
एक पल में क्या से क्या हो गया, एक अंधेरी रात की सुबह अभी होनी थी कि सूरज उगने से पहले ही कई घरों के चिराग बुझ गए. लोग अपनी मंजिल के लिए निकले थे लेकिन इन्हें क्या पता था कि इनकी मंजिल बदकिस्मती की उस मोड़ पर खड़ी होने वाली है, जहां आंसुओं के सिवा कुछ नहीं होगा. इंदौर से चली कई जिंदगियों के लिए मंजिल कहीं और थी लेकिन कानपुर के पुखराया के पास उनमें से कईयों को मौत की मंजिल मिल गई. अब तक 126 लोगों की मौत की खबर है, जबकि 50 से लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं और 150 लोगों को हल्की चोटें आई हैं. इससे कहीं ज्यादा लोग अपनों को तलाश रहे हैं. कई पिता ऐसे हैं जो खुद तो बच गए लेकिन उनकी प्यारी लाडली कहां है, ये पता नहीं है.
इंदौर पटना एक्सप्रेस रेल हादसे में बहुत सारे परिवार बिखर गए. कईयों ने अपनों का शव पाया तो कई लोग अपनों को तलाश रहे हैं. कहीं कोई पिता अपने बेटे को तो कोई बेटा अपने मां को खोज रहा है. लोग यहां से वहां बदहवाश भाग रहे हैं. लेकिन अपनों की सुध नहीं मिल रही. प्रशासन कह रहा है कि लापता लोगों का पता लगाने के लिए वो जी जान से जुटा है.
प्रभु जी की रेल तो मानो प्रभु के भरोसे ही चल रही है. किराये में चोरी चुपके जब तब बढ़ोतरी हो जाती है और वो भी सेफ्टी के नाम पर, लेकिन सेफ्टी का आलम देखिए कि सैकड़ों लोग मौत के मुंह में समा गए और कितने लापता हैं, ये पता नहीं. सरकार के पास घड़ियाली आंसू बहाने के सिवा कुछ बचा क्या है.
दरअसल कानपुर के पास इंदौर पटना एक्सप्रेस पटरी से नहीं उतरी है, बल्कि पटरी से उतरी हैं सैकड़ो जिंदगियां. पटरी से उतरी हैं सैकड़ों उम्मीदें और पटरी से उतरे हैं सैकड़ों भविष्य. पटरी से वो सिस्टम उतरा है, जो रेलवे को सर्वश्रेष्ठ बनाने की बात करता है और पटरी से उतरा है वो दावा, जिसमें बुलेट ट्रेन दौड़ाने की बात की गई लेकिन यहां तो मामूली ट्रेन भी डीरेल हो जाती है. जब सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो गई तो सरकार ने ऐलान किया कि जांच करेंगे, दोषियों को भरपूर सजा देंगे.
घटनास्थल पर पहुंचे रेल मंत्री
इस रेल हादसे से हुकूमत को उस वक्त मुंह चिढ़ाया है जब रेलवे के विकास शिविर में जीरो एक्सीडेंट मैकेनिज्म पर सरकारी मंथन चल रहा था. रेल मंत्री सुरेश प्रभु सूरजकुंड के उस शिविर से घटनास्थल के लिए निकल पड़े. घटनास्थल के बाद रेल मंत्री अस्पताल में जाकर घायलों से मिले. सुरेश प्रभु ने अधिकारियों से पूरी घटना का जायजा लिया. उन्होंने कहा कि पीड़ितों और घायलों को मदद पहुंचाना उनकी पहली प्राथमिकता है. साथ ही रेल मंत्री ने आश्वासन दिया कि हादसे को लेकर यूपी सरकार से भी बात की जाएगी.
प्रभुजी की रेल का किराया बढ़ता रहा और अपने बजट में वो हमेशा दावा करते रहे कि यात्रियों की सुरक्षा ही उनका मकसद है. लेकिन करीब सवा लाख करोड़ के रेल बजट में कहां पीछे छूट गई वो सुरक्षा, जिसकी दुहाई बार बार दी गई. रेलवे का 2016-17 का अनुमानित बजट एक लाख 21 हजार करोड़ का है, जिसमें पिछले बजट की तुलना में 21 फीसदी का इजाफा हुआ है. रेलवे की सुरक्षा पर बजट में 2661 करोड़ रुपये का प्रावधान है. इनमें 60 फीसदी रकम पटरियों के नवीनीकरण और रखरखाव पर खर्च होती है जबकि 25 फीसदी रकम दुर्घटनारोकी उपकरणों पर. फिर भी रेलवे अपनी टूटी फूटी पटरियों पर मौत बांटता फिर रहा है और सरकार के पास शोक संवेदना के सिवा कुछ बचता नहीं.
