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देश के 6.3 करोड़ किसान कर्ज में, कौन देगा अन्नदाताओं के इन सवालों के जवाब?

एनसीआरबी की रिपोर्ट बताती है कि कर्ज के बोझ तले किसानों में खुदकुशी की दर लगातार बढ़ रही है. 2005 से 2015 के बीच 10 साल के आंकड़ों पर नजर डाला जाए तो देश में हर एक लाख की आबादी पर 1.4 से 1.8 किसान खुदकुशी कर रहे हैं.

अपनी मांगों को लेकर आंदोलन करते किसान अपनी मांगों को लेकर आंदोलन करते किसान
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 12 मार्च 2018,
  • अपडेटेड 12:51 PM IST

देश का पेट भरने वाले अन्नदाता एक बार फिर सड़कों पर हैं. महाराष्ट्र के 40 हजार किसान करीब 200 किलोमीटर की पदयात्रा करते हुए मुंबई पहुंच गए, लेकिन उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है.

देश में 9 करोड़ किसान परिवार हैं जिसमें 6.3 करोड़ परिवार कर्ज में डूबा हुआ है. कर्ज में डूबने के कारण 1995 के बाद से अब तक करीब 4 लाख किसान खुदकुशी कर चुके हैं, इसमें खुदकुशी करने वाले करीब 76 हजार किसान अकेले महाराष्ट्र से हैं. खेती से जुड़ी सबसे ज्यादा समस्याएं इसी राज्य से हैं.

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महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और झारखंड जैसे राज्यों में भी किसान खुदकुशी करते रहे हैं. 2017 में इन राज्यों में किसानों ने सबसे ज्यादा खुदकुशी की.

देश की राजनीति में किसानों की अहम भूमिका रहती है. यहां करीब 70 फीसदी लोग प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से खेती से जुड़े हैं. अमूमन हर चुनाव के पहले राजनीतिक दल किसानों की कर्ज माफी की बात करते हैं, लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद उस पर कुछ खास ध्यान नहीं देते जिससे किसान सड़क पर आंदोलन करने को मजबूर होते हैं.

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट बताती है कि कर्ज के बोझ तले किसानों में खुदकुशी की दर लगातार बढ़ रही है. 2005 से 2015 के बीच 10 साल के आंकड़ों पर नजर डाला जाए तो देश में हर एक लाख की आबादी पर 1.4 से 1.8 किसान खुदकुशी कर रहे हैं.

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महाराष्ट्र में आंदोलन कर रहे किसानों की मांग है कि बीते साल सरकार ने कर्ज माफी का जो वादा उनसे किया था उसे पूरी तरह से लागू किया जाए. बिना किसी शर्त के सभी किसानों का कर्ज माफ किया जाए. बिजली बिल भी माफ किया जाए.

साथ ही किसानों का कहना है कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाए और गरीब और मझौले किसानों के कर्ज पूरी तरह से माफ किए जाएं.

किसानों की एक और बड़ी मांग है कि आदिवासी वनभूमि के आवंटन से जुड़ी समस्याओं का निपटारा किया जाए जिससे आदिवासी किसानों को उनकी जमीनों का मालिकाना हक मिल सके.

ये चंद अहम मांगें है किसानों की, इसके अलावा उनकी कई और मांगें भी है जिसे पूरा किया गया तो उनकी स्थिति में सुधार आ सकती है.

अमूमन हर सरकार खुद को किसानों की हितैषी बताती है, लेकिन एक अंतराल के बाद किसान सड़क पर उतरने को मजबूर होते रहे हैं. महाराष्ट्र में फिर से हजारों की संख्या में किसान सड़क पर उतरे हैं, हमारे अन्नदाताओं की मांग इतनी नाजायज भी नहीं है कि सरकार के पास इसको लेकर जवाब देते न बने. किसानों के अस्तित्व से जुड़े अहम सवालों का जवाब सरकार को देना चाहिए, और कोशिश करनी चाहिए कि उन्हें बार-बार सड़क पर उतरने को मजबूर न होना पड़े.

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