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जॉर्ज फर्नांडिस: इमरजेंसी का वो हीरो जिसे सोनिया गांधी के नाम तक से थी 'एलर्जी'

George Fernandes death anniversary: समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी के तानाशाही रवैए के खिलाफ आंदोलन छेड़कर हीरो बने थे. वह जेल में रहते हुए ही सांसद चुने गए थे. जॉर्ज हमेशा गांधी परिवार के खिलाफ खड़े रहे और कांग्रेस का विरोध किया. उन्होंने इंदिरा गांधी ही नहीं बल्कि सोनिया गांधी को लेकर भी कड़ा रुख अख्तियार किया. इसी के चलते उन्होंने 1999 में सोनिया गांधी के पीएम बनने की राह में रोड़ा अटका दिया था.

George Fernandes death anniversary: जॉर्ज फर्नांडिस (फाइल फोटो) George Fernandes death anniversary: जॉर्ज फर्नांडिस (फाइल फोटो)
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 29 जनवरी 2020,
  • अपडेटेड 10:59 AM IST

  • जॉर्ज फर्नांडिस का 29 जनवरी 2019 में निधन हो गया था
  • समाजवादी जार्ज ने हमेशा कांग्रेस की विचारधारा से नफरत की

पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस ने मजदूर यूनियन के जरिए भारतीय राजनीति में अपनी जगह बनाई थी, जिनका 88 साल के उम्र में पिछले साल 29 जनवरी को निधन हो गया था. आपातकाल के दौरान जॉर्ज फर्नांडिस कभी मछुआरा तो कभी साधु का रूप धारण करके और कभी सिख बनकर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के तानाशाही रवैए के खिलाफ आंदोलन को धार देते रहे. इसी के चलते वो इमरजेंसी के हीरो कहलाए.

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आपातकाल के चलते ही फर्नांडिस ने हमेशा गांधी परिवार से नफरत की और जिंदगी भर कांग्रेस का विरोध करते रहे. फर्नांडिस ने पूर्व पीएम इंदिरा गांधी ही नहीं बल्कि कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी को लेकर भी वैसा ही रवैया अख्तियार कर रखा था. जॉर्ज को सोनिया के नाम तक से एलर्जी थी. वह अपने जीवन में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कभी भी कांग्रेस के साथ नहीं खड़े हुए.

बता दें कि अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार 1999 में एक वोट से अल्पमत में आ गई थी, जिसके चलते वाजपेयी और आडवाणी के पैरों तले से सियासी जमीन खिसक गई थी. वहीं, सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति भवन जाकर सरकार बनाने का दावा ठोक दिया था. 146 सांसदों वाली कांग्रेस पार्टी की मुखिया ने कहा था कि हमारे पास बहुमत के लिए जरूरी 272 सांसदों का आकंड़ा है.

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सोनिया के इस ऐलान के साथ ही एनडीए खेमे में खलबली मच गई. बीजेपी नेता पता करने में जुटे कि सोनिया के साथ कौन-कौन हैं? 272 का आंकड़ा कैसे पूरा होगा? सोनिया के विदेशी मूल का मुद्दा पहले से ही उछाला जा रहा था. ऐसे में एनडीए नेताओं को कतई अंदाजा नहीं था कि 146 सीटों की पार्टी की मुखिया सोनिया गांधी खुद सरकार बनाने का दावा पेश करने इतनी जल्दी राष्ट्रपति भवन पहुंच जाएंगी.

अर्जुन सिंह, डॉ मनमोहन सिंह, नटवर सिंह, प्रणब मुखर्जी समेत कई वरिष्ठ कांग्रेसी नेता सोनिया गांधी के पक्ष में समर्थन जुटाने के लिए लालू यादव, हरिकिशन सिंह सुरजीत, मायावती और मुलायम सिंह यादव समेत सभी विरोधी दलों से बात कर रहे थे. लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी किताब 'MY COUNTRY, MY LIFE' में लिखा है कि इस दौरान जॉर्ज फर्नांडिस ने मुलायम सिंह यादव से बात की और उन्हें इस बात पर राजी कर लिया कि उनकी पार्टी के 20 सांसद किसी भी हालत में सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने में सहयोग नहीं देगी. इसके बाद 23 अप्रैल को मुलायम सिंह यादव ने राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखकर सोनिया की सरकार को समर्थन नहीं करने का ऐलान कर दिया. उन्होंने मुद्दा और बहाना विदेश मूल का बनाया. इस तरह से सरकार बनाने के सोनिया के अरमान टूट गए.

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साल 2011 में दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में बर्मा (म्यांमार) में लोकतंत्र की बहाली पर सेमिनार था, जिसमें जार्ज को दिल्ली में बोलने के लिए बुलाया गया था. वो जैसे ही सेमिनार में पहुंचे तो हॉल में सोनिया गांधी की लगी तस्वीर को देखकर भड़क उठे थे. उन्होंने कहा था,' मुझे लगता है कि किसी गुलाम ने यह काम किया है, कोई सभ्य आदमी ऐसा काम कभी नहीं करता.' जॉर्ज फर्नांडिस का गुस्सा देखकर वहां मौजूद लोगों ने फौरन सोनिया गांधी की तस्वीर हटाई, जिसके वो शांत हुए.

फर्नांडिस जब भी मीडिया से बात करते तो वो सोनिया गांधी के नाम लेकर कभी भी संबोधित नहीं करते थे. वो सोनिया गांधी के बजाय एक महिला नेता कहते और जब पत्रकार पूछते कि सोनिया गांधी तो कहते- हां. इससे फर्नांडिस के सोनिया के प्रति राजनीतिक विरोध को समझा जा सकता है. सुब्रमण्यम स्वामी ने एक साक्षात्कार में कहा था कि जॉर्ज फर्नांडिस ने हमेशा गांधी परिवार से नफरत की. उन्हें लगता था कि गांधी परिवार देश के लिए ठीक नहीं है. उन्होंने जिंदगी भर गांधी परिवार का विरोध किया.

बता दें कि आपातकाल के दौर में जॉर्ज फर्नांडिस को 1976 में जेल में डाल दिया गया था. इसके बाद वह 1977 का लोकसभा चुनाव जेल में रहते हुए ही बिहार की मुजफ्फरपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़े और रिकॉर्ड मतों से जीतकर संसद पहुंचे. जनता पार्टी की बनी सरकार में वो मंत्री बने. उन्होंने समता पार्टी का गठन किया, जिसका बाद में जेडीयू में विलय कर दिया गया. वो राजनीतिक जीवन में 9 बार सांसद चुने गए.

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