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कलाकार: पुलकित सम्राट, वरुण शर्मा, ऋचा चड्ढा, मनजोत सिंह और अली फैजल.
डायरेकटर: मृगदीप सिंह लांबा.
बॉलीवुड में यारी दोस्ती को लेकर जब कुछ किया जाता है, तो वह थोड़ी हलचल तो पैदा करता है. फिर चाहे वह 'डेल्ही बेली' हो या फिर हालिया 'यह जवानी है दीवानी.' वैसे भी इस काम में फरहान अख्तर के प्रोडक्शन हाउस को महारत हासिल है.
दोस्तों की कहानी पर बनी फिल्में 'दिल चाहता है' और 'जिंदगी न मिलेगी दोबारा' भी इन्हीं के प्रोडक्शन की है, और अब 'फुकरे' भी. फिल्म एकदम दिल्ली वाले अंदाज की है, जैसेः अगर तू मुझसे फ्रेंडशिप करेगी तो कन्नी दे दियो और भोली चिड़िया नहीं चील है, कॉफीन की आखिरी कील है. 'फुकरे' जल्द से जल्द पैसा कमाने वाले दोस्तों की कहानी है, जो जमकर हंसाती है लेकिन अंत थोड़ा खींचा हुआ है, वह परेशान करता है, बाकी फिल्म अगर दिल्ली की भाषा में कहें तो एकदम चौकस लगती है.
कहानी में कितना दम
'फुकरे' नई पीढ़ी के उन युवाओं की कहानी है, जो अपने ख्वाबों को शार्टकट के जरिये पूरा करने की हसरत रखते हैं. चार तिलंगों की कहानी. एक चूचा (वरुण शर्मा) है जिसे ख्वाब आते हैं. उसके ख्वाबों को इंटरप्रेट करने का काम हन्नी (पुलकित शर्मा) का है. इनके दो दोस्त हैं लाली (मनजोत सिंह) और जफर (अली जफर). एक सपना. उसका इंटरप्रेटेशन और फिर उसे पूरा करने के लिए खूंखार भोली पंजाबन (ऋचा चड्ढा) की शरण.
इसके बाद शुरू होती है सारी गड़बड़. फिल्म की कहानी कसावट भरी है, टाइमिंग जबरदस्त है. एग्जाम में ज्यादा नंबर लाने का जुगाड़, ज्यादा पैसा कमाने का जुगाड़... यानी हर काम में दिल्ली स्टाइल जुगाड़ यानी 'फुकरे' में युवाओं और कॉमेडी पसंद करने वालों के लिए हर मसाला है.
स्टार अपील
यह फिल्म बड़े-बड़े सितारों के कंधों पर नहीं टिकी है बल्कि छोटे-छोटे सितारों के बड़े काम पर टिकी है. कहानी में दम है, अंत में थोड़ा खिंचाव है, जो तंग करता है. यहां हीरो स्क्रिप्ट है. फिल्म में मनजोत सिंह और ऋचा चड्ढा की ऐक्टिंग जबरदस्त है. ऋचा धांसू लगती हैं. ऋचा चड्ढा ने दिखा दिया है कि वे बॉलीवुड में धमाल करने की कूव्वत रखती हैं. मनजोत की डायलॉग डिलीवरी कमाल है. हन्नी, चूचा, लाली और जफर ऐसे कैरेक्टर हैं, जो अधिकतर गली-मोहल्ले में देखने को मिल जाएंगे. 'तीन थे भाई' में मृगदीप सिंह लांबा जो चमत्कार नहीं कर सके, इस बार वे 'फुकरे' में दर्शकों को हंसाने में कामयाब हो गए हैं.
कमाई की बात
'डेल्ही बैली' का म्युजिक देने वाले राम संपत ने 'फुकरे' का संगीत भी दिया है. फुक फुक फुकरे, अंबरसरिया और जुगाड़ बढ़िया गाने हैं. 'डेल्ही बैली' के बाद 'फुकरे' ऐसी फिल्म है जिसमें दिल्ली को बेहतरीन ढंग से पेश किया गया है. फिल्म के वन लाइनर कमाल हैं. युवाओं के रंग में पगी यह फिल्म कॉमेडी के शौकीनों के लिए परफेक्ट वीकेंड डोज है.