
केन्द्र सरकार ने नवंबर में सर्वाधिक प्रचलित 500 और 1000 रुपये की करेंसी को गैरकानूनी करार देते हुए इसके एवज में 2000 रुपये की नई करेंसी जारी कर दी. बीते 40 दिनों से अधिक समय से देशभर में पुरानी करेंसी के बदले नई करेंसी लेने की होड़ मची है. वहीं रिजर्व बैंक के प्रिंटिंग प्रेस में नई करेंसी की छपाई का काम बिना रुके चल रहा है. इसके बावजूद आम आदमी को कोई राहत मिलती नहीं दिखाई दे रही है.
500 और 1000 रुपये की नोटबंदी कर 2000 रुपये के नए नोट जारी करना एक गलती थी जिसके कारण बीते 40 दिनों में लगातार कोशिश के बावजूद देश से करेंसी संकट टलने का नाम नहीं ले रहा- जानिए कैसे...
1. नोटबंदी से पहले देश में सर्वाधिक प्रचलन में 500 और 1000 की नोट थी. दोनों ही करेंसी ब्लैकमनी के लिए उपयुक्त होने के साथ-साथ रोजमर्रा के खर्च के लिए भी सबसे पसंदीदा करेंसी थी. 1000 रुपये की करेंसी को खर्च करने में भले थोड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था लेकिन 500 रुपये की करेंसी बिना किसी दिक्कत के खर्च की जाती थी.
2. 8 नवंबर के बाद आम आदमी को एटीएम से 2000 रुपये की एक नोट मिलना शुरू हुई वहीं बैंक से निकासी करने पर उसे एक बार में अधिकतम पांच नोट मिले (साप्ताहिक विड्रॉवल सीमा 24,000 लेकिन एक बार निकासी पर वास्तविक सीमा 10,000 रुपये मात्र). 500 रुपये की नई करेंसी की छपाई का काम नोटबंदी लागू होने के बाद शुरू किया गया. रिजर्व बैंक की कवायद नोटबंदी के बाद सिर्फ 2000 रुपये की नई करेंसी को सर्कुलेशन में लाने का प्रयास करने का था.
3. बैंक और एटीएम से सीमित मात्रा में सिर्फ 2000 की नई करेंसी मिलने के कारण आम आदमी को इसे भुनाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा. इस नोट को चलाने के लिए उन्हें या तो बड़ा सौदा खरीदने की मजबूरी सामने आई नहीं तो घर के बगल के रीटेल स्टोर में भविष्य की खरीदारी करने के लिए 2000 की नोट गिरवी रखनी पड़ी. 2000 रुपये की नई नोट के साथ 100 और 50 की नई नोट को जारी करने का काम भी नहीं किया.
4. नोटबंदी से आम आदमी के पास घर में इमरजेंसी फंड में पड़ा 10,000 रुपये से 1 लाख रुपये तक बैंक में जमा हो गया. इससे लोगों में इमरजेंसी फंड के तौर पर एक बार फिर 2000 की नई नोट को घर में रखने की जरूरत महसूस हुई. इसका सीधा असर बैंकों द्वारा 2000 की नोट से बाजार में लिक्विडिटी बढ़ाने पर पड़ा और 2000 की नोट को अपनी जरूरत के हिसाब से लोगों ने बतौर इमरजेंसी फंड घरों में स्टॉक कर लिया.
5. नोटबंदी की सबसे ज्यादा मार देश में ब्लैकमनी रखने वाले कारोबारी, नेता और अधिकारी पर पड़ने की उम्मीद थी. अर्थव्यवस्था में यह सबसे बड़ा तबका था जिसके पास पुरानी 500 और 1000 रुपये की नोट में सर्वाधिक ब्लैकमनी संचित थी. बैंकों द्वारा जारी 2000 रुपये की नई करेंसी इस तबके लिए सौगात बनी. जिसे बैंक में जुगाड़ या कमीशन देकर नई नोट मिली उन्होंने बड़ी डिनॉमिनेशन का फायदा उठाते हुए अपने कालेधन को 2000 रुपये की नई नोट में सुरक्षित कर लिया. इसी तबके ने आम आदमी के पास पहुंच रही सीमित करेंसी को भी पहला मौका मिलते ही अपने पास संचित कर लिया.
केन्द्र सरकार ने 500 और 1000 रुपये की करेंसी में देश की कुल 86 फीसदी प्रचलित करेंसी को बदलने के लिए सिर्फ 2000 रुपये की नई करेंसी की इस्तेमाल किया. इसके चलते व्यवहारिक दिक्कतों के साथ-साथ कालेधन को कनवर्ट करने का काम आसानी से संभव हो सका. वहीं नोटबंदी का फैसला सिर्फ देश में भ्रष्टाचार और कालेधन पर लगाम लगाने के लिए उठाया गया.
केन्द्र सरकार और रिजर्व बैंक को 2000 रुपये की बड़ी डिनॉमिनेशन की जगह 50, 100 और 500 रुपये की नई करेंसी के जरिए बाजार की लिक्विडिटी को बदलने का काम करना था. नोटबंदी के 40 दिन बीतने के बाद रिजर्व बैंक के आंकड़े, और इनकम टैक्स विभाग और सीबीआई की छापों में बरामद हो रहे 2000 के नोट साफ संकेत दे रहे हैं कि नोटबंदी के लिए बड़े डिनॉमिनेशन की करेंसी उतारना महज एक भूल थी.