Advertisement

यूं हुआ अकड़ू श्रीनिवासन का अवसान

बेरहम बीसीसीआइ ने श्रीनिवासन को औकात में ला दिया. वही श्रीनिवासन जो कभी इसके सर्वेसर्वा हुआ करते थे.

आइसीसी के अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन आइसीसी के अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन
aajtak.in
  • ,
  • 04 मई 2015,
  • अपडेटेड 4:31 PM IST

अगर रेडियो तरंगें भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) के भीतर चल रही ताजा सांगठनिक उठा-पटक की खबर दे पातीं तो अप्रैल के पहले हफ्ते में चेन्नै और कोलकाता के बीच दनादन बजी फोन की घंटियों से ही पता चल जाता. कुछ ही घंटों के भीतर दोनों शहरों के बीच जाने कितने फोन खटखटा चुके थे. फिर अगर ये तरंगें फोन पर हुई बातचीत के तेवर और अंदाज को पकड़ पातीं तो फौरन उस भारी उथल-पुथल की भी खबर दे देतीं ये कोई मामूली हालचाल लेने वाली बातचीत नहीं थी. बातें अंगार उगल रही थीं. अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल (आइसीसी) के अध्यक्ष नारायणस्वामी श्रीनिवासन समिति के सदस्यों के चयन और जून में बांग्लादेश दौरे को रद्द करने के मामले में अपनी न चल पाने से बेहद झुंझला रहे थे. उन्होंने तो कथित तौर पर बीसीसीआइ अध्यक्ष जगमोहन डालमिया को उनकी बात न मानने पर हटाने की कार्रवाई शुरू करने की धमकी भी दे डाली. आखिरकार कोलकाता से वित्त मंत्री अरुण जेटली के पास एक नाराजगी भरा फोन पहुंचा, जो उस वक्त वॉशिंगटन में थे. इस फोन के बाद श्रीनिवासन अचानक शांत हो गए. अब तक क्रिकेट की दुनिया का यह निर्विवाद बादशाह धूल चाटता नजर आया.

क्रिकेट की दुनिया में 70 वर्षीय श्रीनिवासन के उत्थान और पतन को पिछले एक दशक के सबसे दिलचस्प किस्से के रूप में याद किया जाएगा. यह वही दौर था, जब भद्रलोक का यह गंभीर खेल ट्वेंटी-20 के पैसा कमाऊ सर्कस में तब्दील हो गया और इससे इतनी कमाई हुई, जिसकी कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. फिर भी श्रीनिवासन का किस्सा मैदान पर हुए खेल के अनोखे प्रदर्शन और यहां तक कि 2011 में घरेलू मैदान पर टीम इंडिया की विश्व कप विजय को भी फीका कर सकता है. शायद यह किस्सा उनके दोस्त से दुश्मन बने ललित मोदी की अजीबोगरीब दास्तान को भी कम दिलचस्प बना दे, जो पिछले पांच साल से स्व निर्वासन में लंदन में रह रहे हैं. आइपीएल के जन्मदाता मोदी को यह गुमान हो गया था कि वे पूरी व्यवस्था से बड़े हो गए हैं. आखिरकार बोर्ड ने उन्हें उनकी औकात बता दी, जो किसी का कैदी बनकर नहीं रहता. जैसे 2005 में डालमिया और अब श्रीनिवासन को भी उनकी औकात बता दी गई. इस तरह बीसीसीआइ वह चक्र है, जो जितना देता है, उससे कहीं ज्यादा ले लेता है.

इसका पहिया हमेशा घूमता रहता है और क्रिकेट सत्ता की सीढ़ी के बदले एक संयोग ज्यादा बनाता है. दरअसल इसमें राजनीतिकों, उद्योगपतियों, लॉबीइंग करने वालों, प्रमोटर, खिलाड़ी से एजेंट बने शख्स और नामी खिलाड़ी से कमेंटेटर बने तमाम तरह के लोग इसके अगले ''राजाʼʼ को चुन लेते हैं. बीसीसीआइ पिछले तीन दशक में एक गैरमुनाफे वाले संगठन से 2,286 करोड़ रु. के सालाना कारोबार वाले कॉरपोरेट में बदल गया है. बेशक, यहां दांव ऊंचे लगे होते हैं. कमान पाने का नशा कम नहीं होता. हमेशा कोई दूसरा गद्दी हथियाने के लिए तैयार रहता है और फिर वह भी अपनी फिसलन तक कायम रहता है. फिलहाल तो चर्चा श्रीनिवासन की ही है. उनका कसूर यह है कि उन्होंने पूरे बोर्ड को ही नाराज कर दिया और अब उनके सामने आइसीसी अध्यक्ष का पद गंवाने का भी खतरा खड़ा हो गया है. इस पद पर उन्होंने पिछली गर्मियों में तमाम विवादों के बावजूद खुद को नामजद कर लिया था.

