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बाप-बेटी के खट्टे मीठे रिश्ते का आईना है 'पीकू'

'मदर्स डे' की दस्तक से पहले हर कोई अपनी मां के गुणगान में व्यस्त है. ऐसे में शूजीत सरकार फिल्मी पर्दे पर जो लाए हैं, वह 'कुछ हटकर' है. 'पीकू' फिल्म की कहानी एक बाप-बेटी के इर्द-गिर्द बुनी गई है..लगता है मानो किसी 'कॉम्प्लिकेटेड' लेकिन 'फनी' बंगाली फैमिली की वीडियो रिकॉर्डिंग आपके सामने पेश कर दी गई हो.

अमिताभ बच्चन और दीपिका पादुकोण अमिताभ बच्चन और दीपिका पादुकोण
दीपिका शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 08 मई 2015,
  • अपडेटेड 10:34 AM IST

'मदर्स डे' की दस्तक से पहले हर कोई अपनी मां के गुणगान में व्यस्त है. ऐसे में शूजीत सरकार फिल्मी पर्दे पर जो लाए हैं, वह 'कुछ हटकर' है. 'पीकू' फिल्म की कहानी एक बाप-बेटी के इर्द-गिर्द बुनी गई है..लगता है मानो किसी 'कॉम्प्लिकेटेड' लेकिन 'फनी' बंगाली फैमिली की वीडियो रिकॉर्डिंग आपके सामने पेश कर दी गई हो.

इस चटखारेदार थाली में आपको मिलेगी एक बूढ़े, चिड़चिड़े और 'बचकाने' पिता (अमिताभ बच्चन) की तीखी सब्जी, उस तीखेपन को कम करने और अपने पिता को संभालने की कोशिश करती बेटी (दीपिका पादुकोण), और इस बंगाली फैमिली ड्रामा के बीच नॉन-बंगाली स्वीट डिश का किरदार निभाते इरफान खान. कहानी के सफर को ठंडी छांव मुहैया कराते दिल्ली, बनारस और कोलकाता जैसे शहर.

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एक इंडियन फैमिली का ऐसा ईमानदार चित्रण, जो दिल छू जाए. बूढ़ा होता पिता अक्सर बच्चों को थोड़ा सनकी लगने लगता है. फिल्म में 70 साल के भास्कर बनर्जी, माफ कीजिएगा भाष्कोर बनर्जी, कब्ज से पीड़ित हैं और खुद को स्वस्थ रखने के लिए कुछ अतिरिक्त फिक्रमंद है. ऐसे में उसकी इंडिपेंडेंट सिंगल बेटी उसका साथ कभी नहीं छोड़ती. पिता सेहत के लिहाज से अक्षम नहीं है, पर उसमें बचपना इतना है कि अपनी 'सू सू-पॉटी' से लेकर दवाइयों तक बेटी पर ही निर्भर है.

यहां कुछ भी दुनिया से परे नहीं है. सब कुछ हमारे-आपके घर जैसा ही है. बेटी को बाप की फिक्र है और वो अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रही है. बाप की तबीयत और इच्छाओं के सामने बेटी को न ऑफिस नजर आता है और न ही दुनियादारी. बाप के बचकाने नखरे झेलते हुए कई बार मूड ऑफ भी हो जाता है. चिड़चिड़ेपन में वह अपने बाप से नोक-झोंक करती है, चिल्लाती भी है, लेकिन एक मां की तरह अपने पिता का ध्यान भी रखती है. और पिता, पिता वह है जो अपनी बेटी पर इतना आश्रित है कि उसकी शादी ही नहीं करना चाहता. चाहता है कि वह हमेशा उसके साथ रहे. किसी रिश्ते की संभावना बनती भी है तो लड़के से कह देता है कि उसकी बेटी वर्जिन नहीं है.

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ऐसे पिता का ख्याल रखते हुए एक सिंगल, इंडिपेंडेंड, पढ़ी-लिखी लड़की के चिड़चिड़ेपन का अनुमान लगाइए. लेकिन हैरानी की बात है कि स्क्रीन पर यह खूबसूरत दिखता है. पीकू के लिए चिड़चिड़ापन अपनी जगह है और अपने व्यक्तित्व के हिस्से के तौर पर उसने इसे स्वीकार लिया है. लेकिन असल चीज प्यार है, पिता से बेइंतहा प्यार, जो इस पूरे सीन में स्थायी रूप से नत्थी है.

70 साल के बचकाने बूढ़े भाष्कोर बनर्जी के रोल में अमिताभ बच्चन ने जान डाल दी है. फिल्म देखकर बाहर आएंगे तो सबसे ज्यादा अमिताभ ही जेहन में रहेंगे. पीकू एक आदर्श बेटी की तरह उनके नखरे झेलते हुए उनका ख्याल रखती है - जबकि उसे अपना ऑफिस भी संभालना है और अपनी सेक्सुअल लाइफ की चिंता भी करनी है. इस टिपिकल बंगाली फैमिली ड्रामा में एंट्री होती है यूपी के राणा चौधरी की, जो एक टैक्सी सर्विस कंपनी का मालिक है. फिर एक सफर है, जिसके बारे में ज्यादा खुलासा अभी ठीक नहीं.

भाई सस्पेंस चाहिए तो मत देखिएगा. कोई थ्रिलर ट्विस्ट भी नहीं है. ज्यादा सरप्राइज भी नहीं होंगे. लेकिन कहानी में आप कई जगहों पर खुद को मौजूद पाएंगे. आपके लगेगा कि अपने पिता से रिश्ते को समझने के लिए इस फिल्म ने कोई नई खिड़की खोली है.

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भाष्कोर बनर्जी के रूप में अमिताभ ने बॉलीवुड को एक 'सुपरक्यूट' बूढ़ा पिता दे दिया है. रिश्तों की नाजुक डोर से पिरोई गई उम्दा कहानियां बॉलीवुड में हर रोज नहीं आतीं. पीकू से मिल आइए. पिता के साथ जाइएगा. रिश्ते में मिठास बढ़ेगी.

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