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इस बात की पुष्टि हो गई है कि रायगढ़ के जंगल से मिला कंकाल शीना बोरा का ही है. मुंबई पुलिस ने जंगल में मिले कंकाल की खोपड़ी का फेशियल सुपरइंपोजिशन तकनीक से टेस्ट करवाया, जिससे साबित हुआ कि ये कंकाल शीना का है.
लैब में बनती है इंसानी खोपड़ी
कत्ल की इस कहानी में पुलिस को सबसे पहले ये साबित करना था कि रायगढ़ में मिला कंकाल शीना का ही है. दरअसल फेशियल सुपरइंपोशिन और डिजिटल फेशियल
इंपोजिशन ऐसी आधुनिक तकनीक है जिसके जरिए लैब में किसी भी इंसानी खोपड़ी को उसकी शक्ल दी जा सकती है. बस शर्त ये है जिसकी मौत का शक है उसकी एक
तस्वीर मिलान के लिए वैज्ञानिकों के पास मौजूद हो. जो इस केस में मौजूद थी.
ऐसे होता है कंकाल का अध्ययन
शीना के कंकाल की जांच भी वैज्ञानिकों ने एंथ्रोपॉजिकल एग्जामिनेशन और सोमेटोस्कोपिक फीचर्स से शुरू की थी. जांच के जरिए मरने वाले के नेजल इंडेक्स यानी नाक
की बनावट, फेशियल इंडेक्स यानी चेहरे की बनावट, आई इंडेक्स (आंख की बनावट), ग्लाबेला इंडेक्स (ललाट की बनावट) और जायजियोन (चेहरे की चौड़ाई) का गहराई
से अध्ययन किया जाता है.
ऐसे बनाया जाता है मरने वाला का चेहरा
किसी भी शख्स के चेहरे को दोबारा बनाने के लिए फोरेंसिक साइंस में द्वि आयाम या फिर त्रि आयाम तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. द्वि आयाम या टू
डाइमेंशन तकनीक में उस शख्स की मरने से पहले की तस्वीर या फिर सिर की खोपड़ी के रेडियोग्राफ की सहायता से उस शख्स का चेहरा दोबारा बनाया जाता है. जबकि थ्री डाइमेंशन तकनीक में मरे हुए शख्स के कपाल यानी सिर की हड्डी के टुकड़ों की मदद से उसका चेहरा बनाया जाता है या फिर मिट्टी से भी उसका चेहरे का मॉडल तैयार किया जाता है, नहीं तो कंप्यूटर पर उसके चेहरे की इमेज बनाई जाती है.
सुपरइंपोजिशन तकनीक का इस्तेमाल
फोरेंसिक साइंस में सुपरइंपोजिशन तकनीक का इस्तेमाल हमेशा नहीं होता क्योंकि इस तकनीक में किसी का भी चेहरा बनाने वाले के पास मरने वाले की हड्डियों के
ढांचे की कुछ जानकारी होना जरूरी है.
निठारी में मिले कंकालों पर इस्तेमाल हुई थी ये तकनीक
गौरतलब है कि हिंदुस्तान के वैज्ञानिकों ने निठारी में मिले बच्चों के कंकालों और खोपडि़यों को उनकी शक्ल देने के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल किया था. इस
तकनीक के जरिए वैज्ञानिकों नें निठारी के 16 खोपड़ियों को सुपरइंपोजिशन के जरिए पहचान दी थी.