बीसीसीआइ की आंतरिक व्यवस्था से परिचित एक पूर्व सदस्य कहते हैं, ''हम सभी जानते हैं कि बीसीसीआइ का क्रिकेट से कोई लेनादेना नहीं है. यह महज उस पर नियंत्रण के लिए है. हालांकि वक्त के साथ उसके आका ज्यादा धूर्त होते जा रहे हैं. जब डालमिया पिट गए तो वे चुपचाप क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बंगाल में ध्यान लगाने लगे और अपने वक्त का इंतजार करने लगे. जब मोदी को लगा कि आइपीएल चेयरमैन के नाते उनका वक्त पूरा हुआ तो वे इंग्लैंड भाग गए और बोर्ड को अपने ट्वीट और लीक से परेशान करते रहे. अब श्रीनिवासन हर तरह की तिकड़म लगाकर अपने साम्राज्य को बचाए रखने की कोशिश में जुटे हुए हैं.ʼʼ

उनकी दो बड़ी गलतियां हैं, जिनमें उन्होंने बीसीसीआइ के साझा हितों के बदले अपने हित को ज्यादा तवज्जो दी है. सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि वे क्रिकेट के प्रशासक बने रह सकते हैं या फिर आइपीएल टीम के मालिक. इस पर उन्होंने एक हास्यास्पद-सी योजना के जरिए बीसीसीआइ को झांसा देने की कोशिश की. 4,000 करोड़ रु. की कंपनी इंडिया सीमेंट के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर श्रीनिवासन ने एक सहयोगी कंपनी बनाई और चेन्नै सुपर किंग्स को उसे महज 5 लाख रु. में बेच दिया, जिसका ब्रांड मूल्य अमेरिकन एप्रेजल फर्म ने 450 करोड़ रु. आंका है. कथित तौर पर यह सब ऐसे किया गया ताकि हर बिक्री पर 5 फीसदी रकम लेने वाले बीसीसीआइ को महज 25,000 रु. मिले. बोर्ड की नवगठित कार्यसमिति ने इस बिक्री पर रोक लगा दी है.

श्री निवासन पर आखिरी चोट शायद अप्रैल के आखिरी हफ्ते में ही पड़ी, जब आइसीसी के तंत्र का कथित तौर पर दुरुपयोग करते हुए उन्होंने बीसीसीआइ के नए सचिव, बीजेपी के सांसद अनुराग ठाकुर और एक संदिग्ध सट्टेबाज के बीच संबंध कायम करना चाहा. हालांकि इस आरोप को अभी खारिज नहीं किया जा सका है, लेकिन ठाकुर ने फौरन जवाबी हमला किया. उन्होंने आरोप लगाया कि श्रीनिवासन लंदन की एक फर्म से कुछ बीसीसीआइ सदस्यों की जासूसी करवा रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा कि उनके आइसीसी में बतौर बीसीसीआइ प्रतिनिधि होने की समीक्षा की जा रही है. इस तरह श्रीनिवासन क्रिकेट की दुनिया के सम्राट से अचानक एक ऐसे शख्स में तब्दील हो गए हैं, जिनके सिर पर तलवार लटक रही है.

उनके पतन की कहानी दो समानांतर किस्सों के साथ शुरू होती है. दो साल पहले उनके दामाद गुरुनाथ मयप्पन का नाम मुंबई पुलिस की स्पॉट फिक्सिंग में उभरा, जिसके बाद बोर्ड के क्रियाकलाप की जांच के लिए पूर्व हाइकोर्ट जज मुकुल मुद्गल के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट की जांच समिति गठित हुई. इस मामले के आगे बढ़ते ही बोर्ड में श्रीनिवासन का रुतबा घटने लगा. फिर भी उन्होंने तमाम झंझावातों के बावजूद बोर्ड पर अपनी पकड़ बनाए रखी. पहले तो उन्होंने यह कहकर बीसीसीआइ के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने से इनकार कर दिया कि उनका या चेन्नै सुपर किंग्स का मयप्पन से कोई लेनादेना नहीं है. फिर ऐसा माहौल बनाया कि हटने के बावजूद उनकी पकड़ बनी रहे और 2014 में उन्होंने खुद ही अपने को आइसीसी के चेयरमैन के लिए नामजद कर लिया.

आखिर जनवरी, 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने मुद्गल रिपोर्ट मिलने के बाद फैसला सुनाया कि श्रीनिवासन बीसीसीआइ का चुनाव नहीं लड़ सकते. यह भी कहा गया कि आइपीएल टीम की मिल्कियत छोड़कर वे हितों की टकराहट का मामला दूर करें. इस मौके पर भी उन्होंने डालमिया को बीसीसीआइ का अध्यक्ष बनने में 'मददʼ की. शायद इस उम्मीद में कि वे आगे उनकी मदद करेंगे.

