Advertisement

डोकलाम पर क्यों पीछे हटा चीन? ये 5 हालात हो सकते हैं कारण

भारत और चीन के बीच डोकलाम को लेकर चल रही तनातनी फिलहाल थम गई है. डोकलाम पर करीब दो महीने तक कड़े तेवर अपनाने वाला चीन आखिरकार पीछे हट गया है. इस मुद्दे को लेकर युद्ध की तैयारी तक कर चुके चीन के पीछे हटने की कई वजहें हो सकती हैं. जिनके चलते चीन भारत के साथ इस मुद्दे का कूटनीतिक हल निकालने के लिए तैयार हो गया है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी ब्रिक्स शामिल होंगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी ब्रिक्स शामिल होंगे
विजय रावत
  • नई दिल्ली,
  • 30 अगस्त 2017,
  • अपडेटेड 6:28 PM IST

भारत और चीन के बीच डोकलाम को लेकर चल रही तनातनी फिलहाल थम गई है. डोकलाम पर करीब दो महीने तक कड़े तेवर अपनाने वाला चीन आखिरकार पीछे हट गया है. इस मुद्दे को लेकर युद्ध की तैयारी तक कर चुके चीन के पीछे हटने की कई वजहें हो सकती हैं. जिनके चलते चीन भारत के साथ इस मुद्दे का कूटनीतिक हल निकालने के लिए तैयार हो गया है.

Advertisement

भारत का कड़ा रुख

दरअसल डोकलाम विवाद से भारत सीधे तौर पर नहीं जुड़ा है. डोकलाम की सीमा पर स्‍वामित्‍व को लेकर चीन और भूटान के बीच विवाद है. इस मामले में भारत हमेशा भूटान के साथ खड़ा रहा है. भारत ने अक्‍सर सभी विवादों का हल शांतिपूर्ण और कूटनीतिक तरीके से निकालने की पैरवी की है. संभव है कि चीन को भारत की इ‍तनी उग्र प्रतिक्रिया की उम्‍मीद नहीं रही होगी. ऐसे में भारत की तरफ से मुंहतोड़ जवाब देने की तैयारी ने उसकी रणनीति को धक्‍का दे दिया और उसने इस विवाद को कूटनीति तरीके से सुलझाना ही सही समझा.

ग्‍लोबल प्रेशर

डोकलाम पर चीन के कदम पीछे खींचने की सबसे बड़ी वजह ग्‍लोबल प्रेशर हो सकता है. ऑस्‍ट्रेलिया और अमेरिका पहले ही भारत के साथ हैं. हाल ही में जापान ने भी इस मुद्दे पर भारत का साथ देने की बात कही है. इसके अलावा भूटान, वियतनाम और दक्षिण कोरिया जैसे कई देश हैं, जो चीन के खिलाफ हैं. ऐसे में संभव है कि इन देशों की एकजुटता से पड़ने वाले ग्‍लोबल प्रेशर से खुद को बचाने के लिए चीन ने डोकलाम पर पीछे हटना सही समझा.

Advertisement

इसे भी पढ़े :- भारत-चीन सीमा पर विवाद कम होने से सेंसेक्स 155 अंक हुआ मजबूत

कारोबार

अगर भारत और चीन के बीच युद्ध छिड़ता तो चीन के कारोबार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता था. पिछले तीन दशक के दौरान चीन की अर्थव्‍यवस्‍था काफी तेजी से बढ़ी है. भारत लगातार चीनी मोबाइल कंपनियों का मैन्‍युफैक्‍चरिंग हब बनता जा रहा है. ऐसे में अगर चीन युद्ध से पीछे नहीं हटता, तो भारत में चीनी कंपनियो को नुकसान उठाना पड़ सकता था और इसका सीधा असर उसकी अर्थव्‍यवस्‍था पर पड़ता. 

लटक जाती वन बेल्‍ट वन रोड परियोजना

वन बेल्‍ट वन रोड- OBOR चीन की एक महत्‍वाकांक्षी योजना है. इसके जरिए वह एशिया, यूरोप और अफ्रीका के बीच व्‍यापार के नए आयाम खड़े करना चाहता है. भारत लगातार इस परियोजना का विरोध करता आ रहा है. चीन लगातार भारत को इसके लिए मनाने की कोशिश करता आ रहा है. अगर चीन युद्ध करने की जिद पर अड़ा रहता, तो उसे इस योजना पर भारत का साथ मिलना और भी मुश्किल हो जाता और उसकी महत्‍वाकांक्षी योजना अधर में लटक जाती.

इसे भी पढ़े :- चीन को सफल ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में समर्थन की उम्मीद, मोदी होंगे शामिल

ब्रिक्‍स सम्‍मेलन

ब्रिक्‍स सम्‍मेलन 3 से 5 सितंबर के बीच चीन के फुजियान प्रांत के शियामेन में आयोजित होने वाला है. इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल होंगे. चीन को इस सम्‍मेलन से काफी उम्‍मीदें हैं. इसी साल मार्च में चीन ने कहा था कि वह इस सम्‍मेलन के जरिए व्‍यापारिक और राजनीतिक सहयोग को बढ़ाना चाहता है. ब्रिक्स में चीन के अलावा ब्राजील, रूस, भारत और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं. डोकलाम पर पीछे न हटने का मतलब था कि इस सम्‍मेलन में भारत शायद अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करता. इसकी वजह से कई और सदस्‍य देश भी इस सम्‍मेलन से मुंह मोड़ सकते थे.

Advertisement

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement