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दिल्ली सरकार ने माना, सरकारी स्कूलों में है सुधार की जरूरत

नर्सरी एडमिशन को लेकर हुई सुनवाई मे दिल्ली सरकार ने माना कि सरकारी स्कूलों मे सुधार की निरंतर जरूरत है. जानें क्या है पूरी खबर...

स्कूली बच्चे स्कूली बच्चे
पूनम शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 25 जनवरी 2017,
  • अपडेटेड 1:10 PM IST

सरकारी जमीन पर प्राइवेट स्कूलों में फीस बढ़ोतरी के मसले पर सुप्रीम कोर्ट से मिली बड़ी राहत के बाद नर्सरी दाखिले के मामले में केजरीवाल सरकार हाईकोर्ट में मंगलवार को कोर्ट मे अक्रामक दिखी.

सरकार ने कहा कि अगर स्कूल शर्तें नहीं मानना चाहते हैं, तो स्कूल जमीन खाली करें और फिर मनमानी करना बंद करें. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को साफ कहा था कि सरकारी जमीन पर बने निजी स्कूल सरकार की मंजूरी के बगैर फीस नहीं बढ़ा सकेंगे.

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सरकार ने कहा कि हम मानते हैं कि हमारे सरकारी स्कूलों में कुछ कमियां हैं और हम इसे बेहतर करने के लिए पूरजोर कोशिश कर रहे हैं. लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि इन स्कूलों को मनमानी करने की खुली छूट दे दी जाए.

इस मामले में एलजी का पक्ष रखने के लिए पेश हुए एडिशनल सॉलीसिटर जनरल संजय जैन ने इसके लिए हाईकोर्ट को डीटीसी बसें और कार का उदाहरण देकर समझाया. उन्होंने कहा कि डीटीसी की बसें खराब हैं, इसका मतलब यह नहीं कि हम यातायात नियमों का उल्लंघन करने वाले कार का चालान करना बंद कर दें.

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उन्होंने कहा कि सरकार होने के नाते उनकी जिम्मेदारी है कि सरकारी जमीन पर प्राइवेट स्कूलों को नियंत्रित करें और ऐसा करने के लिए कानून में उनके पास अधिकार भी है.

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सरकार ने यह दलीलें हाईकोर्ट के उन सवालों का जवाब में दिया है, जिसमें हाईकोर्ट ने शुक्रवार को सरकारी स्कूलों के खास्ताहाल होने सरकार की खिंचाई की थी.

जैन ने हाईकोर्ट में फीस बढ़ोतरी के मसले पर सोमवार के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की कॉपी भी कोर्ट को दी. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद इस मामले में कुछ नहीं बचा है.

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इसके आलावा सुप्रीम कोर्ट के तीन और हाईकोर्ट के चार फैसले हैं, जिसके आधार पर स्कूलों की इन याचिकाओं को तत्काल खारिज किए जाना चाहिए. जैन ने अपनी जिरह मे कहा कि स्कूलों की याचिका पर अंतरिम राहत देना तो दूर नोटिस जारी होने लायक भी नहीं है.

वही केजरीवाल सरकार ने हाईकोर्ट को बताया कि दिल्ली बदल रही है और सरकारी स्कूलों में अब परिस्थितियां बदल रही हैं. अब पहले जैसे हालात नहीं हैं.

सरकार ने कहा कि अब स्कूलों में शिक्षकों की कमी को दूर करने के साथ-साथ टॉयलेट, पीने के साफ पानी और बाकी मौलिक सुविधाओं के अलावा बेहतर शिक्षा के लिए माहौल भी तैयार किया जा रहा है.

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सरकार ने यह दलील तब दी, जब जस्टिस मनमोहन ने कहा कि शिक्षकों को 7वें वेतन आयोग के सिफारिशों के मुताबिक सरकार वेतन तो दे रही है, लेकिन स्कूलों में मूलभूत सुविधाएं और बुनियादी ढांचे नहीं हैं. जिसके चलते सरकारी स्कूलों के वो रिजल्ट नहीं मिल रहा, जो प्राइवेट स्कूल का है.

सरकार ने जवाब मिलने के बाद हाईकोर्ट ने यह माना कि सरकारी स्कूलों की स्थितियों में सुधार हो रहा है लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है.

सरकार ने हाईकोर्ट से कहा कि निजी स्कूल 7 जनवरी को दाखिले के लिए जारी दिशा-निर्देश से बच्चों के स्कूल चुनने के अधिकारों के हनन की बात कर रहे हैं, तो क्या स्कूलों के संघ जो याचिकाकर्ताओं में है, बच्चों को उनके पसंद के स्कूल में दाखिला सुनिश्चित कर सकते हैं.

सरकार ने सवालिया लहजे में कहा कि अगर कोई बच्चा कहता है कि उसे मॉडर्न स्कूल में ही पढ़ना है तो क्या स्कूल उस बच्चे की दाखिला सुनिश्चित कर सकता है. क्या स्कूल बच्चों को उनके मर्जी के स्कूल में दाखिला देंगे. हाई कोर्ट मामले पर अगली सुनवाई सोमवार को होगी.

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