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30 जनवरी पर विशेष: गांधी तो अपने मन के मालिक थे

गांधी का मानना था कि युवा औरतों के साथ उनकी अंतरंगता आत्मा को मजबूती प्रदान करने वाली एक अभ्यास प्रक्रिया थी.

दिल्ली के बिरला हाउस में प्रार्थना सभा में गांधी, उनकी बाईं ओर आभा और मनुबेन दिल्ली के बिरला हाउस में प्रार्थना सभा में गांधी, उनकी बाईं ओर आभा और मनुबेन
संदीप कुमार सिंह
  • नई दिल्‍ली,
  • 26 जून 2013,
  • अपडेटेड 9:12 AM IST

गांधी का मानना था कि युवा औरतों के साथ उनकी अंतरंगता आत्मा को मजबूती प्रदान करने वाली एक अभ्यास प्रक्रिया थी.

महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा द स्टोरी ऑफ माय एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रुथ में अपनी खुराक, अपनी सेहत की देखभाल और महिलाओं के साथ संबंधों के मामले में अपने विभिन्न प्रयोगों का जिक्र किया है जिन्हें उनके निकटतम अनुयायी और प्रशंसक भी सनक मानते थे. गांधी एक बार जो ठान लेते थे, उस आदत को शायद ही कभी छोड़ते थे. वे हर ‘‘प्रयोग’’ को तब तक जारी रखते थे जब तक उनकी ‘‘अंतरात्मा’’ उसे छोडऩे को न कहे. एक ‘महान आत्मा’ और महायोगी सरीखे गांधी अपने मस्तिष्क की शक्तियों को लेजर की तरह अचूक ढंग से हर उस बात पर केंद्रित कर देते थे जिससे वे जूझ रहे होते थे. वे अपनी पूरी मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति से हर लक्ष्य को साधने की कोशिश करते थे. उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य अत्याचारी ब्रिटिश शासन और पूर्वाग्रहों से ग्रस्त उसके अक्खड़ एजेंटों से अहिंसक संघर्ष करना था. उन्होंने इस काम में सत्य और अहिंसा नाम के दो सिद्धांतों को हमेशा अपनाए रखा.

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उन्होंने कुछ और यौगिक शक्तियों का भी प्रयोग किया जिनमें अपरिग्रह यानी गरीबी में जीवन बिताने की कसम और ब्रह्मचर्य शामिल हैं. गांधी ने 37 वर्ष की आयु में 1906 में दक्षिण अफ्रीका में अपने चौथे बेटे के जन्म के बाद ब्रह्मचर्य का व्रत लिया और उसके बाद से अपनी पत्नी कस्तूरबा के साथ कभी नहीं सोए. उन्होंने संकल्प लिया, ‘‘अब संतानोत्पति और धन-संपत्ति की लालसा त्यागकर वानप्रस्थ जीवन जिऊंगा. मैं उस सांप से भागने की प्रतिज्ञा ले रहा हूं जिसके बारे में मुझे पता है कि वह मुझे अवश्य डसेगा.’’ शुरू में गांधी के लिए सेक्स और संतानोत्पति की लालसा से दूर रहना बहुत आसान रहा. उन्होंने लिखा, ‘‘जब इच्छा खत्म हो जाए तो त्याग की शपथ सहज...फल देती है.’’ लेकिन पंद्रह साल बाद पहला राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह छेडऩे के बाद गांधी ने स्वीकार किया कि विजय जब सबसे निकट दिखाई दे तब खतरा सबसे अधिक होता है. ईश्वर की अंतिम परीक्षा सबसे कठिन होती है. शैतान की अंतिम लालसा सबसे अधिक सम्मोहक होती है.

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रोम्या रोलां उन्हें ‘‘दूसरा ईसा मसीह’’ कहते थे. मैडलिन स्लेड को गांधी के बारे में उन्होंने ही बताया उसके तुरंत बाद मैडलिन भारत में गांधी के आश्रम में रहने चली आईं और गांधी ने उनका नामकरण मीराबेन कर दिया. गांधी की एक और उत्कृष्ट अनुयायी बनने वाली वे एकमात्र समर्पित पश्चिमी महिला नहीं थीं. इससे पहले दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में गांधी के लॉ ऑफिस में 17 वर्षीया मिस ‘‘लेसिन उनकी ‘सबसे निष्ठावान और निडर’ सचिव बन गई थीं.

गांधी किसी भी बुरे विचार, बुरे काम या किसी भी प्रकार के रोग को दूर रखने के लिए सबसे पहले राम नाम का सहारा लेते थे. लेकिन साथ ही वे खान-पान के सख्त नियमों का भी सख्ती से पालन किया करते थे. उन्होंने घनश्याम दास बिरला से कहा था: ‘‘अगर तुम नमक और घी खाना छोड़ दो...तो तुम्हारे अंदर पैदा होने वाली जुनूनी भावनाएं अवश्य ही शांत होंगी. मसालों और पान तथा ऐसी अन्य वस्तुओं का त्याग भी जरूरी है. सिर्फ खान-पान पर कुछ सीमाएं लगा देने से सेक्स और उससे जुड़ी लालसाओं को शांत नहीं किया जा सकता.’’

मीराबेन गांधी पर इस कदर निर्भर हो गईं कि जब भी उन्हें आश्रम से कहीं बाहर जाना होता तो वे अवसाद में चली जाती थीं और जो भी महसूस करतीं, रोजाना उन्हें लिखकर भेजतीं. उनका जवाब आता, ‘‘अगर विछोह असहनीय हो जाए तो तुम अवश्य चली आना.’’ गांधी के पत्रों में चेतावनी भी होती थी, ‘‘टूटना मत...तुम्हें खुद को फौलादी इरादों से लैस करना होगा. यह हमारे काम के लिए जरूरी है.’’

