
23 मार्च 1931को शाम में करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह और उनके दो साथी सुखदेव- राजगुरु को फांसी दे दी गई थी. जैसे ही फांसी के बारे में देशवासियों को मालूम चला तो चारों और शोक की लहर फैल गई.
इस फांसी से पहले देश को वीर जवानों को खोने का डर सता रहा था. कांग्रेस के भीतर भी कई ऐसे नेता थे, जो भगत सिंह की फांसी का खुलकर विरोध कर रहे थे.
भगतसिंह पर अपने शोध कार्य के लिए विख्यात जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के पूर्व प्रोफेसर चमनलाल से aajtak.in ने खास बातचीत की. उन्होंने बताया, "सुभाष चंद्र बोस का वीर क्रांतिकारियों के साथ इमोशनली अटेचमेंट काफी ज्यादा था. भूख हड़ताल के दौरान भारत के प्रसिद्ध क्रांतिकारियों में से एक जतीन्द्रनाथ दास यानी जतिन दास का देहांत 13 सितंबर 1929 को हुआ, तो सुभाष चंद्र बोस ने लाहौर से कलकत्ता (अब कोलकाता) तक ट्रेन से उनके शव को लाने का प्रबंध किया था. जब उनका शव कोलकाता पहुंचा तो 5 लाख लोग उनके लेने आए थे."
भगत सिंह के लेखों पर काम करने वाले चमनलाल ने बताया, "जेल में 19 अक्टूबर 1929 को लाहौर में स्टूडेंट यूनियन की कॉन्फ्रेंस हुई थी. उसी दिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस और बाबा गुरदीप सिंह भगत सिंह से मिलने गए थे. उस समय नेताजी और भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भगत सिंह की फांसी का विरोध किया था."
उन्होंने बताया, "नेताजी ने फांसी से तीन दिन पहले (20 मार्च को) दिल्ली में एक आंदोलन किया, जिसमें करीब 20,000 लोग शामिल हुए थे. जिसके बाद महात्मा गांधी से अनुरोध किया गया था कि नेताजी को ये विरोध प्रदर्शन रैली करने से रोका जाए. जिसके बाद गांधी ने कहा था- मैं नेताजी को नहीं रोक सकता, वह अपने मर्जी के मालिक हैं."
चमनलाल ने बताया कि "जिसके बाद नेताजी ने भगत सिंह की फांसी की जमकर विरोध किया. उन्होंने बताया जवाहरलाल नेहरू तो कई बातों में गांधी जी से दब जाते थे, लेकिन नेताजी बिल्कुल भी नहीं सुनते थे, कांग्रेस के किसी नेता ने अगर किसी का भगत सिंह की फांसी का जमकर विरोध किया है तो वह नेताजी सुभाष चंद्र बोस ही थे."