
पेट्रोल-डीजल की कीमतों में लगातार जारी इजाफे के बावजूद केन्द्र सरकार टैक्स में कटौती करने से मना कर रही है. केन्द्र सरकार की दलील है कि इस फैसले से उसे राजस्व का बड़ा नुकसान होगा. ऐसे में केन्द्र सरकार के पास आम आदमी को राहत पहुंचाने के लिए क्या विकल्प है?
इंडिया टुडे के संपादक अंशुमान तिवारी ने कहा कि भारत सरकार दशकों से अपने खर्च के लिए ऊर्जा क्षेत्र पर निर्भर है. यह क्षेत्र सरकार की कमाई में सबसे बड़ा योगदान करता है और इसी योगदान के सहारे बीते दशकों में केन्द्र और राज्य सरकारों ने अपने खर्च में बड़ा इजाफा कर लिया है. लिहाजा अंशुमान तिवारी के मुताबिक केन्द्र और राज्य सरकारें यदि आम आदमी को राहत देना चाहती हैं तो उन्हें अपने खर्च में बड़ी कटौती करने की जरूरत है.
अंशुमान तिवारी मुताबिक, ‘हम फिजूल खर्च सरकारों यानी असंख्य ‘मैक्सिमम गवर्नमेंट’ के चंगुल में फंस चुके हैं. जो बिजली, पेट्रोल-डीजल और गैस सहित पूरे ऊर्जा क्षेत्र को दशकों से एक दमघोंट टैक्स नीति निचोड़ रही हैं. कच्चे तेल की कीमत बढ़ते ही यह नीति जानलेवा हो जाती है. पेट्रो उत्पादों पर टैक्स की नीति शुरू से बेसिर-पैर है. कच्चे तेल की मंदी के बीच लगातार एक्साइज ड्यूटी बढ़ाकर मोदी सरकार ने इसे और बिगाड़ दिया.
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अंशुमान तिवारी ने कहा कि एक तरफ जहां सरकारें पेट्रोल और डीजल में हो रहे इजाफे को देख रहीं हैं वहीं विधानसभा चुनावों को देखते हुए छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सरकारी खजाने पर बोझ डालते हुए मोबाइल फोन बांटने का काम किया जा रहा है.
भारत में राजस्व को लेकर सरकारें (केंद्र व राज्य) आरामतलब हैं और खर्च को लेकर बेफिक्र. उनके पास देश में सबसे ज्यादा खपत वाले उत्पाद को निचोडऩे का मौका मौजूद है. चुनाव के आसपास उठने वाली राजनैतिक बेचैनी के अलावा पेट्रो उत्पाद हमेशा से टैक्स पर टैक्स का खौफनाक नमूना है जो भारत को दुनिया में सबसे महंगी ऊर्जा वाली अर्थव्यवस्था बनाता है.
न घटाइए एक्साइज और वैट, लेकिन यह तो कर सकते हैं:
1. तेल व गैस का पूरा बाजार सरकारी तेल कंपनियों के हाथ में है. पांचों पेट्रो कंपनियां (ओएनजीसी, आइओसी, एचपीसीएल, बीपीसीएल, गेल) सरकार को सबसे अधिक कॉर्पोरेट टैक्स देने वाली शीर्ष 20 कंपनियों में शामिल हैं. ये कंपनियां हर साल सरकार को 17,000 करोड़ रु. का लाभांश देती हैं. टैक्स और लाभांश को टाल कर कीमतें कम की जा सकती हैं.
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2. सरकारी तेल कंपनियों में लगी पूंजी करदाताओं की है. अगर पब्लिक सेक्टर पब्लिक का है तो उसे इस मौके पर काम आना चाहिए.