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महात्मा के प्रशंसक जब सेक्स को त्यागने के लिए उनका अनुसरण करने की कोशिश करते थे तो उन्हें पत्र लिखकर सलाह मांगा करते थे. ‘‘जब दिमाग में बुरे ख्याल हिलोरें मारने लगें...तो किसी भी इनसान को किसी और काम में खुद को व्यस्त कर लेना चाहिए. अपनी निगाहों को अपनी इच्छाओं का गुलाम मत बनने दो. अगर निगाहें किसी औरत पर पड़ें तो तुरंत उसे फेर लो. यौन सुख की कामना चाहे पत्नी के साथ हो या किसी अन्य औरत के साथ, समान रूप से अपवित्र है.’’

गांधी 69 वर्ष के थे जब कपूरथला रियासत की राजकुमारी अमृत कौर ने उनके आश्रम में मीरा की जगह ली. उन्होंने बतौर उनकी ‘‘बहन’’ आश्रम में जगह पाई. उनके सामने गांधी ने माना: ‘‘मुझे यौन सुख की कामना पर जीत हासिल करने में सबसे अधिक कठिनाई पेश आई...यह निरंतर जारी रहने वाला संघर्ष था.’’ अपने ब्रह्मचर्य को ‘‘परखने’’ तथा और अधिक ‘मजबूत’ करने के लिए गांधी आश्रम की कई युवा सदस्यों के साथ नग्न अवस्था में सोने लगे.

उन्हें यकीन था कि अपने ‘‘ब्रह्मचर्य’’ के तप के दम पर वे पूर्वी बंगाल और बिहार के जलते गांवों और अंतत: समूचे भारत वर्ष में हिंदू-मुस्लिम एकता और अहिंसा भरी शांति स्थापित कर सकेंगे. लेकिन अपनी अंतरात्मा का मंथन करने के बाद गांधी को विश्वास हो गया कि युवतियों के साथ निकटता में उन्हें जिस मातृ प्रेम की अनुभूति होती है उसने रहस्यमय ढंग से उनके भीतर अहिंसा और ब्रह्मचर्य को और अधिक मजबूती प्रदान की है. उन्होंने लिखा है, ‘‘मैं न भगवान और न ही शैतान को फुसला सकता हूं.’’ अपने सचिव प्यारेलाल की बहन डॉ. सुशीला नय्यर को भी वे अपनी पत्नी कस्तूरबा के समान ही मानते थे और उन्हें भी अपनी ‘‘बहन’’ ही कहते थे.

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बीमार पत्नी के साथ अपने जीवन के अंतिम दो साल गांधी ने पुणे में आगा खां के पुराने महल में ब्रिटिश हुकूमत की कैद में एक साथ गुजारे. 22 फरवरी, 1944 को कस्तूरबा के निधन के बाद गांधी को उनकी दत्तक ‘‘पोती’’ मनु ने संभाला. वे खुद को उसकी माता मानते थे.

अपने जीवन के अंतिम साल में गांधी ने पूर्वी बंगाल में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच शांति स्थापना की कोशिश में अंतिम पद यात्रा की. शुरू में वे गांव-गांव अकेले घूमते रहे लेकिन फिर मनु उनके साथ आ गईं और अंत तक ‘‘सहारा’’ बनकर उनके साथ रहीं. गांधी के बंगाली सचिव निर्मल बोस ने बताया था कि उन्होंने गांधी को अपने आपको ‘‘थप्पड़’’ मारते और यह कहते सुना, ‘‘मैं महात्मा नहीं हूं...मैं तुम सब की तरह सामान्य व्यक्ति हूं और मैं बड़ी मुश्किल से अहिंसा को अपनाने की कोशिश कर रहा हूं.’’ सुशीला नय्यर भी उनके और मनु के साथ आ जुड़ीं, लेकिन जल्द ही चली भी गईं. उनके टाइपिस्ट और शॉर्टहैंड सचिव भी उन्हें उस समय छोड़कर चले गए जब उन्होंने उन्हें नंगा सोते देखा. और प्यारेलाल ने गांधी को यह बुदबुदाते सुना था: ‘‘मेरे अंदर ही कहीं कोई गहरी कमी रह गई होगी, जिसे मैं ढूंढ़ नहीं सका...क्या मैं अपने रास्ते से भटक गया हूं?’’

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मीरा ने जब सुना कि मनु अकेली गांधी के साथ सो रही हैं तो उन्होंने अपनी गंभीर चिंता जाहिर की. गांधी ने जवाब दिया, ‘‘इस बात की चिंता मत करो कि मैं जो कुछ कर रहा हूं उसमें कितना सफल हो रहा हूं. यदि मैं अपने अंदर के विकार दूर करने में सफल रहा तो ईश्वर मुझे अपना लेगा. मैं जानता हूं कि उसके बाद सब कुछ सच हो जाएगा.’’ फिर भी अपने भीतर की ‘बड़ी कमी’ की चिंता उन्हें सालती रही. उन्होंने अपनी डायरी में लिखा, ‘‘सिर्फ ईश्वर की कृपा ही मुझे सहारा दे रही है, मुझे दिखाई दे रहा है कि मेरे भीतर कोई बड़ी कमी है...मेरे चारों ओर गहन अंधकार है.’’

स्टेनले वोलपर्ट, लॉस एंजिलिस की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में इंडियन हिस्ट्री के प्रोफेसर एमेरिटस हैं.
सभी उद्धरण वोलपर्ट की पुस्तक गांधीज़ पैशन: द लाइफ ऐंड लेगेसी ऑफ महात्मा गांधी (ऑक्सफोर्ड यूपी, 2001) से हैं.

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