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यूपी के कन्नौज से हुई पहली शरिया अदालत की औपचारिक शुरुआत

कन्नौज में दारुल कजा की नींव रखे जाने के साथ ही योगी सरकार ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है. यूपी सरकार के अल्पसंख्यक मामलों के राज्यमंत्री मोहसिन रजा ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा है कि यह गैरकानूनी है और संविधान के दायरे में ऐसे किसी समानांतर अदालत को मंजूरी नहीं दी जा सकती.

प्रतीकात्म फोटो प्रतीकात्म फोटो
विवेक पाठक/कुमार अभिषेक
  • लखनऊ,
  • 17 जुलाई 2018,
  • अपडेटेड 5:33 PM IST

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रस्ताव पास होते ही कन्नौज में पहले दारुल कज़ा यानि शरिया अदालत की औपचारिक शुरूआत हो गई है. शरिया अदालत खोले जाने के इस फैसले पर योगी सरकार ने ऐतराज जताया है.

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के फैसले के बाद पर शरिया अदालत या दारुल कजा की शुरुआत कनौज में मदरसा इस्लामियां बदरूल उलूम हाजीगंज में हुई है. जहां ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलान खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने इसकी नींव रखी. हालांकि अभी तक इस अदालत में कोई मामला नहीं पंहुचा है. लेकिन तमाम विरोध के बावजूद इसे खोल दिया गया है.

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बता दें कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने दिसंबर तक देश भर में 5 और दारुल कजा खोलने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है. कन्नौज के बाद गुजरात के सूरत, मुंबई, राजस्थान के टोंक और ललितपुर में दारुल कजा खोले जाएंगे.

कन्नौज में दारुल कजा की नींव रखे जाने के साथ ही योगी सरकार ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है. यूपी सरकार के अल्पसंख्यक मामलों के राज्यमंत्री मोहसिन रजा ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा है कि यह गैरकानूनी है और संविधान के दायरे में ऐसे किसी समानांतर अदालत को मंजूरी नहीं दी जा सकती. मोहसिन रजा ने यह भी कहा कि अगर दारुल कज़ा किसी मदरसे में खोला गया है तो उस मदरसे के खिलाफ भी कार्रवाई होगी.

दूसरी तरफ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के प्रवक्ता जफरयाब जिलानी ने साफ कहा है कि आने वाले दिनों में कई और शरिया अदालत खोले जाएंगी. जिलानी ने कहा कि यह आपसी विवाद सुलझाने के लिए एक मंच है, जिसके तहत लोगों के छोटे-मोटे मसले सुलझाए जाएंगे. बावजूद इसके अगर किसी को फैसले पर ऐतबार नहीं है तो वह सिविल कोर्ट या हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है.

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ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड के मुताबिक यह कोई पहली शरिया अदालत नहीं है बल्कि 1880 से लेकर अब तक 16 ऐसी अदालतें पूरे देश भर में काम कर रही हैं. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को इसे समानांतर कोर्ट कहे जाने पर ऐतराज है.

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