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मेडिकल इंश्योरेंस: मुसीबत में सुरक्षा कवच या परेशानियों का जाल?

आपका कोई अपना अस्पताल में हो. आपने उसे इंश्योरेंस के भरोसे शहर के सबसे बड़े अस्पताल में भर्ती कराया हो पर ऐन मौके पर अगर आपकी इंश्योरेंस कंपनी आपको पैसे देने से इंकार कर दे तो..?

इंश्योरेंस का जाल इंश्योरेंस का जाल
भूमिका राय
  • नई दिल्ली,
  • 09 जनवरी 2016,
  • अपडेटेड 2:20 AM IST

अपनी और अपनों की जान की हिफाजत के लिए हम सभी कोई न कोई मेडिकल इंश्योरेंस लेते ही हैं. इंश्योरेंस लेते समय सोच यही होती है कि कम से कम इस सुरक्षा कवच के रहते इलाज के दौरान आर्थिक तंगी की हालत तो नहीं होने पाएगी और हमारे अपनों को बेहतर से बेहतर इलाज मिल पाएगा. पर क्या वाकई ऐसा होता है?

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दुनिया में शायद ही कोई ऐसा होगा जो डॉक्टर, अस्पताल और मेडिकल स्टोर के चक्कर में फंसना चाहता होगा. पर कभी न कभी हम सभी के साथ ऐसी स्थिति आ ही जाती है जब हम अपनी और अपनों की सेहत के लिए जूझने को मजबूर हो जाते हैं.

आपका कोई अपना अस्पताल में हो. आपने उसे इंश्योरेंस के भरोसे शहर के सबसे बड़े अस्पताल में भर्ती कराया हो पर ऐन मौके पर अगर आपकी इंश्योरेंस कंपनी आपको पैसे देने से इंकार कर दे तो..? 


ये कोई पहला मौका नहीं है जब किसी इंश्योरेंस कंपनी ने ऐसा किया हो. इंश्योरेंस कंपनियों के धोखाधड़ी के सैकड़ों मामले सामने आ चुके हैं लेकिन अब भी ये बदस्तूर जारी है. ऐसी ही एक धोखाधड़ी का शिकार हुए राज कुमार दुआ.

नई दिल्ली में रहने वाले राज कुमार दुआ के पास सात लाख का मेडिकल कवर था. ये 7 लाख उनके अपने थे जबकि उसी कंपनी से उनके परिवार के चार अन्य सदस्यों ने 11 लाख रुपए का इंश्योरेंस ले रखा है. राज कुमार प्रतिवर्ष 47 हजार रुपए का प्रीमियम भी भरते हैं. पॉलिसी लेने के बाद से शायद ही उन्होंने कभी भुगतान करने में देरी की हो लेकिन जिस वक्त उन्हें उन पैसों की जरूरत पड़ी, कंपनी ने उनका साथ छोड़ दिया.

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दुआ बताते हैं कि मैं वेंटीलेटर पर था. मुझे निमोनिया की शिकायत हो गई थी और संक्रमण मेरे फेफड़ों तक पहुंच गया था जिसकी वजह से हार्ट अटैक की स्थिति सामने आ गई. मैं अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहा था और मेरे बच्चे अस्पताल, सिटी बैंक और न्यू इंडिया इंश्योरेंस के चक्कर लगा रहे थे. सिटी बैंक, दुआ और इंश्योरेंस कंपनी के मध्यस्थ की भूमिका में था. अक्टूबर से लेकर अब तक उस इंश्योरेंस कंपनी ने दुआ को उनके इंश्योरेंस के पैसे नहीं दिए हैं.


दिल्ली के मैक्स अस्पताल में लगभग पांच लाख रुपए के इलाज के बाद राज कुमार दुआ की जान तो बच गई लेकिन उनकी सारी जमापूंजी चली गई. कई प्रयासों के बाद आज वो मेडिकल इंश्योरेंस कंपनी राज कुमार दुआ को 1 लाख 40 हजार रुपए देने के लिए तैयार है पर क्या ये धोखा नहीं? 7 लाख के कवर के बदले एक लाख. राज कुमार दुआ साल 2010 से इस कंपनी के भरोसे अपनी सेहत को महफूज समझ रहे थे पर अब क्या...?

क्या ये मामला धोखधड़ी का नहीं? ऐसे में अगर आप भी किसी इंश्योरेंस कंपनी के भरोसे निश्चिंत बैठे हैं तो एकबार फिर अपना कवर और कंपनी की प्रमाणिकता जांच लें.

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