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जीएसटी: व्यापारी नहीं, गरीबों की चिंता

भाजपा और सरकार ने जीएसटी पर बढ़ रहे विरोध को थामने के लिए मंत्रियों-सांसदों- नौकरशाहों को मैदान में उतार दिया है.

हसमुख अधिया और अरुण जेटली हसमुख अधिया और अरुण जेटली
संतोष कुमार
  • नई दिल्ली,
  • 17 जुलाई 2017,
  • अपडेटेड 6:33 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब 30 जून की मध्य रात्रि में संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में जीएसटी को गुड्स ऐंड सर्विस टैक्स की जगह गुड ऐंड सिंपल टैक्स कहा, तो वह सिर्फ नामकरण मात्र नहीं था. भाजपा कार्यकर्ताओं को संदेश था कि अब देश भर में गरीब जनता को यह समझाना है कि कैसे करों के मकडज़ाल से मुक्ति दिलाने के लिए मोदी सरकार जोखिम भरा लेकिन लगातार ऐतिहासिक कदम उठा रही है.

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लेकिन जिस तरह से भाजपा का गढ़ माने जाने वाले गुजरात में व्यापारी सड़कों पर हैं और देशभर में अन्य जगहों पर छिटपुट प्रदर्शन हो रहे हैं, उससे पार्टी चिंतित जरूर है. भाजपा के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, ''हम सत्ता में हैं और ''सबका साथ, सबका विकास" चाहते हैं. इसलिए कहीं भी नाराजगी होगी तो उससे चिंतित होना स्वाभाविक है. लेकिन इससे पार्टी में कोई घबराहट जैसी बात नहीं है." इत्मीनान महसूस कर रही भाजपा के पास इसकी वजह भी है. नोटबंदी के मामले में आर्थिक स्तर पर तमाम आलोचनाओं के बावजूद जिस तरह से ओडिशा के पंचायत चुनाव और उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव में भगवा परचम लहराया, उससे पार्टी का राजनैतिक मनोबल उफान पर है.

लेकिन भाजपा को यह डर भी सता रहा है कि पार्टी की छवि और वोटर बदलने की प्रक्रिया में कहीं कोर वोटर पूरी तरह से छूट न जाए. इसलिए वह रणनीतिक तौर पर गरीब हितैषी छवि बनाकर नया वोट बैंक लामबंद करने में जुटी तो है, साथ ही कोर वोट बैंक को समझाने में भी कसर नहीं छोडऩा चाहती. यही वजह है कि जीएसटी पर आधी रात के जश्न के बाद जिस तरह विरोध हो रहा है, उसे शांत करने के लिए 30 केंद्रीय मंत्रियों, 10 वरिष्ठ सांसदों और 180 संयुक्त सचिव और उससे वरिष्ठ नौकरशाहों की ड्यूटी लगाई गई है. इन सभी का देशव्यापी दौरा शुरू हो चुका है जिसे 10 अगस्त तक पूरा करना है. हालांकि मंत्रियों को 15 जुलाई तक एक-एक बार दौरा करने का निर्देश दिया गया है. जीएसटी कमिश्नर उपेंद्र गुप्ता ने मंत्रियों के दौरे की सूची के साथ 4 जुलाई को सभी जीएसटी अधिकारियों को अपने क्षेत्र में साथ रहने का निर्देश जारी किया है. इसके अलावा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने पार्टी नेताओं को मंडल स्तर तक जीएसटी पर कार्यशाला और संगोष्ठियां आयोजित करने का निर्देश दिया है. पार्टी से जुड़े चार्टर्ड अकाउंटेंट को भी निचले स्तर तक पहुंच कर व्यापारियों की समस्या का समाधान करने और समझाने को कहा गया है.

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दरअसल भाजपा की रणनीति के केंद्र में अब गरीब आ चुका है. 2014 के आम चुनाव में पार्टी अपने प्रदर्शन के मुकाम पर पहुंच चुकी है. ऐसे में अब उसे जनाधार बढ़ाना है तो अपनी पुरानी छवि तोडऩी ही होगी. सत्ता में आने के बाद भाजपा के रणनीतिकारों ने सामाजिक-आर्थिक जनगणना के आंकड़ों का गहरा अध्ययन किया. उसी के आधार पर सरकार में गरीबपरक योजनाओं को जमीन पर उतारने का सोच बना. उज्ज्वला योजना उसी कड़ी का हिस्सा थी, जो यूपी के चुनाव में भाजपा की बड़ी जीत का उसी तरह अहम फैक्टर साबित हुई, जैसी 2009 के आम चुनाव में यूपीए सरकार के लिए मनरेगा साबित हुई थी. भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और संसद में जीएसटी पर बनी सेलेक्ट कमेटी का नेतृत्व कर चुके भूपेंद्र यादव कहते हैं, ''नोटबंदी और जीएसटी कुल मिलाकर सराहनीय कदम है. बहुसंख्यक समाज व्यापार से जुड़ा है और हमारी चिंता यह है कि कैसे उनकी गतिविधि बढ़े. जीएसटी से व्यापार बढ़ेगा और उसमें खुलापन भी आएगा."

गरीबों को आजादी का एहसास

भाजपा की संगठन विस्तार नीति में प्रधानमंत्री मोदी का नोटबंदी के बाद दिल्ली में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में दिया मंत्र है. उन्होंने कहा था कि गरीब उनकी प्राथमिकता है. ऐसे में अगर व्यापारी वर्ग नाराज भी होता है तो पार्टी बहुत ज्यादा चिंतित नहीं दिखना चाहती. भाजपा के एक नेता के मुताबिक, व्यापारी समुदाय महज तीन फीसदी तक सीमित है, जबकि गरीब तबका बड़ा है और यह तबका मोदी सरकार के अमीरों पर नकेल कसने वाले कदमों की सराहना कर रहा है. भाजपा का मानना है कि नोटबंदी के बाद जीएसटी से काले धन पर नकेल लगेगी. यह भी कि इससे टैक्स का दायरा बढ़ेगा और अतिरिक्त राजस्व से सिंचाई, गरीबों के लिए मकान, छोटे व्यापारी, किसानों की मद में खर्च किया जा सकेगा. केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री अर्जुनराम मेघवाल कहते हैं, ''हम टैक्स का दायरा बढ़ाना चाहते हैं. आजादी के 70 साल बाद भी गांवों में आधारभूत ढांचे का अभाव है. इसलिए प्रधानमंत्री का सपना है कि 2022 तक जब देश आजादी की 75वीं वर्षगांठ मनाएगा, तब गांवों में भी आधारभूत ढांचा खड़ा हो और वहां का व्यक्ति भी आजादी को महसूस करे." भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट अरुण सिंह कहते हैं, ''2-3 महीने में सब सामान्य हो जाएगा. जीएएसटी बेहद सहज प्रणाली है और व्यापारियों को अधिकारियों की मनमानी से मुक्ति मिल जाएगी."

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जाहिर है, नोटबंदी का आर्थिक लेखाजोखा नहीं आ पाया है और जीएसटी को लेकर फिलहाल ऊहापोह का माहौल बना है. छवि और वोटर बदलने की प्रक्रिया में भाजपा दो पाटों में फंसती हुई दिख रही है. ऐसे में पार्टी के लिए कोर वोट बैंक को साधते हुए नए वोट वर्ग के बीच संतुलन बनाना चुनौती भरा है.

 

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