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सर्विस चार्ज का ऑप्शन दे सरकार ने फंसा दिया, जानें कैसे

रेस्टोरेंट में डिनर के बाद आपको इंतजार फूड बिल का रहता है. बिल आते ही आपकी नजर फूड बिल पर लगे टैक्स और चार्जेस पर पड़ती है. फूड बिल में आमतौर पर तीन तरह के चार्ज लगे रहते है. पहला सर्विस टैक्स, दूसरा सर्विस चार्ज और तीसरा वैल्यू एडेड टैक्स.

कंज्यूमर अफेयर्स मंत्रालय की टिप्पणी से उपजा विवाद कंज्यूमर अफेयर्स मंत्रालय की टिप्पणी से उपजा विवाद
राहुल मिश्र
  • नई दिल्ली,
  • 03 जनवरी 2017,
  • अपडेटेड 5:01 PM IST

रेस्टोरेंट में डिनर के बाद आपको इंतजार फूड बिल का रहता है. बिल आते ही आपकी नजर फूड बिल पर लगे टैक्स और चार्जेज पर पड़ती है. फूड बिल में आमतौर पर तीन तरह के चार्ज लगे रहते हैं. पहला सर्विस टैक्स, दूसरा सर्विस चार्ज और तीसरा वैल्यू ऐडेड टैक्स. इन तीनों चार्जेज पर केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण विभाग ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि फूड बिल पर लगे सर्विस चार्ज का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है. हालांकि जो रेस्टोरेंट इस चार्ज को ले रहे हैं वह ग्राहक को मजबूर करके नहीं ले सकते.

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आइए, देखें फूड बिल पर लगे सभी टैक्स और चार्ज

1. सर्विस टैक्स: फूड बिल पर सर्विस टैक्स केन्द्र सरकार वसूलती है. यह टैक्स रेस्टोरेंट द्वारा दी जा रही सेवाओं पर लगाया जाता है. टैक्स नियम के मुताबिक यह टैक्स रेस्टोरेंट द्वारा फूड और बेवरेज को छोड़कर दी जा रही अन्य सेवाओं पर लगता है. मसलन रेस्टोरेंट में एयरकंडीशनर, वेटर, एंटरटेनमेंट इत्यादी जैसी सेवाओं पर इस टैक्स को लगाया जाता है. मौजूदा समय में देशभर में 14 फीसदी सर्विस टैक्स लगता है. इसके अलावा फूड बिल पर 0.5 फीसदी कृषि कल्याण टैक्स और 0.5 फीसदी स्वच्छ भारत टैक्स लगता है. यह टैक्स सभी रेस्टोरेंट को सरकार के पास जमा कराना होता है और इसलिए रेस्टोरेंट इस टैक्स को आपसे वसूलकर आगे बढ़ा देती हैं.

2. वैल्यू ऐडेड टैक्स: यह टैक्स राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित होता है लिहाजा इसकी दर प्रत्येक राज्य में अलग-अलग रहती है. इस टैक्स को रेस्टोरेंट द्वारा दिए जा रहे फूड और बेवरेज पर लगाया जाता है. टैक्स नियम के मुताबिक यह टैक्स सिर्फ रेस्टोरेंट में तैयार किए गए खाने और बेवरेज पर लगाया जा सकता है. लिहाजा, इस टैक्स के दायरे में रेस्टोरेंट में सर्व की गई कोल्ड ड्रिंक, शराब, बिसलेरी, इत्यादी पर नहीं लगता क्योंकि ये उत्पाद रेस्टोरेंट के बाहर बनते हैं. अलग-अलग राज्यों में 5-20 फीसदी तक वैल्यू ऐडेड टैक्स लगाया जाता है. यह टैक्स फूड बिल में सर्विस चार्ज को जोड़ते हुए लगाया जाता है और इसमें सर्विस टैक्स को शामिल नहीं किया जाता.

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3. सर्विस चार्ज: अब तीसरा और सबसे विवादित चार्ज सर्विस चार्ज है. इस चार्ज का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है. हालांकि इसे एक ग्लोबल प्रैक्टिस के तहत रेस्टोरेंट फूड बिल में शामिल करते हैं. इस चार्ज का आशय सिर्फ रेस्टोरेंट में वेटर के टिप के तौर पर होता है. आमतौर पर इस चार्ज से एकत्रित पूरा पैसा रेस्टोरेंट में वेटर, मैनेजर और क्लीनिंग स्टाफ में बांट दिया जाता है. हालांकि रेस्टोरेंट का यह सपोर्ट स्टाफ मासिक सैलरी पर रहता है लेकिन रेस्टोरेंट इस चार्ज को बतौर पर्क और बोनस अपने कर्मचारियों में बांट देते हैं. गौरतलब है कि कंज्यूमर प्रोटेक्शन विभाग को लगातार इस आशय शिकायत भी मिलती रही है कि रेस्टोरेंट इस सर्विस चार्ज से एकत्रित हुए पैसे के बड़े हिस्से का इस्तेमाल रेस्टोरेंट के रखरखाव के लिए करता है. आपके फूड बिल में इस चार्ज के जुड़ने के बाद रेस्टोरेंट में आपको वेटर को टिप देने की जरूरत नहीं पड़ती. लिहाजा, कई रेस्टोरेंट अपने मेनू कार्ड में साफ-साफ लिखते हैं कि फूड बिल पर सर्विस चार्ज लगाया जाएगा.

 

एक्सपर्ट की राय: सर्विस चार्ज पर उठे विवाद पर इंडिया टुडे संपादक अंशुमान तिवारी का मानना है कि मौजूदा विवाद को खत्म करने के लिए केन्द्र सरकार को अपना साफ पक्ष रखना चाहिए था. सरकार या तो सर्विस चार्ज को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर सकती थी अथवा इसे कानून के दायरे में ला सकती थी. लेकिन, सोमवार को कंज्यूमर अफेयर्स मंत्रालय की तरफ से जारी एडवाइजरी से महज विवाद पैदा हुआ है.

वहीं नैशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन की तरफ से मंत्रालय द्वारा जारी एडवाइजरी का विरोध किया गया है. एसोसिएशन के अध्यक्ष रियाज अमलानी का मानना है कि यह एक ग्लोबल प्रैक्टिस है जिसके तहत रेस्टोरेंट में जाने वाले लोग सर्विस से खुश होकर वेटर को टिप देते हैं. अमलानी ने कहा कि जब तक मेन्यू में सेवा शुल्क को मुख्य रूप से दर्ज किया गया है, इसे अनुचित और खराब व्यवहार नहीं कहा जा सकता.

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टैक्स सलाहकार ऐ.के. बंसल के मुताबिक केन्द्र सरकार को यह फैसला लेने की जरूरत है कि फूड बिल पर सर्विस चार्ज लगाना कानूनी अथवा गैरकानूनी है. वहीं उसे उपभोक्ता संरक्षण नियमों को मजबूत करने की भी जरूरत है जिससे ग्राहकों को रेस्टोरेंट द्वारा अधिक वसूली के खिलाफ शिकायत करने की प्रक्रिया को आसान किया जा सके.

फेडरेशन आफ होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशंस आफ इंडिया एफएचआरएआई का कहना है कि वह इस मुद्दे को उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के समक्ष उठाएगी. एफएचआरएआई में चेयरमैन विधि मामलों की उप समिति प्रदीप शेट्टी ने कहा, इससे भ्रम व विवाद होगा.

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