प्रधानमंत्री ने सुरेश प्रभु को रेल मंत्री बनाया था कि वो रेल को कमाई और सुरक्षा की पटरी पर ले आएंगे लेकिन प्रभु के राज में रेलवे पर कई सवाल उठा रहा है.
1. पुखराया में रेल ट्रैक में टूट थी तो इसका पता पहले क्यों नहीं चला?
2. ट्रैक में दरार थी तो ट्रेन चलाने का फैसला क्यों लिया गया?
3. किराया तो बढ़ जाता है लेकिन सफर में सुरक्षा की गारंटी क्यों नहीं लेती सरकार?
4. पुलों और पटरियों पर ठोस योजना कब तक बनेगी?
5. आखिर रेलवे में सुरक्षा श्रेणी में 86 हजार से ज्यादा पोस्ट खाली क्यों पड़े हैं?
6. क्या ऐसी ही बदइंतजामी की पटरी पर दौड़ेगी बुलेट ट्रेन?
हाल के सालों में इतना बड़ा रेल हादसा नहीं हुआ था. कानपुर के पुरखाया में जो कुछ हुआ, उसके बाद वहां अफरातफरी का ऐसा आलम है कि लोग अपनों को ढूंढ़ भी नहीं पा रहे. कोई अस्पताल में भाग रहा है तो कोई पोस्टमार्टम हाउस में. बस यही उम्मीद कि जिन अपनों को तलाश रहे हैं, वो सही सलामत मिल जाएं. कानपुर के पुखराया में पटना-इंदौर एक्सप्रेस की बोगियों की तस्वीर बता रही है कि लोग कितने दर्दनाक हादसे से गुजरे हैं. हम आपको बताते हैं कि कैसे इतना बड़ा हादसा हुआ कि एक झटके में सौ से ज्यादा जिंदगियां मौत में विलीन हो गईं.
वक्त: सुबह 3 बजकर 10 मिनट
जगह: कानपुर के पुखराया
ट्रेन: इंदौर से पटना जा रही पटना-इंदौर एक्सप्रेस
कानपुर से करीब 60 किलोमीटर दूर पुखराया नाम की जगह पर एक जबरदस्त झटके के साथ ट्रेन की 14 बोगियां एक के बाद एक पटरी से उतरती चली गईं. ट्रेन अपनी पूरी रफ्तार में थी और बोगियां एक दूसरे से टकराती हुई जमीन पर गिर रही थी. ये भोर का वो वक्त था, जब नींद चरम पर होती है, लोग गहरी नींद में थे. कुछ की आंखें तो इस हादसे में उसी वक्त हमेशा के लिए बंद हो गईं. जिनकी आंखें खुलीं, उनके लिए आगे का मंजर किसी भयावह सपने से भी ज्यादा, बहुत ज्यादा बुरा था.
एक बार जब रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू हुआ तो भयावह तस्वीरें सामने आने लगीं. कानपुर देहात के माती पोस्टमार्टम हॉउस हिन्दुस्तान के सबसे खौफनाक रेल हादसों में से एक इस हादसे का निर्मम गवाह बन गया. कर्मचारियों को समझ नहीं आ रहा कि रजिस्टर में बढ़ती गिनती का क्या करें और अपनों को ढूंढने वाले लोगों को कैसे समझाएं.
सिस्टम को लेकर लोगों में गुस्सा
अस्पताल के बिस्तर पर कराहते हुए लोगों को देखकर आपका दिल ये सवाल पूछने पर मजबूर हो जाएगा कि आखिर हिंदुस्तान की लाइफलाइन समझी जाने वाली रेलवे कब तक मौत ढोती रहेगी. इसी ट्रेन में मोनू विश्वकर्मा थे, जिनकी जिंदगी रविवार सुबह तीन बजे के करीब यूं बदली कि अब ट्रेन में चढ़ने से पहले ये हजार बार सोचेंगे. मोहम्मद मुनाजिर भी इस ट्रेन पटना के लिए निकले थे, इंदौर में अच्छा खासा कारोबार चल रहा था. जिंदगी मजे से पटरी पर दौड़ रही थी, पहले नोटबंदी की मार पड़ी और बोरिया बिस्तर बांधना पड़ गया. इंदौर से पटना का सफर आधा पूरा होता उससे पहले जिंदगी एक और हादसे का शिकार हो गई.
