
पहले विश्वयुद्ध की समाप्ति के 100 साल पूरे होने पर फ्रांस की राजधानी पेरिस के ऐतिहासिक आर्क दे त्रायोंफ में रविवार को आयोजित कार्यक्रम में अन्य विश्वनेताओं के साथ उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू शामिल हुए. फ्रांसीसी राष्ट्रपति एमनुएल मैक्रों, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और दर्जनों विश्वनेता प्रथम विश्वयुद्ध युद्धविराम दिवस शताब्दी कार्यक्रम में शामिल हुए.
इस दौरान नायडू ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ-साथ विश्व के अन्य राजनेताओं से भी मुलाकात की. आर्क दे त्रायोंफ युद्ध स्मारक के तल पर आयोजित कार्यक्रम से 1914 से 1918 तक चार साल तक चले प्रथम विश्वयुद्ध के खत्म होने की 100वीं जयंती कार्यक्रम का समापन हो गया. इस युद्ध में एक करोड़ 80 लाख लोगों की जानें गईं जिनमें अनेक भारतीय सैनिक भी शामिल थे.
प्रथम विश्व युद्ध के अंत के 100 साल पूरे होने के अवसर पर रविवार को दुनिया भर के कई नेता यहां वैश्विक स्मृति समारोह में शामिल हुए. दुनिया के बड़े नेताओं का यह जमावड़ा बढ़ते राष्ट्रवाद और कूटनीतिक तनाव की पृष्ठभूमि में हुआ.
ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टेरेसा मे और महारानी एलिजाबेथ द्वितीय लंदन में इसी संबंध में आयोजित एक अन्य समारोह में हिस्सा लिया. वहीं, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया ने अपने स्तर पर इस संबंध में आयोजन किया. पेरिस में यह आयोजन 'आर्क दे ट्रायम्फ' के नीचे बने अनाम सैनिकों के कब्रों के पास किया गया. इसमें आधुनिक काल में राष्ट्रवाद के खतरों के प्रति चेतावनियों के संबंध में बात होने की संभावना है.
पूर्वी फ्रांस के जंगलों में जिस जगह युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर हुआ था, वहां की यात्रा करने के बाद शनिवार को जर्मनी की चासलर एंजेला मर्केल ने कहा, 'यह दिन सिर्फ याद करने के लिए नहीं है, इस दिन कार्रवाई की अपील की जानी चाहिए.'
विश्वयुद्ध में मारे गए भारतीय सैनिकों की याद में बना स्मारक, नायडू ने किया उद्घाटन
इससे पहले मैक्रों ने एलिसी पैलेस में नायडू की अगवानी की. नायडू 3 दिन की फ्रांस यात्रा पर आए हुए हैं. शनिवार को, नायडू ने उत्तर फ्रांस में भारत की ओर से बने पहले युद्ध स्मारक का उद्घाटन किया. स्मारक का निर्माण पहले विश्वयुद्ध में लड़ते हुए मारे गए हजारों भारतीय सैनिकों की याद में किया गया है.
भारतीय सैनिक 1914 के शरद के दौरान पश्चिमी मोर्चे पर तैनात थे. उन्होंने ईप्रे की पहली जंग में हिस्सा लिया. 1915 के अंत तक भारतीय सैनिक लगातार हताहत हुए. कई सैनिकों की मौत बीमारियों से हुई. इसके मद्देनजर भारतीय कोर को युद्ध के अग्रिम मोर्चे से हटाने का फैसला किया गया.
पहले विश्वयुद्ध में करीब 8 लाख सैनिक युद्ध के लगभग सभी मोर्चे पर लड़े. करीब 15 लाख ने स्वेच्छा से लड़ने की पेशकश की थी. इनमें से 47,746 को मृत या लापता और 65,000 को घायल के रूप में श्रेणीबद्ध किया गया. इस विश्वयुद्ध में भारतीय कोर ने 13,000 शौर्य मेडल जीते जिनमें 12 विक्टोरिया क्रॉस शामिल हैं. खुदादाद खान ने पहला विक्टोरिया क्रॉस जीता था. इस युद्ध के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था तकरीब दिवालिया की स्थिति में चली गई थी.