
उत्तर प्रदेश चुनावों में जीत के बाद सत्तारूढ़ बीजेपी ने राज्य के किसानों का कर्ज माफ करने का फैसला लिया. यह बीजेपी का चुनावी वादा था और इसे पूरा किया गया. इस फैसले का असर प्रदेश के राजस्व पर पड़ना तय है. उत्तर प्रदेश की तर्ज पर महाराष्ट्र सरकार ने भी कर्ज माफ किया और अपने राजस्व पर बड़ा दबाव डाला है. अब मध्य प्रदेश, और पंजाब समेत कई राज्य अपने-अपने राजस्व की परवाह किए बगैर किसानों को सौगात देने की तैयारी में हैं.
किसानों को नहीं मिल पाएगा कर्ज?
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की प्रमुख अरुंधति भट्टाचार्य ने प्रदेश में किसानों के कर्ज को माफ करने के संबंध में कहा कि इस तरह चुनावी वादे पूरे करने से देश का क्रेडिट अनुशासन खराब होता है. जिन किसानों को इसका फायदा मिलेगा उन्हें नए कर्ज के लिए भी अगले चुनाव से राजनीतिक दलों से ऐसे वादों की उम्मीद रहेगी.
किसानों को फिर रहेगा चुनाव का इंतजार
भट्टाचार्य के मुताबिक इन वादों को पूरा करने के लिए सत्ता में आने वाली सरकार अपने खजाने से पैसे अदा कर देती हैं. लेकिन बैंकों के लिए बड़ी चुनौती खड़ी हो जाती है. बैंकों से नया कर्ज लेने वाले किसान पहले से आश्वस्त रहते हैं कि उन्हें इस कर्ज पर भी माफी मिल जाएगी. वहीं किसानों को कर्ज देना बैंकों के लिए सिर्फ एक व्यर्थ प्रक्रिया बनकर रह जाती है क्योंकि उससे कर्ज लेने वाले किसानों को बस चुनाव का इंतजार रहता है कि कोई राजनीतिक दल उनसे कर्ज माफी का वादा कर ले.
पंजाब, मध्य प्रदेश और कर्नाटक भी कर्ज माफी की राह पर
महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस ने किसानों का कर्ज माफ करने का फैसला लिया. इससे राज्य के खजाने पर 22,000 करोड़ रुपये का दबाव बढ़ गया. अब कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने भी यूपी की तर्ज पर राज्य के किसानों का कर्ज माफ करने के लिए केन्द्र सरकार से अपील की है. सिद्धारमैया ने केन्द्र सरकार से किसानों का आधा कर्ज माफ करने की अपील की है.
सरकारी बनाम कोऑपरेटिव बैंक
उत्तर प्रदेश की जीडीपी में कृषि क्षेत्र का 27 फीसदी योगदान रहता है. लेकिन राज्य में सहकारी बैंक और सहकारी समितियों द्वारा कम कर्ज किसानों को दिया जाता है. सिर्फ इसी कर्ज को माफ करने का अधिकार राज्य सरकार के पास रहता है. वहीं, राज्य में अधिकांश किसानों का कर्ज राष्ट्रीयकृत बैंकों से होता है जिसका कर्ज माफ करने का अधिकार सिर्फ केन्द्र सरकार के पास होता है.