ऐसी कई कहानियां इंदौर, कानपुर से लेकर पटना तक सुनाई पड़ रही हैं. ट्रेन में सफर कर रहे पूरे परिवार में से कोई बचा तो कोई मौत के मुंह में चला गया. कुछ की लाश मिली तो कुछ के बारे में ये भी नहीं पता कि सांसें चल रही हैं या बंद हैं. सैकड़ों परिवार बुरी खबर का दिल थामकर इंतजार कर रहा है.
अपनों की तलाश में भटकते लोग
एक हादसा कितनों की जिंदगी तबाह कर जाता है, इसकी बानगी पटना से 21 लोगों का एक दल तीर्थाटन पर शिरडी और इंदौर गया था, शनिवार को इसी ट्रेन से घर वापसी थी. उस दल में में एक परिवार की आपबीती आपको इनकी दिमागी हालत का अहसास करा देगी. इसी ट्रेन से पटना का ही एक और परिवार घर लौट रहा था, पिता सलामत हैं, लेकिन मां की कोई खबर नहीं है. पटना स्टेशन पर तो मंजर और डराने वाला है. यहां गोपाल प्रसाद अपने लापता रिश्तेदारों की खोज खबर लेने पहुंचे. परिवार के सात लोग इसी ट्रेन से पटना आ रहे थे. काफी छानबीन के बाद पता चला कि तीन लोग अस्पताल में भर्ती हैं लेकिन बाकी का पता नहीं.
तलाश सिर्फ अपनों की नहीं है बल्कि तलाश उस सिस्टम की भी है, जो गाहे बगाहे मौत बांटती है, वो सिस्टम जो रेलवे की सुरक्षा के नाम पर आपकी जेब तो ढीली करता है लेकिन टूटी हुई पटरियों, दरके हुए पुलों और खस्ताहाल रेलवे को सुधारने के नाम पर ढीला-ढाला रवैया रखता है, नतीजा आपके सामने है. पुरखाया का रेल हादसा सिस्टम के सामने सबसे बड़ा सवाल है.
आज के हादसे ने साबित कर दिया रेलवे का सुरक्षा चक्र बेहद कमजोर है. हादसे रूक नहीं रहे, सरकार आती है, नए रेल मंत्री आते हैं लेकिन हादसे अपनी ही रफ्तार में होते रहते हैं. ऐसे फैक्टस बताते हैं जिनसे आपको ये समझने में आसानी होगी की आपकी मंगलमय यात्रा की कामना करने वाली रेलवे सुरक्षा इंतजामों पर अमल करने में कितनी सुस्त है.
1. रेलवे की सुरक्षा से संबंधित काकोदर कमेटी ने कई अहम सिफारिशें की थीं जो आज भी ठंडे बस्ते में धूल खा रही हैं.
2. समिति ने कहा था कि अगर भारतीय रेलवे ने जल्द ही जरूरी इंतजाम नहीं किए तो रेलवे का पूरा सिस्टम ध्वस्त हो सकता है.
3. काकोदर कमेटी ने रेलवे सेफ्टी ऑथरिटी बनाने की सिफारिश की थी जिस पर अमल नहीं हुआ.
4. कमेटी की वो सिफारिश भी टांय-टांय फिस्स ही रही जिसमें पांच सालों के भीतर करीब 19 हजार किलोमीटर रेल रूट पर एडवांस सिग्नल सिस्टम लगाने को कहा गया था. इसमें 20 हजार करोड़ रुपए खर्च होना था.
5. कमेटी ने 50 हजार करोड के खर्च पर देश भर की रेलवे क्रांसिंग को अपडेट करने की सिफारिश की थी.
6. कमेटी की उस सिफारिश पर भी आधे-अधूरे तरीके से अमल हुआ जिसमें 10 हजार करोड़ की लागत से आधुनिक एलएचबी डिब्बे लगाने को कहा गया था.
रेलवे में खाली हैं लाखों पद
फेडरेशन के मुताबिक रेल मंत्रालय का विजन स्पष्ट नहीं है. रेलवे के सेफ्टी और सेक्यूरिटी डिविजन में करीब डेढ़ लाख पद खाली हैं. वहीं NCR डिविजन में दो हजार गैंगमैन के पद खाली हैं. रेल सुरक्षा से जुड़ी काकोड़कर समिति की रिपोर्ट को अभी लागू करना बाकी है. साथ ही रेलवे में बचाव और सुरक्षा के लिए डेढ़ लाख करोड़ रुपयों की दरकार है, लेकिन इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया है.
रतन टाटा की अध्यक्षता में कायाकल्प समिति बनाई गई थी. पिछले साल इस समिति की बैठक में सुरक्षा को लेकर कई बातें की गई थीं, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. उस दौरान रतन टाटा की तबीयत ठीक नहीं थी और अब उनके पास वक्त की कमी है.