के लिए भेजा गया, और तब भेजा गया जब देश में विधानसभा के चुनाव होने वाले थे.

आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक पता चलता है, कि 16 जुलाई 2013 को तत्कालीन खेल मंत्री जीतेंद्र सिंह ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न दिए जाने की वकालत की थी. पत्र व्यवहार से ये भी साफ हो गया कि इस पुरस्कार की संस्तुति खुद प्रधानमंत्री करते हैं, किसी औपचारिकता की इसमें जरूरत नहीं है.

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आंतरिक पत्र व्यवहार से ये बात भी सामने आई कि ध्यानचंद को भारत रत्न दिए जाने की बात प्रिंसिपल सेक्रेटरी के सामने दिसंबर 2013 में रखी जाएगी, यानी सब कुछ तय लग रहा था. तभी जाने-माने वैज्ञानिक और योजना आयोग के सदस्य कस्तूरी रंगन ने 28 सिंतबर, 2013 को प्रोफेसर सीएनआर राव का नाम भारत रत्न के लिए भेजा. इस आंतरिक पत्र व्यवहार में लिखा गया है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग से प्रोफेसर राव पर एक राइट-अप लिया जाए और साथ ही ये भी लिखा गया है कि चुनाव आयोग की राय ली जाए.

तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह के प्राइवेट सेक्रेटरी ने इस आंतरिक पत्र व्यवहार में 17 अक्टूबर 2013 को अपनी नोटिंग में लिखा-

पीएम सहमत हैं, अब
(a) डीएसटी से राइट-अप मंगाया जाए.
(b) सीएसई यानी मुख्य निर्वाचन आयुक्त से अनापत्ति ली जाए.
(c) इसके बाद पीएम की तरफ से औपचारिक संस्तुति राष्ट्रपति को भेजी जाएगी.

आंतरिक पत्र व्यवहार से ये साफ हो गया कि 24 अक्टूबर 2013 को प्रोफेसर सीएनआर राव का नाम भारत रत्न के लिए तय हो गया था. 14 नवंबर 2013 के पीएमओ में डायरेक्टर राजीव टोपनो के हस्ताक्षर वाले एक आंतरिक पत्र व्यवहार में ये लिखा गया कि प्रोफेसर सीएनआर राव का बॉयोडाटा मिल गया है, साथ ही इसमें चौकाने वाला एक और नाम भारत रत्न की रेस में आता हुआ दिखा. इस आंतरिक पत्र व्यवहार में लिखा गया है-

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'इसके अतिरिक्त जैसा कि मांगा गया था, सांसद सचिन तेंदुलकर पर राइट-अप और बायोडाटा खेल मंत्रालय से प्राप्त कर लिया गया है. पीएम दो ड्राफ्ट F/A और F/B जिसमें सचिन तेंदुलकर और प्रोफेसर सीएनआर राव को भारत रत्न दिए जाने को लेकर राष्ट्रपति के निवेदन को सहमति प्रदान करें. ये दोनों व्यक्ति ऐसे किसी भी राज्य से ताल्लुक नहीं रखते हैं जहां पर चुनाव हो रहे हैं. इसलिए चुनाव आयोग से सहमति लेने की कोई जरूरत नहीं है.'

आंतरिक पत्रव्यवहार में तत्कालीन पीएम के प्राइवेट सेक्रेटरी ने अपनी नोटिंग में 15 नवंबर, 2013 को लिखा है-
'अत्यधिक सावधानी बरतते हुए मैंने मुख्य चुनाव आयोग से इस मसले पर बातचीत की है. मुख्य चुनाव आयुक्त ने अपने साथियों से बातचीत करने के बाद भरोसा दिया है, कि उनकी तरफ से कोई आपत्ति नहीं है.'

इसके बाद 16 नवंबर को आंतरिक पत्र व्यवहार पर अपनी नोटिंग में प्राइवेट सेक्रेटरी ने लिखा है- 'पीएम को चुनाव आयोग वाले मसले की जानकारी दे दी गई है. उन्होंने राष्ट्रपति को लिखे दो पत्रों को अपनी मंजूरी दे दी है.'

यानी तेंदुलकर को भारत रत्न दिए जाने का फैसला अचानक लिया गया. सवाल उठता है, आखिर किसके दबाव में सचिन को देश का सबसे बड़ा सम्मान दिया गया और मेजर ध्यानचंद को दरकिनार कर उन्हें सम्मान देने की जल्दबाजी क्यों की गई?

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आजतक को मिले दस्तावेज के मुताबिक मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न दिए जाने पर सहमति बन गई थी, लेकिन आनन-फानन में तेंदुलकर को इस सम्मान के लिए चुन लिया गया. हॉकी के पूर्व खिलाड़ियों ने इस पर अफसोस जाहिर किया है. उनका कहना है कि पिछली सरकार ने हॉकी के महान खिलाड़ी के साथ अन्याय किया था.

लोग छूट जाते हैं, कीर्ति बनी रहती है. हॉकी के महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद भी दशकों पहले गुजर गए, लेकिन हॉकी में उनके कीर्तिमानों की कहानियां जीवित हैं. यही वजह है कि जब खिलाड़ियों के बीच देश के सबसे बड़े सम्मान के लिए तेंदुलकर को चुना गया तो ध्यानचंद हमारे ध्यान में आए.

आरटीआई कार्यकर्ता देवाशीष भट्टाचार्य ने जो जानकारी पीएमओ से जुटाई, उससे पिछली सरकार पर सवाल खड़े हो गए. अब सरकार तो जा चुकी है लेकिन सवाल वहीं का वहीं है, और जवाब किसी के पास नहीं है.

पूर्व हॉकी खिलाड़ी अशोक कुमार के मुताबिक, 'कांग्रेस से इस बात का जवाब देते नहीं बना कि ध्यानचंद पर सहमति बन जाने के बाद अचानक सचिन कैसे अवतरित हुए? लेकिन खेल की दुनिया के लोग, खासकर पुराने हॉकी खिलाड़ी मानते हैं कि मेजर ध्यानचंद भारत रत्न के पहले अधिकारी थे.'

हॉकी के पूर्व खिलाड़ियों ने उम्मीद जताई है कि नई सरकार ध्यानचंद के साथ हुए अन्याय को खत्म करेगी, उन्हें भारत रत्न दिया जाएगा. ध्यानचंद को भारत रत्न दिए जाने की मांग पहले से उठती रही है और क्रिकेट के उन्माद से बाहर का समाज हमेशा ये मानता है कि भारत रत्न पर ध्यानचंद का हक सचिन से पहले है.

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