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नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम पर बनी फिल्म 'गुमनामी' को लेकर विवाद

नेताजी के प्रपौत्र और जाने-माने इतिहासविद सुगातो बोस का कहना है कि इस फिल्म के जरिए नेताजी की छवि को नुकसान पहुंचाया गया है. इंडिया टुडे ने सुगातो बोस से इस मुद्दे के तमाम पहलुओं को लेकर बात की.

फिल्म को बताया इतिहास से खिलवाड़ फिल्म को बताया इतिहास से खिलवाड़
इंद्रजीत कुंडू
  • नई दिल्ली,
  • 24 अगस्त 2019,
  • अपडेटेड 9:52 AM IST

नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर बन रही नई फिल्म ‘गुमनामी’ को लेकर उनके परिवार के सदस्यों ने सख्त आपत्ति दर्ज कराई है. ये फिल्म राष्ट्रीय अवॉर्ड विजेता श्रीजीत मुखर्जी ने बनाई है. ‘गुमनामी’ दुर्गा पूजा की छुट्टियों में बंगाल के थिएटर्स में रिलीज हो सकती है. नेताजी के प्रपौत्र और जाने-माने इतिहासविद सुगातो बोस का कहना है कि इस फिल्म के जरिए नेताजी की छवि को नुकसान पहुंचाया गया है. इंडिया टुडे ने सुगातो बोस से इस मुद्दे के तमाम पहलुओं को लेकर बात की.

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सवाल- अभी जो आना है, उसको लेकर आपकी सख्त आशंकाएं हैं. आपने पूरी फिल्म कैसे देख ली जबकि अभी उसका टीज़र ही रिलीज़ हुआ है. 

सुगातो बोस- मुझे ये सोचना ही भयंकर लगता है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाम एक ही वाक्य में किसी गुमनामी बाबा के साथ लिया जाए. ये इतिहास का उपहास है और कला का मखौल, मैं समझ सकता हूं कि निर्देशक कहना चाह रहा है कि तीन तरह की कथित थ्योरीज़ हैं. ये पूरी तरह झूठ हैं. एक इतिहास है जिसमें बहुत सारे सबूत और चश्मदीदों के बयान हैं कि नेताजी ने 18 अगस्त 1945 को देश की स्वतंत्रता के लिए बलिदान किया.

दूसरी थ्योरी ऐसी है जिस पर अब भी विचार किया जा सकता है. ये है कि नेताजी को कौन सी जगह पहुंचना था. वो सोवियत के कब्ज़े वाले मंचूरिया पहुंचना चाहते थे. वहां तक संभव नहीं था तो कम से जापान पहुंच जाते. दुर्भाग्य से वे अपने ज्ञंतव्य तक नहीं पहुंच सके. क्योंकि ताइपे में जापानी बमवर्षक के साथ क्या हुआ.

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और तीसरे को थ्योरी भी कह कर उसकी महिमा नहीं बढ़ाई जा सकती. ये सब मनगढ़ंत है. ये कुछ दक्षिण पंथी लोगों का कपट है. उन्होंने ही ये झूठ फैलाया कि फैज़ाबाद के कोई गुमनामी बाबा ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस हैं. फिल्म उस किताब पर बनी है इसलिए मैं कड़े से कड़े शब्दों में ही उसकी निंदा कर सकता हूं. मैं समझता हूं फिल्म का निर्माता कहीं जेल में है. निर्देशक और कलाकार जो फिल्म में नेताजी सुभाष चंद्र बोस या गुमनामी बाबा का दोहरा रोल सोचेंगे या एक्टिंग करेंगे वो या तो मूर्ख हैं या फिर बहुत अनजान हैं. मैं अब देश के लोगों पर ही इसका फैसला छोड़ता हूं.

सवाल- लोकप्रिय सांस्कृतिक इतिहास अक्सर इतिहास की किताबों से नहीं आता फिल्मों से आता है. क्या यही डर है?

सुगातो बोस- ये खतरा हमेशा होता है. लेकिन दुर्भाग्य से हम फेक न्यूज़ और फेक इतिहास, दोनों के युग में जी रहे हैं. मैं उम्मीद करता हूं कि देश के लोग इतने समझदार होंगे जो देख सकें कि ये नेताजी के एक व्यक्ति के नाते, उनके स्वतंत्रता संघर्ष और असंख्य बलिदानों के इतिहास के साथ खिलवाड़ है. जो हम कर सकते हैं वो ये है कि हम उस गंभीर काम को आगे बढ़ा सकते हैं जो हमने नेताजी पर किया. अब मैं समझ सकता हूं कि मेरे पिता डॉ शिशिर बोस कितने दूरदृष्टिता वाले थे, जो उन्होंने 1957 में नेताजी रिसर्च ब्यूरो की स्थापना की.

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साथ ही नेताजी के सभी पत्रों, फोटो, लेखन, भाषण, आवाज की रिकॉर्डिंग और फिल्म फुटेज को संकलित किया जिससे कि आने वाली पीढ़ियां जान सकें कि नेताजी कौन थे? और उनका इस देश के लिए क्या योगदान था. अगर मेरे पिता ने ऐसा नहीं किया होता तो मैं डरता हूं कि लोगों को ऐसी मनगढ़ंत कहानियों को ही सुनना होता जो पूरी तरह बकवास हैं. हमने बस नेताजी से जुड़े ऐतिहासिक तथ्यों को मिटने से बचाने की कोशिश की है. मैं उम्मीद करता हूं कि भारत की युवा पीढ़ी इतनी परिपक्व होगी जो एक मृत्युरहित नायक के नाशवान अंत से जुड़ी बातों को समझ सकें.

सवाल- विरोध दर्ज कराने के अलावा बोस परिवार और क्या करने की सोच रहा है? क्या आप कानूनी दृष्टि से भी कुछ करने जा रहे हैं?

