
देशभर में मंगलवार को गणपति विसर्जन का पर्व धूमधाम से मनाया गया. गणपति बप्पा को गाजे बाजे के साथ विदाई दी गई. हर साल की तरह इस साल भी गणपति विसर्जन को लेकर दिल्ली एनसीआर में सुरक्षा के कड़े इंतेजाम किए गए थे. इस बार ये उत्सव 10 दिन की बजाय 11 दिनों का रहा. हर तरफ 'गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ' की गूंज रही.
विशेष मुहूर्त में विधिवत पूजा अर्चना कर जल तत्व के अधिपति, देवों में सर्प्रथम भगवान गणेश की प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है. विसर्जन का शुभ मुहूर्त मंगलवार दोपहर 1 बजे से लेकर 2:20 तक और उसके बाद दोपहर 3:30 बजे से लेकर रात 8 बजे तक था. भक्त लगभग पूरे दिन जगह-जगह गणपति प्रतिमा का विसर्जन करने पहुंचते रहे.
गुरुग्राम
गणपति बप्पा मोरया की धुन से पूरी साइबर सिटी गुंजायमान हो उठी. ढोल-नगाड़ों की थाप पर नृत्य करते थिरकते भक्तों ने उन्हें भावभीनी विदाई देते हुए अगले वर्ष जल्द आने की विनती की. जिस समय यह शोभायात्रा निकल रही थी उस पर शहर की सड़कों पर भक्तिों का सैलाब उमड़ आया. इस बार विघ्नहर्ता अपने साथ इको फ्रेंडली उत्सव का संदेश लेकर आए थे. भक्तों ने अलग-अलग स्थानों पर गजानन की प्रतिमा का विसर्जन किया. शोभायात्रा शहर के विभिन्न बाजारों से होकर निकली जहां लोगों ने इसका अभिनंदन किया. मूर्ति विसर्जन के पश्चात विभिन्न स्थानों पर भंडारे का भी आयोजन किया गया. इस मौके पर लोगों ने प्रसाद ग्रहण करने के साथ देश में सुख, शांति एवं समृद्धि की कामना की.
दिल्ली
दिल्ली में भी जगह-जगह गणेश पंडाल लगाए गए, इसके अलावा लोगों ने घरों में भी गणपति देव की स्थापना की. दिल्ली के कश्मीरी गेट में स्थित कुदसिया घाट पर भी भक्तों का जमावड़ा लगा रहा. इसके साथ ही कालिंदी कुंज में भी मौजूद घाट पर लोग ढोल नगाड़ों की थाप पर नाचते गाते मूर्ति विसर्जन करने पहुंचे. इस अवसर पर दिल्ली के तमाम घाटों पर सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए गए थे. तमाम तैयारियों के बावजूद घाट के पास की मुख्य सड़कों पर घंटों ट्रैफिक जाम रहा.
यमुना के प्रदूषण से नहीं बच पाए गणपति
दिल्ली के लगभग सभी घाटों पर सोमवार शाम से ही मूर्ति विसर्जन का सिलसिला जारी रहा. लेकिन मूर्ति विसर्जन के बाद किसी की नज़र घाट के किनारों पर नहीं पड़ी. जहां गणपति की तमाम मूर्तियां कूड़े में पड़ी हुई हैं. जिस गणपति को 10 दिनों तक घर पर सम्मान के साथ रखा, आरती की, भोग लगाया और मन चाही मुराद मांगी उसी गणपति की विसर्जन के बाद ये दुर्दशा किसी को नज़र नहीं आई. कश्मीरी गेट स्थित घाट हो या कलिंदी कुंज का घाट. हर तरफ गणपति की छोटी-बड़ी मूर्तियां कूड़े कचरे के बीच पड़ी हुई हैं.
हर साल मूर्ति विसर्जन के बाद देश भर के घाट, तालाब यहां तक के समंदर के किनारे टूटी हुई मूर्तियों से भरे होते हैं. इसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता. हर साल इको फ्रेंडली मूर्तियों की बातें की जाती हैं, कुछ बुद्धिजीवी और एनजीओ, लोगों को जागरूक करने का काम भी करते हैं, लेकिन हालात अब भी वैसे ही हैं. दुर्गा पूजा का समय हो या गणपति उत्सव, लोग ये भूल जाते हैं कि नदी, तालाब या समंदर में मूर्ति विसर्जित कर देने से उनकी ज़िम्मेदारी खत्म नहीं होती.