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जिंदगी बचाने के काम आया सोशल मीडिया

सोशल मीडिया की ताकत कौन नहीं जानता लेकिन लोगों को एक-दूसरे से जोड़ने और संवाद कायम करने वाला सोशल मीडिया कभी किसी की जान बचाने में भी कारगर साबित होगा, ये किसने सोचा होगा? लेकिन ऐसा हुआ, जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे तकी हसन को सोशल मीडिया ने नई जिंदगी दी.

ऑपरेशन के बाद डॉक्टरों की टीम के साथ तकी हसन ऑपरेशन के बाद डॉक्टरों की टीम के साथ तकी हसन
मोनिका शर्मा/रोशनी ठोकने
  • लखनऊ,
  • 06 दिसंबर 2016,
  • अपडेटेड 8:54 PM IST

सोशल मीडिया की ताकत कौन नहीं जानता लेकिन लोगों को एक-दूसरे से जोड़ने और संवाद कायम करने वाला सोशल मीडिया कभी किसी की जान बचाने में भी कारगर साबित होगा, ये किसने सोचा होगा? लेकिन ऐसा हुआ, जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे तकी हसन को सोशल मीडिया ने नई जिंदगी दी.

33 साल के लखनऊ निवासी तकी हसन पेशे से इलेक्ट्रीशियन का काम करता है. तकी अपने सपनों को पूरा करने के लिए विदेश गया था. एक हादसे का शिकार होने के बाद तकी को मालूम पड़ा कि उसके दाईं आंख के ऊपर माथे में एक ट्यूमर है. लिहाजा अपना इलाज कराने के लिए वो वतन लौट आया. इसके बाद मानों तकी के सपने एक-एक करके टूटने लगे.

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बार-बार लौट आता ट्यूमर
बीमारी की वजह से तकी शारीरिक कमजोरी के साथ-साथ भावनात्मक रुप से भी कमजोर पड़ना लगा. और इसकी वजह थी वो गंभीर बीमारी, जो एक-दो नहीं बल्कि चार सर्जरी के बाद भी बार-बार तकी की जिंदगी में लौट रही थी. तकी हसन के मुताबिक, एक-दो नहीं चार-चार बार सर्जरी होने के बावजूद 10-15 दिनों बाद ही तकी के सिर में फिर से दर्द शुरु हो जाता.

कैंसर जैसी थी बीमारी
धीरे-धीरे तकी का वजन गिरने लगा था. शारीरिक कमजोरी के साथ-साथ तकी भावनात्मक रूप से कमजोर हो गया. आर्थिक हालात भी खस्ता होते जा रहे थे. दरअसल तकी हेड सरकोमा बीमारी से ग्रसित था. विशेषज्ञों के मुताबिक ये बीमारी एक तरह का कैंसर है, जिसकी वजह से तकी के माथे पर एक ट्यूमर बार-बार उभर रहा था. चार-चार सर्जरी के बावजूद ये गंभीर बीमारी तकी का पीछा नहीं छोड़ रही थी और केस बिगड़ता जा रहा था.

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बचने की हालत में नहीं तकी हसन
धीरे धीरे कैंसर का ये इंफेक्शन तकी के दाईं आंख तक पहुंच गया और तकी को अपनी एक आंख गंवानी पड़ी. हेड, नेक एंड ब्रेस्ट ऑन्कोप्लास्टी विभाग, फोर्टिस हॉस्पिटल के प्रमुख डॉ मनदीप मल्होत्रा ने बताया कि जब तकी अस्पताल में आया तो उसकी हालत बहुत नाजुक थी. लगभग एक आंख जा चुकी थी और इंफेक्शन धीरे-धीरे ब्रेन तक पहुंच गया था. ट्यूमर ऑर्बिट तेजी से चेहरे पर फैल रहा था. जिस हालात में तकी हसन फोर्टिस पहुंचा था, ऐसे मरीजों के बचने की संभावना बहुत कम होती है. जानकारों के मुताबिक ऐसे केसों में 30 फीसदी लोग इंफेक्शन की वजह से लंबे समय तक बीमारी से जुझते रहते हैं.

सोशल मीडिया से मिली बड़ी आर्थिक मदद
तकी की हालत इतनी खराब हो चुकी थी कि इंफेक्शन उसकी दूसरी आंख और ब्रेन तक पहुंच रहा था और उसके पास किसी प्राइवेट और बड़े अस्पताल में इलाज कराने के लिए पैसे नहीं थे. लिहाजा तकी के परिवार वालों को सूझा कि सोशल मीडिया से मदद मांगी जाए. फिर क्या था फेसबुक और वॉट्सएप्प के जरिए तकी के रिश्तेदारों ने मदद की गुहार लगाई और देखते ही देखते ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के सिख और मुस्लिम कम्युनिटी से दुआओं के साथ पैसों का भी इंतजाम हो गया. सोशल मीडिया की मदद से तकी के परिवार वालों को करीब 8 लाख रुपये मिले जिससे वसंत कुंज फोर्टिस अस्पताल में तकी हसन का जटिल ऑपरेशन संभव हुआ.

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आसान नहीं था तकी का ऑपरेशन
ऑपरेशन के लिए रकम का इंतजाम जरूर हो गया था लेकिन ऑपरेशन इतना आसान भी नहीं था क्योंकि ये अपनी तरह का पहला केस था, जिसमें राइट साइड का स्कल पूरी तरह डैमेज हो गया था और उसे रिकवर करते हुए मरीज की जान बचाना भी डॉक्टरों के लिए चुनौती थी. 16 घंटे तक चले इस ऑपरेशन में मरीज के चेहरे को कमर की स्किन से दोबारा बनाया गया. और तकी हसन ने मौत की ये जंग जीत ली क्योंकि उसके साथ लोगों की दुआएं थीं और कहते है न जब ऊपर वाला साथ हो तो मौत भी आने से घबराती है.

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