सुगातो बोस- यह आजाद भारत है. नेताजी ने हमारे देश की स्वतंत्रता के लिए अपना बलिदान दिया. एक फिल्म निर्माता या पूरी तरह कचरा एक पुस्तक के लेखक को नेताजी सुभाष चंद्र बोस का अपमान करने की स्वतंत्रता है. वो जो कर रहे हैं, हम ज्यादा से ज्यादा उसकी आलोचना कर सकते हैं, निंदा कर सकते हैं. साथ ही अपने देश के लोगों से उनसे गुमराह न होने की अपील कर सकते हैं जो नेताजी के नाम को कमतर करने के लिए एक व्यवस्थित अभियान चला रहे हैं. जब हम बड़े हो रहे थे तो हमने हर तरह की अफवाहें सुनीं.

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1960 के दशक में एक अफवाह थी कि शॉलमारी के एक साधु नेताजी थे. लेकिन यह गुमनामी बाबा की मनगढंत कहानी अफवाह की श्रेणी में नहीं आती है. यह दक्षिणपंथी लोगों के एक छोटे समूह की ओर से जानबूझकर और तेज़ाबी ढंग से पिछले दो दशकों से प्रचारित किया जाता रहा है. ये इससे ध्यान हटाने के लिए है कि नेताजी असल में क्या थे और उनका देश में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई एकता के लिए क्या योगदान था. साथ ही सभी क्षेत्रों के लोगों को एकजुट करने की उनकी क्या क्षमता थी. यही है वो जिसे आज की तारीख में हमें याद रखने की जरूरत है.

सवाल- क्या आप यह कहना चाह रहे हैं कि दक्षिणपंथी गुट की ओर से नेताजी की विरासत को हिंदू राष्ट्रवादी व्यक्ति की विरासत के रूप में दर्शाने के लिए ये प्रक्रिया अपनाई जा रही है?

सुगातो बोस- मुझे नहीं लगता कि मुख्यधारा के दक्षिणपंथी नेता भी हाशिए पर पहुंचे छोटे से इस दक्षिणपंथी गुट से सहमत होंगे. यह वास्तव में एक छोटा समूह है लेकिन उनके पास करने के लिए बेहतर कुछ नहीं है. वे लगातार इस झूठ का प्रचार करते रहे हैं. इसलिए मुझे उम्मीद है कि इस झूठ को बेनकाब किया जाएगा. यह दुखद है कि यहां बंगाल में एक फिल्मकार और एक लोकप्रिय अभिनेता इस किताब के आधार पर फिल्म बनाने के लिए साथ आए. ऊपर से उन्हें एक संदिग्ध निर्माता का साथ मिला.

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सवाल-  यह फिल्म नेताजी के ऊपर लिखी गई नई किताब पर आधारित है और इसके लेखक ने लिखावट विशेषज्ञ के आधार पर निष्कर्ष निकाला है कि "गुमनामी बाबा" असल में नेताजी हो सकते हैं. एक विशुद्ध इतिहासकार के दृष्टिकोण से, आप इस दावे को कैसे देखते हैं?

सुगातो बोस- यह सरासर बकवास है. क्या मुझे भी इस प्रकार के बेतुके दावे पर टिप्पणी करनी होगी? मुखर्जी आयोग ने मुझे लिखा था कि इस गुमनामी बाबा के डीएनए के साथ मिलान करने के लिए मेरे रक्त के नमूने चाहिए, क्योंकि कुछ लोग दावा कर रहे हैं कि यह आदमी कोई और नहीं बल्कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे. मैंने अपना खून न देने की बात कहते हुए बहुत कड़ा जवाब दिया. कहा कि ऐसी कोई भी बात करना नेताजी का घोर अपमान है. हालांकि परिवार के कुछ अन्य सदस्य थे जिन्होंने अपना रक्त नमूना दिया. और जाहिर है कि कोई मेल नहीं बैठा. लिखावट का मिलान करने के लिए भी कुछ कोशिश की गई थीं. ये बेतुका दावा उस रिपोर्ट में भी आधिकारिक तौर पर ख़ारिज़ कर दिया गया.

सवाल- फिल्म निर्माता ने दावा किया है कि यह फिल्म पूरी तरह से मुखर्जी आयोग के निष्कर्षों पर आधारित है. आपका क्या कहना है?

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सुगातो बोस-  मुझे लगता है कि यह केवल अदालत की चुनौतियों से खुद को बचाने के लिए कहा जा रहा है. वे यह दावा करने की कोशिश करेंगे कि यह फिल्म एक न्यायिक आयोग की कार्यवाही पर आधारित है. लेकिन असलियत में, फिल्म छोटे दक्षिणपंथी गुट की किताब पर आधारित है. ये नेताजी का सोच-समझ कर किया गया अपमान है. यहां तक ​​कि जो लोग विमान हादसे पर शक़ जताते हैं लेकिन समझदार और तर्कशील हैं, वे भी कहेंगे कि ऐसा विमान हादसा होने की 99 फीसदी संभावना है. क्योंकि बहुत सारे ऐतिहासिक सबूत मौजूद हैं.

कुछ खामियां हो सकती हैं लेकिन ये कम से कम 99 प्रतिशत संभावना वाली ऐतिहासिक घटना है. वहीं दूसरी पूरी तरह से मनगढ़ंत कहानी है जिसके असल में होने की शून्य संभावना है. 18 अगस्त 1945 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस और फैज़ाबाद के अयोध्या में 'गुमनामी बाबा' के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है. यह बहुत ही हास्यास्पद है लेकिन हमारे स्वतंत्रता संग्राम के महान नायक के लिए बहुत अपमानजनक है.

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