अगली कहानी इसी अप्रैल में शुरू होती है. मेलबर्न के क्रिकेट मैदान में ऑस्ट्रेलिया को 2015 विश्व कप की ट्रॉफी सौंपने के दौरान श्रीनिवासन की हूटिंग के फौरन बाद. दो दिन बाद आइसीसी अध्यक्ष मुस्तफा कमाल ने इस्तीफे का ऐलान कर दिया, जिन्हें बांग्लादेश क्रिकेट बोर्ड ने नामजद किया था, क्योंकि आइसीसी में श्रीनिवासन की मनमानी चलती है. उन्होंने यह भी कहा कि आइसीसी तो व्यावहारिक रूप से इंडियन क्रिकेट काउंसिल ही बन गई है. उनके इस बयान से बुरी तरह खीझे श्रीनिवासन डालमिया को लगातार फोन करने लगे कि वे जून में तय बांग्लादेश दौरे को रद्द कर दें, जिससे बांग्लादेश बोर्ड को भारी वित्तीय नुकसान झेलना पड़े. पर डालमिया ने यह कहकर ऐसा करने से इनकार कर दिया कि इससे दोनों देशों के कूटनयिक संबंधों पर बुरा असर पड़ेगा. कथित तौर पर श्रीनिवासन इस बात से आपा खो बैठे और धमकी दी कि दौरा रद्द करो या बीसीसीआइ के अध्यक्ष पद से फौरन हटाए जाने की कार्रवाई झेलो.

नाराज डालमिया ने अरुण जेटली को फोन कर इस धमकी के बारे में बताया. जेटली केंद्र में सबसे ताकतवर मंत्री हैं और दिल्ली क्रिकेट एसोसिएशन में दबदबा रखते हैं. उधर, श्रीनिवासन ने बीसीसीआइ और आइसीसी के पूर्व मुखिया और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सुप्रीमो शरद पवार से बातचीत की. श्रीनिवासन अपनी दुश्मनी भुलाकर पवार से दोस्ती करना चाहते थे ताकि आगे चलकर दोनों के हित सध सकें. फिर तो कहते हैं कि श्रीनिवासन का समर्थन कर रहे जेटली ने अपना कवच हटा लिया और उन्हें अकेला छोड़ दिया.

अब डालमिया-ठाकुर की लॉबी पूर्व बीसीसीआइ प्रमुख शशांक मनोहर जैसे सदस्यों के साथ मिलकर आपातकालीन बैठक बुलाकर श्रीनिवासन को आइसीसी के चेयरमैन पद से तत्काल प्रभाव से हटाने का प्रस्ताव लाने की तैयार कर रही है. श्रीनिवासन आइसीसी में बीसीसीआइ के प्रतिनिधि हैं. इसलिए उन्हें हटाने के लिए दो-तिहाई या 21 वोटों की दरकार होगी.
बीसीसीआइ के एक वरिष्ठ सदस्य कहते हैं, ''आप श्रीनिवासन से दुश्मनी मोल लेने की बात नहीं सोच सकते थे. उन्होंने पूरी व्यवस्था को इस कदर अपने पक्ष में कर लिया था कि हमेशा जरूरी संख्या उनके साथ होती थी. लेकिन अब कोई उनसे डरा हुआ नहीं है. उनका मामला आया तो समझिए कि वे आइसीसी चेयरमैन पद से गए.ʼʼ बीसीसीआइ सदस्यों की उनसे नाराजगी के कुछ मुद्दे इस प्रकार हैं. एक, श्रीनिवासन के कार्यकाल में किसी-न-किसी बहाने इंडिया सीमेंट या तमिलनाडु क्रिकेट एसोसिएशन के अधिकारी टीम इंडिया के साथ बने रहते थे. दो, राज्य एसोसिएशनों में अपने प्रति वफादारी देखकर ही अंतरराष्ट्रीय खेल उनके इलाके में तय करना. तीन, उनके खिलाफ मुकदमों की पैरवी में बीसीसीआइ के लगे 320 करोड़ रु. और चौथा, श्रीनिवासन के खिलाफ मामलों से सुप्रीम कोर्ट को बीसीसीआइ के क्रियाकलाप में झांकने का मौका मिला.

श्रीनिवासन के लिए अब आगे का सफर आसान नहीं है. सूत्रों के मुताबिक डालमिया-ठाकुर टोली ने आइसीसी से श्रीनिवासन को बाहर करने के लिए सितंबर में आम सभा की बैठक होने तक इंतजार करना बेहतर समझा है. जो भी हो, उनके दिन गिने-चुने ही रह गए हैं.

कहते हैं, बिल्ली की नौ जान होती है. लेकिन श्रीनिवासन की तो शायद दस या ग्यारह हैं. सच तो ये है कि अब वे बिलकुल अकेले रह गए हैं. बीसीसीआइ के पूर्व कोषाध्यक्ष, सचिव और अध्यक्ष को अब सभी साथी अकेला छोड़कर चले गए हैं. अंतरराष्ट्रीय मंच पर लोग उन्हें दुत्कार चुके हैं और सुप्रीम कोर्ट उन पर अपना हथौड़ा चला चुका है. इसलिए लगता है, श्रीनिवासन के पास अब कोई जान नहीं बची है. उनके उत्थान की ही तरह पतन से भी क्रिकेट का कोई लेनादेना नहीं है. वैसे भी बीसीसीआइ का क्रिकेट से क्या लेनादेना.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement