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ग्रीनपीस इंडिया ने मंगलवार को कहा कि अपने कर्मचारियों के लिए फंड नहीं होने की वजह से एक महीने के भीतर वह ‘सन्निकट’ बंदी के कगार पर है.
ग्रीनपीस इंडिया के कार्यकारी निदेशक समित आइच ने कर्मचारियों से बंदी के लिए तैयार रहने को कहा. उन्होंने कहा कि देश में 14 साल रहने के बाद संगठन के संभावित बंदी के लिए तैयार रहने को कहा.
ग्रीनपीस इंडिया ने कहा, 'ग्रीनपीस इंडिया के पास अपने अस्तित्व के लिए लड़ने के लिए एक महीना बचा है और उसपर सन्निकट बंदी का खतरा मंडरा रहा है. एनजीओ के पास कर्मचारियों के वेतन और कार्यालय खर्च के लिए मात्र एक महीने का धन बचा है.' इसे चालाकी से गला घोंटना करार देते हुए वैश्विक हरित निकाय ने गृह मंत्री को मनमाना जुर्माना लगाना बंद करने की चेतावनी दी और इस बात को स्वीकार करने को कहा कि वह ग्रीनपीस इंडिया के सफल अभियानों की वजह से उसे बंद कराने का प्रयास कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि गृह मंत्रालय के उसके घरेलू बैंक खाते को ब्लॉक करने के फैसले से न सिर्फ उसके 340 कर्मचारियों का नुकसान होगा, बल्कि उसके अभियानों की अचानक मौत हो जाएगी, जिसने सतत विकास, पर्यावरण न्याय, स्वच्छ एवं वहनीय उर्जा के मुद्दों पर गरीबों की आवाज के तौर पर प्रतिनिधित्व करने का प्रयास किया था.
आइच ने कहा, 'मैंने अभी-अभी अपने जीवन का सबसे कठिन भाषण दिया, लेकिन मेरे कर्मचारी सच्चाई जानने के हकदार हैं. हमारे पास ग्रीनपीस इंडिया को पूरी तरह बंद किए जाने से बचाने और हमारे घरेलू खातों को ब्लॉक करने के गृह मंत्रालय के फैसले के खिलाफ लड़ने के लिए एक महीने का समय बचा है.'
वक्तव्य में कहा गया है कि विदेशी चंदा के आरोपों के बाद ग्रीनपीस इंडिया पर गृह मंत्रालय ने कई जुर्माने लगाए. सबको दिल्ली हाई कोर्ट ने पलट दिया. हालिया फैसला 77 हजार से अधिक भारतीय नागरिकों के दान के द्वारा वित्तपोषित घरेलू बैंक खाते तक पहुंच को रोकने का है.
सरकार ने इससे पहले ग्रीनपीस इंडिया के विदेश से चंदा लेने पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी थी और उसका लाइसेंस निलंबित कर दिया था. उसके सारे खातों से लेन-देन पर भी रोक लगा दी थी. उन्होंने आरोप लगाया कि उसने देश के सार्वजनिक और आर्थिक हितों को नुकसान पहुंचाया है.
ग्रीनपीस को सरकार ने एक कारण बताओ नोटिस भी जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि क्यों न उसके पंजीकरण को स्थायी तौर पर रद्द कर दिया जाए.
इनपुट: भाषा