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'बेरोजगारी के सरकारी आंकड़े गलत, लोगों ने रोजगार एक्सचेंजों से नाम नहीं कटाया'

छत्तीसगढ़ की रमन सरकार में टेक्निकल एजुकेशन मंत्री पीपी पांडेय ने कहा कि राज्य में बेरोजगारी के सरकारी आंकड़ों में गड़बडी है. इस गड़बड़ी के चलते राज्य में अधिक बेरोजगार दिखाई दे रहे हैं. लेकिन वास्तविकता यह है कि राज्य में बड़ी संख्या में लोग इन आंकड़ों से बाहर हैं.

रोजगार एक्सचेंजों से नाम नहीं कटा रोजगार एक्सचेंजों से नाम नहीं कटा
राहुल मिश्र
  • नई दिल्ली,
  • 29 जून 2018,
  • अपडेटेड 10:01 PM IST

छत्तीसगढ़ की रमन सरकार में टेक्निकल एजुकेशन मंत्री पीपी पांडेय ने कहा कि राज्य में बेरोजगारी के सरकारी आंकड़ों में गड़बडी है. इस गड़बड़ी के चलते राज्य में अधिक बेरोजगार दिखाई दे रहे हैं. लेकिन वास्तविकता यह है कि राज्य में बड़ी संख्या में लोग इन आंकड़ों से बाहर हैं.

पीपी पांडेय ने दावा किया कि राज्य में छात्रों ने ग्रैजुएशन अथवा अन्य कोर्स पूरे करने के बाद अपना नाम रोजगार एक्सचेंज में दर्ज करा दिया है. लेकिन इसके बाद ज्यादातर छात्र या तो उच्चा शिक्षा में हैं या फिर वह स्वरोजगार के जरिए कुछ न कुछ काम कर रहे हैं. लेकिन उन्होंने अपना नाम रोजगार एक्सचेंज से हटाने का काम नहीं किया है. इसकी के चलते राज्य में बेरोजगारों की संख्या की अधिक गणना की गई है.

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पीपी पांडेय ने सफाई देते हुए कहा कि केन्द्र सरकार की मदद से रमन सरकार ने नगरनार को दूसरा भिलाई बनाने की योजना पर काम शुरू कर दिया है. हालांकि इस दलील को बेबुनियाद बताते हुए जनता कांग्रेस के नेता अमित जोगी ने आरोप लगाया कि अपने कार्यकाल के दौरान रमन सिंह सरकार ने राज्य में सिर्फ बेरोजगारी की फैक्ट्री लगाने का काम किया है.

वहीं नोटबंदी के दौरान राज्य में बड़ी मात्रा में जमा हुए पैसों पर सफाई देते हुए पांडेय ने कहा कि उस दौरान जिसने जितना पैसा जमा किया है उसका पूरा आंकड़ा सरकार के पास है और कई एजेंसियां इसपर काम कर रही हैं. यदि किसी ने अधिक जमा किया है और कोई सफाई उसके पास नहीं है तो उसपर ये एजेंसिया सख्त कार्रवाई करेगी.

वहीं राज्य में कमीशन के कल्चर में पांडेय ने कहा कि बीचे 14 साल के दौरान रमन सिंह सरकार के ऊपर किसी तरह के भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगे हैं. पनामा पेपर लीक मामले में पांडेय ने कहा कि यदि किसी का नाम इसमें लिप्त है तो जांच के बाद सबकुछ सामने आ जाएगा. कोर्ट इस मामले में काम कर रही है. कोर्ट के काम में कोई दख्लंदाजी नहीं है. लेकिन विपक्ष को सिर्फ मुद्दा उठाना है तो वह बेबुनियाद मुद्दों को ज्यादा तरजीह देती है.

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