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यह एक कामयाब एनकाउंटर था. पर विडंबना देखिए कि जिस राज्य में यह हुआ, उसकी पुलिस को इसकी भनक तक न थी. दरअसल, हाल ही में पंजाब पुलिस ने श्रीगंगानगर के पास राजस्थान की सीमा में दाखिल होकर विक्की गौंडर और प्रेम लाहौरिया समेत तीन दुर्दांत अपराधियों को भीषण मुठभेड़ में मार गिराया.
राजस्थान पुलिस का स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप भी इन अपराधियों की तलाश में था, पर एनकाउंटर के बारे में पंजाब पुलिस ने इस ग्रुप को कोई इत्तला नहीं की थी. इससे पहले भी ऐसे चार एनकाउंटर हो चुके हैं, जब बाहरी पुलिस ने राज्य की पुलिस को बताना तक मुनासिब न समझा. ऐसे में राज्य की पुलिस की क्षमता और विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं कि आखिर दूसरे राज्यों की पुलिस ने उसे भरोसे में क्यों नहीं लिया. यह भी संकेत मिलता है कि राजस्थान दुर्दांत अपराधियों की शरणस्थली बन गया है.
ये सभी गैंगस्टर हिंदूमलकोट के निवासी लखविंदर सिंह के साथ करीब एक हफ्ते तक रहे. लखविंदर को गिरफ्तार कर लिया गया है. गौंडर और लाहौरिया ज्यादातर समय घर के अंदर रहते थे, जब बाहर जाते तो सीमा सुरक्षा बल की वर्दी में. जाहिर है, यह पुलिस के खुफिया तंत्र की बड़ी नाकामी है.
लेकिन दिसंबर, 2017 में राज्य के पुलिस प्रमुख का कार्यभार संभालने वाले ओ.पी. गिल्होत्रा इसे खुफिया तंत्र की नाकामी नहीं मानते. उनके अनुसार, पंजाब पुलिस के पास कार्रवाई के लिए बहुत कम वक्त था. ''ऐसी इमरजेंसी में जब अपराधी दुर्दांत हों और राज्य की सीमा के पास छिपे हों, कोई भी पुलिस बल समकक्ष बलों को सूचना देने की औपचारिकता से पहले जल्द-से-जल्द कार्रवाई करना चाहेगा.''
इस बात पर भरोसा किया जा सकता था. पर हाल के महीनों में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं. कई दशकों तक राज्य पुलिस की कमान ऐसे अफसरों के हाथ में रही है, जिनमें नेतृत्व कौशल की कमी रही है और उनकी नियुक्ति सियासी वजहों से हुई. राज्य की भाजपा सरकार भी इस चलन से अलग नहीं, जहां हाल तक अयोग्य लोगों को अहम पदों पर तैनात किया गया है. इस वजह से पुलिस के कामकाज पर विपरीत असर पड़ा है.
पिछले साल अक्तूबर में तेलंगाना पुलिस की टीम ने स्थानीय पुलिस को जानकारी दिए बगैर भीमताल में फरार अपराधी भीम सिंह को मार गिराया था. पर वहां पास से गुजर रही एक महिला भी गोली लगने से मारी गई थी.
इसी तरह दिसंबर में, तमिलनाडु पुलिस ने सोना लूटने के एक आरोपी को घेर लिया था. छापे के दौरान आरोपी तो भाग गया, पर गलती से पुलिस टीम की फायरिंग में तमिलनाडु के ही एक अधिकारी की मौत हो गई. यहां भी स्थानीय पुलिस को भरोसे में नहीं लिया गया था. इस साल जनवरी में यूपी की आगरा पुलिस ने पशु चोरों को पकडऩे के लिए सरमथुरा में चुपके से छापा डाला, जिसका स्थानीय लोगों ने विरोध किया. यहां गोलीबारी में एक स्थानीय युवक की मौत हो गई. ऐसे में राज्य के वरिष्ठ अधिकारी स्वीकारते हैं कि पुलिसबल को आत्मनिरीक्षण की जरूरत है.
पिछले साल राज्य में दो राजपूत गैंगस्टरों जैसलमेर में चतुर सिंह और चूरू में आनंदपाल सिंह के एनकाउंटर के बाद भारी विरोध प्रदर्शन होने लगे थे. इनकी सीबीआइ जांच का आदेश देना पड़ा. तेलंगाना पुलिस के हाथों मारा गया भीम सिंह भी राजपूत था और उसके एनकाउंटर का भी लोगों ने विरोध किया.
ऐसे में पुलिस को यह भी देखना है कि आखिर राजपूत युवा गंभीर अपराधों की ओर क्यों मुड़ रहे हैं और समुदाय उनका समर्थन क्यों कर रहा है? इसकी एक वजह यह हो सकती है कि पुलिस ने दूसरी जाति के किसी दुर्दांत अपराधी को एनकाउंटर में नहीं मारा है. सो, पुलिस को पक्षपात के आरोप से भी निबटना होगा.
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