Advertisement

कर्नाटक में बसवन्ना का वारिस बनने की होड़

लिंगायत और वीरशैव समुदायों के बीच विवाद भाजपा के लिए बुरी खबर क्यों है?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह
अंशुमान तिवारी
  • ,
  • 30 अगस्त 2017,
  • अपडेटेड 8:12 PM IST

जाति व्यवस्था दरकिनार करने वाले 12वीं सदी के समाज सुधारक बसवन्ना के सच्चे अनुयाई होने का दावा करने वाले लिंगायत और वीरशैव कर्नाटक के दो बड़े समुदाय हैं. 2018 में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए हिंदुओं से अलग धार्मिक समूह के रूप में मान्यता देने की लिंगायत की मांग का कांग्रेस ने समर्थन कर वर्षों पुरानी बहस को फिर छेड़ दिया है.    

Advertisement

इससे राज्य में लिंगायत और वीरशैव समुदाय के बड़े हिस्से का समर्थन हासिल करने वाली भारतीय जनता पार्टी सकते में है. भाजपा मुद्दे पर रुख अपनाने से घबरा रही है. मुख्यमंत्री सिद्धरामैया भी भाजपा के स्थानीय नेतृत्व को लिंगायत मामले को दिल्ली में न उठा पाने के लिए धिक्कार रहे हैं. पूरे कर्नाटक में फैले परंपरागत लिंगायत वीरशैव पर उनके साथ घालमेल करने का आरोप लगाते हुए दावा करते हैं कि उन्होंने हमेशा अलग धर्म का दर्जा देने की मांग की है. लिंगायत वीरशैव के इस दावे से भी सहमत नहीं है कि दोनों एक ही समुदाय के और एक समान हैं. लिंगायत समुदाय की पहली महिला साध्वी और बासव धर्म पीठ की प्रमुख माते महादेवी कहती हैं, ''बसवन्ना ने वैदिक अनुष्ठान और परंपरा को नकारा था. लेकिन वीरशैव वेदों का पालन करते हैं. वे शिव की पूजा करते हैं.'' इससे भाजपा नेता, पूर्व मुख्यमंत्री और लिंगायत नेता बी.एस. येद्दियुरप्पा परेशान हैं. येद्दियुरप्पा ने दोनों समुदायों के प्रमुखों के बीच बैठक में कहा, ''दोनों समुदायों में कोई अंतर नहीं है. दोनों हिंदुत्व के ही हिस्से हैं.'' सिद्धरामैया ने कहा, ''यह भ्रांति है कि हमने इस मसले की शुरुआत की.'' लिंगायत समुदाय के तेजतर्रार युवा नेता पारसनाथ टी कहते हैं, ''यदि चुनाव से पहले भाजपा अपना रुख स्पष्ट नहीं करती है तो यह सबके लिए भ्रामक परिदृश्य होगा.''

Advertisement

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement