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अर्थात्: आ गया GST... जल्दी बड़े हो जाइये, छोटे रहना अब जोखिम भरा है

जीएसटी का यह सबसे कीमती संदेश है जिसे लाखों छोटे उद्यमियों और व्यापारियों को पूरे ध्यान से सुनना चाहिए, नहीं तो  परेशानी हो सकती है. अब बड़े होने में पूरा जतन लगा देना होगा क्योंकि सरकार छोटे रहने और छोटा कारोबार करने के लिए ज्यादा सुविधाओं के हक में नहीं है.

आ गया जीएसटी आ गया जीएसटी
अंशुमान तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 01 जुलाई 2017,
  • अपडेटेड 4:36 PM IST

जीएसटी का यह सबसे कीमती संदेश है जिसे लाखों छोटे उद्यमियों और व्यापारियों को पूरे ध्यान से सुनना चाहिए, नहीं तो  परेशानी हो सकती है. अब बड़े होने में पूरा जतन लगा देना होगा क्योंकि सरकार छोटे रहने और छोटा कारोबार करने के लिए ज्यादा सुविधाओं के हक में नहीं है.

आप असहमत हो सकते हैं लेकिन जीएसटी लगा रही सरकार को विश्वास है कि ...

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1. लघु, अनौपचारिक, असंगठित कारोबारों में टैक्स चोरी होती है. छोटे रहना टैक्स चोरी को सुविधाजनक बनाता है.

2. छोटी इकाइयों से टैक्स कम मिलता है और उसे जुटाने की लागत बहुत ज्यादा है.

3. इन्हें टैक्स के अलावा सस्ते कर्ज जैसी कई तरह की रियायतें मिलती हैं जिनकी लागत बड़ी है.

इसलिए जीएसटी ने देश के करीब पंद्रह करोड़ छोटे उद्योगों और व्या‍पारियों को एक झटके में बड़े उद्योगों के बराबर खड़ा कर दिया है. जीएसटी चर्चा से पहले, कुछ तथ्यों पर निगाह डाल लेना बेहतर होगा.

एडेलवाइस रिसर्च की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में लगभग 17 उद्योग, सेवाएं या कारोबार ऐसे हैं. 30 फीसदी से लेकर 90 फीसदी तक असंगठित क्षेत्र में हैं. खुदरा (रिटेल), यार्न व फैब्रिक और परिधान में 90 से 70 फीसदी उत्पाद या व्यापार असंगठित क्षेत्र में है. डेयरी, ज्वेलरी, प्लाइवुड, एयर कूलर, डाइज पिगमेंट्स, सैनिटरीवेयर, फुटवियर और  पैथोलॉजी सेवा का 50 से 70 फीसदी और लाइटिंग, पंप्स, बैटरीज में करीब 30 फीसदी उत्पादन छोटी इकाइयों में होता है.

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आइए, जीएसटी में छोटों के मतलब के तथ्य को देखते हैं

- जीएसटी से पहले लागू व्यवस्था के तहत 1.5 करोड़ रु. तक के सालाना कारोबार वाली उत्पादन इकाइयां एक्साइज ड्यूटी से बाहर थीं जबकि 10 लाख रु. के सालाना कारोबार पर सर्विस टैक्स से छूट थी.

- जीएसटी के तहत केवल 20 लाख रु. तक सालाना कारोबार करने वाली सेवा और उत्पादन इकाइयों को रजिस्ट्रेशन और रिटर्न से छूट मिलेगी.

 - 75 लाख रु. तक कारोबार करने वाले कंपोजिशन स्कीम का हिस्सा बन सकते हैं, इसके तहत निर्माताओं, व्यापारियों और रेस्तरांवालों को रियायती दर पर टैक्स देना होगा. तिमाही और सालाना रिटर्न भरने होंगे.

- जीएसटी के तहत अगर कोई रजिस्टर्ड इकाई, गैर रजिस्टर्ड इकाई से सामान लेती है तो उसका टैक्स और रिटर्न रजिस्टर्ड इकाई ही भरेगी.

जीएसटी के इन तीन प्रावधानों में छिपे संदेश को समझना जरूरी है.

 - 20 लाख रु. की छूट सीमा के जरिए बहुत ही छोटे कारोबारी जीएसटी से बाहर रहेंगे. कस्बों या शहरों के औसत कारोबारियों को जीएसटी अपनाना होगा.

छूट और कंपोजिशन स्कीम का सबसे कीमती पहलू यह है कि इन्हें अपनाने वाले कारोबारियों को इनपुट टैक्स क्रेडिट की सुविधा नहीं मिलेगी. यानी कि अपने उत्पादन के कच्चे माल या सेवा पर जो टैक्स उन्होंने चुकाया है, उसकी वापसी नहीं होगी.

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जीएसटी के तहत, इनपुट टैक्स क्रेडिट कारोबारी सफलता की बुनियाद बनने वाला है. चुकाए गए टैक्स की वापसी कारोबार के फायदे और प्रतिस्पिर्धा में टिकने का आधार होगी. जो उद्यमी या व्यापारी जीएसटी से बाहर होंगे उनके उत्पाद या सेवाएं, जीएसटी अपनाने वालों की तुलना में प्रतिस्पर्धात्मक नहीं रहेंगी. यह उम्‍मीद करना बेकार है कि बड़े टैक्सपेयर छोटी इकाइयों से माल खरीदकर उनका टैक्स (रिवर्स चार्ज) भरेंगे. हकीकत यह है कि जीएसटी के तहत पूरी उत्पाद चेन और वैल्यू एडिशन को संयोजित करने वाले ही फायदे में रहेंगे, इसलिए बड़ी कंपनियां सब कुछ चाक-चौबंद कर चुकी हैं.

सरकार को अच्छी तरह से मालूम है कि छोटे कारोबारी तकनीक, आदतों और सूचनाओं के नजरिए से जीएसटी के लिए तैयार नहीं हैं लेकिन आपकी दुकान तक पहुंचते-पहुंचते जीएसटी की परिभाषा बदल चुकी होगी. कारोबारी सहजता और मांग बढ़ाने के मकसद से शुरू हुआ यह सुधार टैक्स सतर्कता और चोरी रोकने की सबसे बड़ी कोशिश में बदल रहा है. कोई फर्क नहीं पड़ता कि जो आप यह निष्कर्ष निकालें कि जीएसटी बड़ी कंपनियों के लिए सुविधाजनक और फायदेमंद है. सरकार चाहती भी यही है कि असंगठित और अनौपचारिक क्षेत्र सिकुड़े और बड़ा बाजार बड़ों के ही पास रहे. इसलिए, जीएसटी को लेकर बिसू‍रना छोडि़ए. जल्द बड़े हो जाने में ही समझदारी है!

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