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मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर से आर्टिकल-370 हटाने का फैसला करके एतिहासिक कदम उठाया है. कश्मीर में लागू आर्टिकल 370 में सिर्फ खंड-1 रहेगा, बाकी प्रावधानों को हटा दिया गया है. इसके अलावा नए प्रावधान में जम्मू कश्मीर पुनर्गठन का प्रस्ताव भी शामिल है. उसके तहत जम्मू कश्मीर अब केंद्र शासित प्रदेश होगा और लद्दाख को जम्मू कश्मीर से अलग कर दिया गया है. उसे भी केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया है. पाकिस्तान की सरकार को यह फैसला रास नहीं आ रहा है, पाक ने कई देशों को बताया है कि भारत ने ऐसा कर ठीक नहीं किया है. हालांकि उसे कहीं से समर्थन मिलता नहीं दिख रहा है.
वहीं, सीमा पार पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में बदलाव की स्थिति जस की तस रही है. ऐसे में पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के आर्टिकल-370 और 35A को निरस्त करने के कदम को खारिज कर दिया है. इस स्थिति में देखना होगा कि द्विपक्षीय संबंधों पर क्या प्रभाव पड़ेगा और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इस कदम पर क्या प्रतिक्रिया देगा.
पाकिस्तान ने गिलगित-बाल्टिस्तान (जीबी) को पीओके के बाकी हिस्सों से अलग कर दिया था. इसके बाद इसे पाकिस्तान का पांचवां प्रांत बनाने की कोशिश की. हाल ही में यहां के लोगों ने खुला पत्र लिखकर कहा था कि पाकिस्तान सिर्फ उनकी देखभाल करने वाला है. उनकी रिहायश वाला यह हिस्सा जम्मू-कश्मीर राज्य का भाग है. पाकिस्तान को सीमाएं बदलने का कोई अधिकार नहीं है.
इस मसले पर विल्सन सेंटर के डिप्टी डायरेक्टर माइकल कुगेलमैन ने कहा, 'साल के शुरुआत में ये मुद्दा तनाव भरा लग रहा था. ऐसे में भारत के इस फैसले से संभवत: संबंधों में संकट के बादल छाएंगे.' हालांकि भारत की ओर से पी-5 राष्ट्रों के राजदूतों को इस बारे में बताया गया होगा कि यह निर्णय भारत का आंतरिक मामला है.
वहीं, सूत्रों के मुताबिक, MEA के वरिष्ठ अधिकारी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 और जम्मू-कश्मीर के प्रशासनिक पुनर्गठन से संबंधित प्रस्तावों पर P5 सहित कई देशों को जानकारी दे रहे हैं. सूत्रों ने कहा कि वर्तमान में जो प्रस्ताव भारत की संसद के विचाराधीन हैं, वे भारत का आंतरिक मामला है. इनका उद्देश्य सुशासन प्रदान करना, सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना और जम्मू-कश्मीर में आर्थिक विकास सुनिश्चित करना है.
दरअसल, पाकिस्तान इस मुद्दों को कूटनीतिक रूप से लेगा. भारत के फैसले को पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में चुनौती दे सकता है. इस पर कुगेलमैन ने उल्लेख किया, 'कश्मीर अभी भी एक ऐसा मुद्दा नहीं है जो पूरी दुनिया को एकजुट करता है. इसलिए यूएनएससी को पाकिस्तान की दलील से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है.