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जिस्म की इस मंडी में 'बैल' से सस्ती हैं 'बेटियां'

क्या आप यकीन करेंगे कि आज के इस दौर में भी बैल सस्ती कीमत बेटियों की है? क्या आप यकीन करेंगे कि आज भी बेटियां खरीदी और बेची जा रही हैं? बाकायदा दुकानों में इंसानों की मंडी लग रही है? यकीन नहीं आता तो झारखंड चले जाइए.

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aajtak.in
  • रांची,
  • 16 जुलाई 2015,
  • अपडेटेड 10:30 PM IST

क्या आप यकीन करेंगे कि आज के इस दौर में भी बैल से सस्ती कीमत बेटियों की है? क्या आप यकीन करेंगे कि आज भी बेटियां खरीदी और बेची जा रही हैं? बाकायदा दुकानों में इंसानों की मंडी लग रही है? यकीन नहीं आता तो झारखंड चले जाइए. यहां के आदिवासी इलाके में आज भी बेटियों की कीमत जानवरों से कम है.

जिस्म की इस मंडी में लड़कियों की कीमत महज 500 रुपये है, जबकि बैल की कीमत तीन हजार. इन लड़कियों को यहां से खरीदकर दिल्ली जैसे महानगरों में बेचा जाता है. जी हां, देश की बेटियां बिक रही हैं. देश की 'गुड़िया' बिक रही है. देश की लाडली बिक रही है. ना सिर्फ बिक रही है बल्कि बेहिसाब बिक रही है. 

ये वो खौलता हुआ सच है जो आज आपको झकझोर कर रख देगा. आपकी आंखें फटी की फटी रह जाएंगी, जब आप 21वीं सदी की उस मंडी को देखेंगे जहां आज भी इंसानों को गुलामों और जानवरों की तरह खरीदा और बेचा जाता है. आपको अपनी आंखों पर यकीन नहीं होगा कि कैसे बड़े-बड़े शहरों में बेटियां बिक रही हैं; और खरीदने वाले खरीद रहे हैं.

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झारखंड के आदिवासी इलाके इसके जीवंत उदाहरण हैं. यहां गरीबी की वजह से लोग ऐसे शातिर लोगों के कर्ज के चंगुल में फंस जाते हैं, जिनकी निगाह कर्ज वापस पाने की जगह उनकी मासूम लड़कियों पर होती है. जिस्म की मंडियों के ये सौदागर इन लड़कियों के अभिभावकों को तमाम तरह के सब्जबाग भी दिखाते हैं.

सूबे की पुलिस ने हाल ही में दो ऐसी नाबालिग लड़कियों को इन तस्करो के चंगुल से मुक्त कराया था, जिन्हें उनके पिता ने महज 500 के कर्ज के एवज में उनके हवाले कर दिया था. तस्करों ने यह खुलासा किया कि वे लड़कियों को उनकी चंचलता के हिसाब से बोली लगाकर बेचते थे. झारखंड की लड़कियों को देशभर में बेचा जाता है.

झारखंड पुलिस इन दिनों ऑपरेशन मुस्कान-2 चला रही है. इसमें मानव तस्करी की शिकार बनी नाबालिगों के उद्धार और पुनर्वास के कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं. एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग विंग के आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि झारखंड से करीब 25 हजार लड़कियां हर साल इसकी शिकार होती हैं.

झारखण्ड के गुमला, सिमडेगा, खूंटी और दुमका ऐसे जिले हैं, जहां से नाबालिग आदिवासी लड़कियों का पलायन सबसे अधिक होता है. वहीं, पुलिस यह दावा कर रही है कि हालिया दिनों में ऐसी नाबालिगों के छुड़ाने में अच्छी सफलताएं मिली है.

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दिल्ली को पूरी दुनिया में एक बड़ा मकाम हासिल है, तो ह्यूमन ट्रैफिकिंग का सबसे बड़ा ठिकाना होने के नाते इस शहर की बदनामी भी कम नहीं है. लेखिन आखिर वो क्या बात है, जो दिल्ली को मानव तस्करी का सबसे बड़ा गढ़ बनाती है. घर में काम दिलाने से लेकर शादी के झांसे और फिर जिस्मफरोशी तक, जब हकीकत जानेंगे तो आप चौंक जाएंगे.

कहने तो दिल्‍ली वो शहर है, जहां से देश चलता है. यही वो जगह है जहां सारे कानून बनते हैं और यही वो ठिकाना है, जहां से ये पूरे देश में लागू होते हैं. मगर, अफसोस ह्यूमन ट्रैफिकिंग के मामले में सारे कानून शायद यहीं आकर दम तोड़ देते हैं. क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो आज दिल्ली देश में ह्यूमन ट्रैफिकिंग के सबसे बड़े अड्डे के तौर पर बदनाम नहीं होती.

एक ऐसा अड्डा, जो सोर्स भी है, ट्रांजिट रूट भी और डेस्टिनेशन भी. यानी ये वो जगह है, जहां इंसानों की खरीद-फरोख्त की शुरुआत भी होती है, दूसरे शहरों से उन्हें आगे बेचने के लिए यहां लाया भी जाता है. यहीं जिस्मफरोशी के अड्डों पर या फिर अलग-अलग जगहों पर उन्हें बेचा भी जाता है.

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गरीबी और भुखमरी के चलते हर साल देश के पिछड़े राज्यों से हजारों लोग दिल्ली सहित देश के तमाम बड़े शहरों की तरफ भागे आते हैं. मानव तस्करी के धंधे से जुड़े लोग गरीबों की इसी मजबूरी का सालों से फायदा उठा रहे हैं. गरीब लड़कियों को घरों या फैक्ट्रियों में काम दिलाने के बहाने बहलाया फुसलाया जाता है.

पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, असम और ओडिशा जैसे राज्यों से पहले मानव तस्करी कर लड़कियों को ट्रेनों में दिल्ली लाया जाता है और फिर यहां से या तो उन्हें दिल्ली में ही बेच दिया जाता है या फिर प्लेसमैंट एजेंसी की मदद से हरियाणा, पंजाब, गुजरात और राजस्थान के अलग-अलग शहरों में पहुंचा दिया जाता है.

आंकड़ों में मुताबिक, साल 2009 में मानव तस्करी के जहां तकरीबन 3000 मामले सामने आए थे, वहीं एक साल बाद यानी 2010 में ये 3422 मामले रिकॉर्ड किए गए. इसके बाद अगले साल यानी 2011 में ये आंकड़ा 3517 तक पहुंच गया. मानव तस्करी का शिकार होने वाले इन लोगों में ज्‍यादा लडकियां थी, जिन्हें जिस्मफरोशी के अड्डों तक पहुंचा दिया गया.

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