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UPA सरकार का ब्रेनचाइल्ड था कंप्यूटर जासूसी का प्रोजेक्ट

सरकार के ताजा आदेश के बाद आपको सेंट्रल मॉनिटरिंग सिस्टम के बारे में जानना जरूरी है. क्योंकि भले ही सरकार सेंट्रल मॉनिटरिंग सिस्टम को फिर से जिंदा न कर रही हो, लेकिन ये प्रोजेक्ट भी वैसा ही है.

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Munzir Ahmad
  • नई दिल्ली,
  • 21 दिसंबर 2018,
  • अपडेटेड 12:39 PM IST

भारत सरकार ने 10 सेंट्रल एजेंसियों को देश के सभी कंप्यूटर्स को मॉनिटर और इंटरसेप्ट करने की क्षमता दी है. अब इन एजेंसियों के पास न सिर्फ ईमेल बल्कि आपके कंप्यूटर में रखा हर तरह के डेटा पर नजर हो सकता है. तीन मुख्य बाते हैं – इंटरसेप्ट, मॉनिटर और डीक्रिप्ट.

हालांकि ये चौंकाने वाला नहीं है, क्योंकि ऐसा पहले भी देखने को मिला था जब कांग्रेस की सरकार थी. तब सेंट्रल मॉनिटरिंग सिस्टम नाम की व्यव्स्था थी जो अब भी एक रहस्य की तरह ही है. 

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इंटरसेप्ट यानी आपके कंप्यूटर तक पहुंचने वाले डेटा को कोई जांच एंजेंसी इंटरसेप्ट करके ये पता लगा सकती है कि क्या बातचीत हो रही है. चाहे बातचीत वीडियो कॉल की शक्ल में हो या ईमेल की तरह.

मॉनिटरिंग यानी एजेंसी चाहे तो आपको कंप्यूटर तक पहुंच कर इसकी निगरानी कर सकती है. लगातार नजर बनाए रखेगी कि आप अपने कंप्यूटर पर क्या कर रहे हैं

डीक्रिप्शन यानी अगर आपका कम्यूनिकेशन सिक्योर है या फिर आपने अपने डेटा को किसी तरह से सिक्योर करके रखा है तो एजेंसी इसे एन्क्रिप्ट करके इसमें सा सारी जानकारियां इकठ्ठी कर सकती है.

आप जहां से इंटरनेट खरीदते हैं वो इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर आपकी जानकारियां आपकी यूसेज हिस्ट्री सराकारी एजेंसी को दे सकती है. ये इस आदेश में कहा गया है. इसके पीछे सरकार ने नेशनल सिक्योरिटी का हवाला दिया है.

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2008 मुंबई अटैक के बाद UPA सरकार ने इसकी नींव रखी!

अमेरिकी एजेंसी एनएसए की निगरानी प्रोजेक्ट PRISM की तरह ही भारत में भी ऐसी ही निगरानी के लिए प्रोजेक्ट बनने की तैयारी शुरू हुई. नाम रखा गया सेंट्रल मॉनिटरिंग सिस्टम. इस प्रोजेक्ट को लॉफुल इंटरसेप्शन के लिए प्लान किया गया जिसके तहत फोन और इंटरनेट को इंटरसेप्ट किया जा सकता था. इसके लिए C-DoT और दूसरी सरकारी एजेंसी की मदद ली गई.

तहलका मैगजीन की एक रिपोर्ट के मुताबिक सी डॉट और स्टेट टेलीकम्यूनिकेशन R&D सेंटर ने 2011-12 में दिल्ली में सेंट्रल मॉनिटरिंग सिस्टम के पायलट प्रोजेक्ट पर काम करने का आदेश दिया था. सीडॉट के रिजल्ट फ्रेमवर्क डॉक्यूमेंट के मुताबिक सीएमएस की लैब टेस्टिंग 2009-10 में ही कर ली गई थी.

दिसंबर 2012 में तब के MoS कम्यूनिकेशन और आईटी मिलिंद देवड़ा ने लोकसभा में कहा था, ‘इस सिस्टम का डेवेलपमेंट वर्क मोटे तौर पर पूरा हो चुका है. पायलट प्रोजेक्ट 30 सितंबर 2011 को दिल्ली में पूरा कर लिया गया जहां C-DoT ने दो ISF सर्वर इंस्टॉल किए थे’

यूपीए सरकार ने 2008 मुंबई अटैक के बाद इंटरनेट स्पेस को सिक्योर करने के लिए इस योजना की तैयारी की थी. बाद मे सरकार इंटरसेप्ट और मॉनिटर करने के अपने आईडिया के साथ नवंबर 2009 में राज्यसभा में कहा, ‘सरकार देश में मोबाइल फोन्स, लैंडलाइन और इंटरनेट कम्यूनिकेशन को मॉनिटर करने के लिए सेंट्रलाइज्ड सिस्टम प्रोपोज करती है. CMS को DoT द्वारा लागू किया जाएगा ताकि सिक्योरिटी बनी रहे’

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आपको बता दें कि ये पूरा प्रोजेक्ट PRISM के तर्ज पर था जिसे स्नोडेन के खुलासे के बाद अमेरिका ने आधिकारिक तौर पर बंद करने का ऐलान किया था. प्रिज्म प्रोजेक्ट में भी अमेरिका सहित कुछ दूसरे देशों के सिटिजन की निगरानी की जाती थी.

क्या ऐसे प्रोजेक्ट से, सिटिजन की जासूसी करने से कोई फायदा होता है?

इस पर कई सवाल हैं. एनएसए व्हिसिलब्लोअर एडवर्ड स्नोडेन के खुलासे के मुताबिक इस तरह के निगरानी प्रोजेक्ट से कलेक्ट किए गए डेटा में से सिर्फ 1.5 फीसदी डेटा नेशनल सिक्योरिटी के लिए अहम होता है.

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