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राम मंदिर मुद्दे पर अब शिवसेना और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आएंगे आमने-सामने?

राम मंदिर निर्माण की वकालत दोनों कर रहे हैं. लेकिन इस पूरे प्रकरण से साबित होता है कि हिन्दू विचारधारा वाली पार्टियां और समूह राम मंदिर मुद्दे पर किस तरह बुनियादी तौर पर बंटे हुए हैं. हर कोई खुद को राम मंदिर निर्माण का सबसे बड़ा हिमायती और हिंदू समुदाय का करीबी दिखाना चाहता है. 

सांकेतिक तस्वीर (फाइल फोटो: Twitter/@RSSorg) सांकेतिक तस्वीर (फाइल फोटो: Twitter/@RSSorg)
खुशदीप सहगल
  • मुंबई,
  • 12 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 7:56 AM IST

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने एक दिन पहले घोषणा की थी कि वो 25 नवंबर को अयोध्या में राम मंदिर मुद्दे पर जनाग्रह रैली का आयोजन करेगा. उसी दिन शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे भी राम मंदिर निर्माण मुद्दे पर जोर देने के लिए अयोध्या पहुंच रहे हैं. आरएसएस की ओर से 25 नवंबर को ही अयोध्या में रैली का आयोजन शिवसेना को रास नहीं आया है.

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कई पार्टियों का मानना है कि 2019 लोकसभा चुनाव में राम मंदिर बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है. इसी मुददे पर आरएसएस की ओर से 25 नवंबर को अयोध्या में जनाग्रह रैली के आयोजन को विश्व हिन्दू परिषद का भी समर्थन है. ऐसी रैलियों का आयोजन नागपुर और बेंगलुरु जैसे शहरों में भी होगा. इनमें हजारों साधु-संतों के हिस्सा लेने की भी संभावना है. 25 नवंबर को ही शिवसेना अयोध्या में बड़े आयोजन की तैयारी कर रही है.  

शिवसेना के मुखपत्र सामना में पार्टी ने आरएसएस की जनाग्रह रैली की तारीख को लेकर कई सवाल किए है. लेख में कहा गया है, ‘इस जनाग्रह रैली से कुछ नहीं होने वाला. अगर ऐसी सूखी रैली से राम मंदिर निर्माण में मदद मिलती तो 25 साल पहले इतने सारे कारसेवकों को अयोध्या में जान ही क्यों गंवानी पड़ती. लोगों को इसका जवाब चाहिए.’

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संपादकीय में ये भी कहा गया है, ‘सबसे अहम ये है कि आरएसएस की जनाग्रह रैली के लिए तारीखें किसने तय की. जिसने आरएसएस से कहा है 25 नवंबर को जनाग्रह रैली का आयोजन किया जाए, उसके नाम का खुलासा किया जाना चाहिए. शिवसेना ने अयोध्या में 25 नवंबर को अपने कार्यक्रम का फैसला बहुत पहले दशहरा रैली में ही ले लिया था. आरएसएस ने उसी दिन जनाग्रह रैली रखने का फैसला क्यों किया? आरएसएस ने इसके बारे में पहले क्यों नहीं सोचा?’

शिवसेना पहले भी कह चुकी है कि बीजेपी सरकार बहुत पहले ही राम मंदिर का निर्माण करा सकती थी, लेकिन वो सिर्फ चुनाव में ही इस मुद्दे का नाम लेते हैं. वो भी सिर्फ नाम के लिए. शिवसेना के मुताबिक बीजेपी राम मंदिर निर्माण के लिए गंभीर नहीं है.

सूत्रों का ये भी कहना है कि आरएसएस अगर उसी दिन अयोध्या में रैली करता है जिस दिन शिवसेना का भी वहां कार्यक्रम है तो शिवसेना के कार्यक्रम को अधिक तवज्जो नहीं मिलेगी. यहां ये भी देखना दिलचस्प है कि महाराष्ट्र में शिवसेना उत्तर भारतीयों को निशाना बनाती रही है. अब शिवसेना ने अयोध्या में कार्यक्रम रखा है तो वहां उसे किस तरह का समर्थन मिलता है.

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