Advertisement

Film review: हंसाती कम, बोर ज्यादा करती है-'तेरे बिन लादेन डेड ऑर अलाइव'

डायरेक्टर अभिषेक शर्मा ने जब 2010 में 'तेरे बिन लादेन' बनाई थी उस वक्त उनकी इस फिल्म की काफी सराहना की गयी, उसके बाद 2014 में अभिषेक की 'द शौकींस' बनाकर अभिषेक ने जनता को निराश किया था और अब साल 2016 में अभिषेक ने अपनी पहली फिल्म की सीक्वल बनाई है, क्या इस फिल्म में भी उतना ही मजा है जितना की पहली वाली किश्त में था? आइए जानते हैं.

पूजा बजाज/आर जे आलोक
  • मुंबई,
  • 26 फरवरी 2016,
  • अपडेटेड 1:41 PM IST

फिल्म का नाम: तेरे बिन लादेन: डेड ऑर अलाइव
डायरेक्टर: अभिषेक शर्मा
स्टार कास्ट: प्रद्युम्न सिंह, सिकंदर खेर, मनीष पॉल, पीयूष मिश्रा
अवधि: 1 घंटा 50 मिनट
सर्टिफिकेट: U/A
रेटिंग: 2 स्टार

डायरेक्टर अभिषेक शर्मा ने जब 2010 में 'तेरे बिन लादेन' बनाई थी उस वक्त उनकी इस फिल्म की काफी सराहना की गयी, उसके बाद 2014 में अभिषेक की 'द शौकींस' बनाकर अभिषेक ने जनता को निराश किया था और अब साल 2016 में अभिषेक ने अपनी पहली फिल्म की सीक्वल बनाई है, क्या इस फिल्म में भी उतना ही मजा है जितना की पहली वाली किश्त में था? आइए जानते हैं:

Advertisement

कहानी
फिल्म की कहानी पिछली वाली 'तेरे बिन लादेन' की पृष्टभूमि से शुरू होती है, जिसे सुपरहिट बताया जाता है लेकिन उसका पूरा क्रेडिट एक्टर अली जफर लेते हुए नजर आते हैं, इस बात से खफा होकर डायरेक्टर शर्मा (मनीष पॉल) इसी फिल्म की सीक्वल बनाना चाहता है और उसके लिए ओसामा बिन लादेन के हमशकल, पढी सिंह (प्रधुम्न सिंह) को लेकर शूटिंग शुरू करना चाहता है. वहीं खबर आती है कि‍ ओसामा बिन लादेन मारा गया और उसकी पुष्टि के लिए अमेरिकन प्रेजिडेंट से सबूत मांगे जाते हैं, जिसके लिए डेविड (सिकंदर खेर) को पढ़ी की तलाश होती है, जिसकी मौत का वीडियो बनाकर डेविड अपने प्रेजि‍डेंट को प्रूफ भेजना चाहता है, इसी बीच आतंकी सरगना का मुखिया खलीली भी ओसामा बिन लादेन के हमशकल पढी को लेकर एक ऐसा वीडियो बनाना चाहता है जिसे देखकर लगे की वो मरा नहीं बल्कि जिन्दा है क्योंकि लादेन के मारे जाने की खबर से खलील का धंधा खराब होने का डर था. इन्ही सब उलझनों के बीच कहानी आगे बढ़ती जाती है और आखिरकार किसकी जीत होती है? ये जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.

Advertisement

स्क्रिप्ट
फिल्म की कहानी में वो मजा नहीं है जो पहली वाली फिल्म में था. इतने उम्दा एक्टर्स हैं लेकिन कहानी काफी कमजोर और फीकी फीकी सी है. वैसे कुछ ऐसे पल आते हैं जहां आपको हंसी आती है, जैसे एक सीक्वेंस में 'ओलम्पिया ए दहशत' प्रतियोगिता होती, जहां सभी अपने अपने बल का प्रदर्शन करते हैं, कहीं कहीं वन लाइनर्स भी अच्छे हैं. स्क्रिप्ट और भी बेहतर लिखी जा सकती थी. फर्स्ट हाफ ठीक-ठाक है लेकिन इंटरवल के बाद कहानी फैल हो जाती है.

अभिनय
फिल्म में पियूष मिश्रा का आतंकी सरगना वाला किरदार काफी अच्छा है जिसे उन्होंने बखूब निभाया है, वहीं सिकंदर खेर ने भी अच्छा काम किया है. प्रदुम्न सिंह को एक बार फिर से ओसामा के किरदार में देखा जाएगा लेकिन इस बार स्क्रिप्ट ठंडी होने की वजह से उनका प्रदर्शन भरपूर नहीं हो पाया है. मनीष पॉल ने ठीक-ठाक काम किया है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement