
जनता दल यूनाइटेड के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव को इस बार फिर से राज्यसभा का टिकट मिलेगा. ये सवाल है और सवाल लाजमी भी है. शरद यादव जब भी लोकसभा का चुनाव हारे उन्हें पार्टी ने राज्यसभा भेजा लेकिन इस बार पार्टी के अध्यक्ष नहीं हैं. पार्टी अध्यक्ष के कार्यकाल के 4 महीने पहले ही उन्हें पद छोड़ना पड़ा, अब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.
जेडीयू में राज्यसभा टिकट के कई दावेदार
सवाल यही है कि अगर पार्टी को शरद यादव को राज्यसभा भेजना है तो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से उन्हें समय से पहले क्यों पद छोड़ने को कहा गया. शरद यादव 1999 से जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे. 1999 में तो वो लोकसभा का चुनाव जीते और केन्द्र में मंत्री भी बने. लेकिन 2004 में वो मधेपुरा से लालू प्रसाद यादव से चुनाव हार गए फिर वो राज्यसभा चले गए. साल 2009 में फिर वो लोकसभा का चुनाव जीते. इसके बाद साल 2014 में शरद को फिर चुनाव में हार मिली और एक बार फिर राज्यसभा पहुंच गए. लेकिन यह दो साल का ही कार्यकाल था. इसलिए उन्हें फिर 2016 में राज्यसभा जाने की जरूरत है. लेकिन जेडीयू को इस बार दो को ही राज्यसभा भेजने की ताकत है, जबकि राज्यसभा से उसके पांच सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हो रहा है, जिसमें मुख्यमंत्री के सबसे करीबी आरसीपी सिंह भी शामिल हैं इसके अलाव केसी त्यागी भी नीतीश कुमार के गुड बुक में हैं.
शरद यादव को लेकर सस्पेंस
शरद यादव अगर राष्ट्रीय अध्यक्ष होते तो शायद उन्हें किसी से पूछने की जरूरत नहीं होती, लेकिन अभी कि परिस्थिति में उन्हें जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार की इच्छा पर रहना होगा. बाकी लोगों के नाम छोड़ दें तो ये तीन नाम आरसीपी सिंह, के सी त्यागी और शरद यादव के नामों की चर्चा जोरों पर हैं, शरद यादव का शानदार राजनीतिक करियर रहा है. मध्यप्रदेश में पैदा हुए और उत्तर प्रदेश के रास्ते बिहार को अपना घर बनाया और यहीं की राजनीति की. यादव के नेता लालू प्रसाद यादव की काट के लिए शरद यादव का इस्तेमाल किया गया. कई बार इसमें जेडीयू को सफलता भी मिली. लेकिन अब तो लालू प्रसाद यादव महागठबंधन में ही है. हालांकि पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि शरद यादव को टिकट नहीं मिला तो मैसेज गलत जाएगा.
कई बार पार्टी लाइन से हटकर दिए बयान
वहीं देखने से नीतीश कुमार और शरद यादव की जोड़ी अटूट लगती है लेकिन शरद यादव के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते कई बार नीतीश कुमार को परेशानी झेलनी पड़ी. ताजा उदारहण 2014 के राज्यसभा चुनाव में ही ऐसी परिस्थिति हुई कि नीतीश कुमार को अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को हार से बचाने के लिए लालू प्रसाद यादव से हाथ मिलानी पड़ी. जबकि साल 2015 के फरवरी में जब जीतनराम मांझी के इस्तीफा देने की बात चल रही थी उस समय शरद यादव की भूमिका को कई जदयू के वरिष्ठ नेता सही नहीं मानते हैं. आखिरकार मांझी ने विश्वासमत से पहले इस्तीफा दिया लेकिन उससे पहले नीतीश कुमार को राष्ट्रपति भवन तक विधायकों की परेड करानी पड़ी.
पार्टी में कई नेता शरद के बयान से सहमत नहीं
इसके अलावा 2014 के लोकसभा चुनाव में जब जदयू की संख्या दो पर सिमट गई. तब नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. हालांकि कायदे से जिम्मेदारी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव की होनी चाहिए थी. यही नहीं, शरद यादव ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा न देने के लिए दबाव डालने के बजाय ये कहा कि एक बार इस्तीफा देने के बाद वापस लेने का कोई मतलब नहीं है. नीतीश कुमार विधायकों के दबाव में शायद इस्तीफे का फैसला वापस लेते तो जीतनराम मांझी का राजनीतिक उदय नहीं होता.
पार्टी को खड़ा करने में शरद की अहम भूमिका
आज भले ही शरद यादव राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं हैं, लेकिन उनकी राजनीतिक उपयोगिता अभी कम नहीं हुई है, उनका अनुभव, राजनीतिक सूझबूझ के सभी कायल हैं. जेडीयू दिल्ली में और खासकर राज्यसभा में अपने मुद्दे उठाने के लिए उनका इस्तेमाल कर सकता है. नीतीश कुमार को भी 2019 की तैयारी के लिए शरद यादव का साथ चाहिए, वो नहीं चाहेंगे कि बीजेपी के खिलाफ उनका फ्रंट किसी हाल में कमजोर हो. लेकिन सवाल फिर वही दो टिकट में तीनों की नैय्या कैसे पार लगेगी. एक तर्क ये आ रहा है कि नीतीश कुमार के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद उन्हें बिहार के साथ-साथ पूरे देश में समय देना पड़ेगा, ऐसे में शायद वो आरसीपी सिंह को विधान परिषद का सदस्य बनाने का मन बनाए ताकि बिहार में उनकी अनुपस्थिति के दौरान वो बिहार का कामकाज देखे. तब केसी त्यागी और शरद यादव का राज्यसभा में जाना तय हो सकता है.