
देश में पहली बार न्यायपालिका में शुक्रवार को असाधारण स्थिति देखी गई. सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा 4 जजों ने मीडिया को संबोधित किया. चीफ जस्टिस के बाद दूसरे सबसे सीनियर जज जस्टिस चेलमेश्वर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि सुप्रीम कोर्ट का प्रशासन ठीक तरीके से काम नहीं कर रहा है, अगर ऐसे चलता रहा तो लोकतांत्रिक परिस्थिति ठीक नहीं रहेगी. उन्होंने कहा कि हमने इस मुद्दे पर चीफ जस्टिस से बात की, लेकिन उन्होंने हमारी बात नहीं सुनी.
इसके साथ ही जस्टिस चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को लिखे एक लेटर को भी सार्वजनिक किया. जजों ने बताया कि चार महीने पहले हम सभी ने चीफ जस्टिस को एक पत्र लिखा था. जो कि प्रशासन के बारे में थे, हमने कुछ मुद्दे उठाए थे लेकिन उन मुद्दों को अनसुना किया गया. जानिए इस लेटर में जस्टिस चेलमेश्वर सहित चारों जजों ने क्या प्रमुख बातें कही:
रोस्टर बनाने का अधिकार सही कामकाज के लिए, न कि वरिष्ठ बनने के लिए
जस्टिस चेलमेश्वर सहित 4 जजों ने लेटर में लिखा कि यह सत्य है कि चीफ जस्टिस के पास केस का रोस्टर बनाने का अधिकार होता है. हालांकि यह अधिकार सुप्रीम कोर्ट के कामकाज को सुचारू रूप से चलाने और उसमें अनुशासन रखने के लिए दिया गया है. इससे किसी को वरिष्ठ अथॉरिटी बनने का अधिकार नहीं मिल जाता है. ऐसे में चीफ जस्टिस खुद को अपने सहयोगियों से ऊपर नहीं समझ सकते हैं. देश के संविधान के मुताबिक चीफ जस्टिस बाकी जजों में पहले जरूर हैं, लेकिन किसी से बड़े नहीं और न ही किसी से छोटे हैं.
मुकदमों को योग्यता के आधार पर डील नहीं किया गया
जस्टिस चेलमेश्वर सहित 4 जजों ने जो महत्वपूर्ण आरोप लगाया है, उसमें यह भी शामिल है कि मौजूदा न्यायालय व्यवस्था में मुकदमों को उनकी योग्यता के अनुसार नहीं डील किया गया. जस्टिस चेलमेश्वर सहित 4 जजों ने लेटर में लिखा है कि यह जरूरी सिद्धांत है कि रोस्टर में मुकदमों को उनकी मेरिट के हिसाब से उन्हें सही बेंच को सौंपा जाए.
जस्टिस चेलमेश्वर और अन्य जजों ने आरोप लगाया कि हाल के दिनों में इस मूल नियम का पालन नहीं किया गया है. कई महत्वपूर्ण केस, जिनका देश और न्यायिक व्यवस्था पर खुद दूरगामी प्रभाव पड़ सकता था, वैसे मुकदमों को चीफ जस्टिस द्वारा अपने पसंदीदा बेचों को देने का काम किया गया. हालांकि कोर्ट से अपेक्षा थी कि मुकदमों का आवंटन तर्कसंगत तरीका से किया जाता.
नहीं किया और खुलासा जिससे सुप्रीम कोर्ट न हो और शर्मिंदा
जस्टिस चेलमेश्वर समेत सभी जजों ने अपने लेटर में यह भी जिक्र किया कि वह इस बारे में ज्यादा डिटेल में सिर्फ इसलिए जानकारी नहीं दे रहे हैं, क्योंकि इससे सुप्रीम कोर्ट को ज्यादा शर्मिंदगी झेलनी पड़ सकती है. हालांकि इस तरह का व्यवहार पहले ही सुप्रीम कोर्ट की गरिमा को कुछ हद तक चोट पहुंचा चुका है.
मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर बनाने में और देरी न हो
जस्टिस चेलमेश्वर और अन्य जजों ने अपने लेटर में आरपी लूथरा केस का जिक्र किया है. 4 जजों ने मांग की है कि लोकहित में यह जरूरी है कि मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर फाइनल करने में और देरी न की जाए. आपको बता दें कि इन जजों ने इस मांग से उस गंभीर चिंता की तरफ ध्यान आकर्षित है जिसके कारण हाईकोर्ट में जजों के कई पद रिक्त पड़े हैं. गौरतलब है कि इस मामले में 27 अक्तूबर को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर(MOP) में हो रही देरी पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था.
आपको बता दें कि लूथरा ने MOP के बिना हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. हाईकोर्ट के याचिका खारिज करने के बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की. पिछले साल जनवरी से ही सुप्रीम कोर्ट और सरकार MOP को फाइनल करने की कोशिश कर रहे हैं.
जजों ने सवाल उठाया है कि जब MOP से जुड़े सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ऑन रिकार्ड एसोसिएशन व अन्य बनाम भारत सरकार केस(2016) के केस को जब संवैधानिक बेंच द्वारा डील किया गया था तब लूथरा मामले में किसी और बेंच को डील करने का अधिकार कैसे दिया जा सकता था?
जस्टिस चेलमेश्वर सहित 4 जजों ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को लेटर में कहा है कि जब वह लूथरा केस से जुड़े विषयों को पर्याप्त रूप में डील कर लेंगे तब जरूरत पड़ने पर पूर्व में कोर्ट द्वारा पारित किए गए अन्य केसों के बारे में भी जानकारी दी जाएगी.
जस्टिस कर्नण केस का भी जिक्र किया
जस्टिस चेलमेश्वर और अन्य जजों ने अपने लेटर में सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के लिए 6 महीने जेल की सजा काटने के बाद रिहा हुए रिटायर्ड जस्टिस कर्णन के मामले का भी जिक्र इस पत्र में किया है. आपको बता दें कि 4 जुलाई 2017 के आदेश में जस्टिस जे. चेलामेश्वर और जस्टिस रंजन गोगोई ने अलग से लिखे जजमेंट में ये कहा था कि जो समस्या सामने आई है उसमें उनका ओपिनियन ये है कि संवैधानिक कोर्ट के लिए जजों की नियुक्ति के मामले में जो सेलेक्शन प्रक्रिया है उसे दोबारा देखा जाना चाहिए. साथ ही ऐसे मामले को डील करने के लिए महाअभियोग के अलावा कोई दूसरे सही कानूनी उपचार पर विचार होना चाहिए.
इसके साथ ही चारों जजों ने अपने लेटर में मांग की कि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा का यह कर्तव्य बनता है कि वे इन मामलों पर कार्रवाई करें और पूर्व में हुई गलतियों को सुधारे. साथ ही कॉलेजियम के दूसरे जजों से बात करें और जरूरत पड़े तो सुप्रीम कोर्ट के अपने साथी जजों से राय लेकर इन मामलों में सुधारात्मक कार्रवाई करें.