
यदि आप भी मानते हैं कि जीएसटी (गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स) के लागू होने के बाद कारोबार करना सांस लेने जितना आसान हो जाएगा और परतदार टैक्सों के जरिए बढऩे वाली महंगाई से मुक्ति मिल जाएगी, तो आप को एक बार केंद्र सरकार के मॉडल जीएसटी कानून को जरूर पढऩा चाहिए, जो जीएसटी का आधार बनेगा और जिसे संसद के आगामी सत्र में मंजूर कराने की कोशिश की जाएगी.
कर सुधार के तीन मकसद
हम जानते हैं कि सरकार के कानून कतई पठनीय नहीं होते. लेकिन कठिनता और पेच-परतों के बावजूद इस कानून को पढऩा जरूरी है. इसे पढ़कर ही यह पता चल सकेगा कि इस कानून से निकलने वाला जीएसटी भारत का सबसे बड़ा टैक्स सुधार नहीं बल्कि बड़ी मुसीबत बनने के खतरों से लैस है. जीएसटी कानून के मकडज़ाल में उतरते हुए यह याद रखना जरूरी है कि इस कर सुधार के तीन मकसद हैं: पहला, पूरे देश में दर्जनों टैक्स हैं जो भारत को एक कॉमन मार्केट बनाने में सबसे बड़ी बाधा हैं. जीएसटी से पूरे देश में उत्पादन, बिक्री और सेवाओं पर समान दर से एक टैक्स लगेगा और भारत एक निर्बाध बाजार में बदल जाएगा. दूसरा, भांति-भांति के टैक्स महंगाई बढ़ाते हैं, जीएसटी के तहत, कस्टम ड्यूटी के अलावा केंद्र और राज्यों के सभी इनडाइरेक्ट टैक्स (एक्साइज, सर्विस, वैट, चुंगी आदि) एक साथ मिलाए जाएंगे जिससे टैक्स की प्रभावी दर कम होगी. इसके तहत निर्माता और सेवा प्रदाताओं को, उत्पादन और सेवा के अलग स्तरों पर लगने वाले टैक्स वापस होंगे जिससे अंतिम उत्पाद या सेवा पर सिर्फ एक टैक्स लगेगा और महंगाई कम होगी. तीसरा, जीएसटी एक सहज टैक्स प्रशासन लेकर आएगा जिसमें कारोबार करना बेहद आसान हो जाएगा.
कारोबारियों की सबसे बड़ी सांसत
इन्हीं तीन वजहों से जीएसटी को लेकर उम्मीदों का सूचकांक हमेशा आसमान पर चढ़ा रहा. लेकिन इन उम्मीदों से प्रभावित कोई व्यक्ति अगर जीएसटी कानून को पढ़े तो वह इसमें आधुनिक टैक्स सिस्टम और कारोबार की सहजता तलाशता रह जाएगा. जीएसटी सबूत है कि सरकारें जो कह रही हैं, कानून उसका ठीक उलटा करने वाला है. इसमें एक नहीं बल्कि कई ऐसे प्रावधान हैं जो भविष्योन्मुखी और आधुनिक टैक्स ढांचा देने के बजाए मौजूदा टैक्स प्रणाली को ही कई साल पीछे धकेल सकते हैं. बानगी के लिए टैक्स पंजीकरण को ही लें जो कि टैक्सेशन का बुनियादी पहलू है और कारोबारियों की सबसे बड़ी सांसत है. यह कानून लागू हुआ तो दर्जनों टैक्स रजिस्ट्रेशन कराने होंगे. जीएसटी के प्रस्तावित तीन स्तरीय टैक्स (सेंट्रल, स्टेट, इंटीग्रेटेड) ढांचे के तहत पूरे देश में माल बेचने या सप्लाई करने वालों को हर राज्य में तीन अलग-अलग पंजीकरण कराने होंगे और अलग-अलग रिटर्न भरते हुए टैक्स का हिसाब रखना होगा.
जीएसटी कारोबार को कैसे आसान करेगा?
यही नहीं, अगर कोई कंपनी कई तरह के कारोबार करती है तो सभी कारोबारों का अलग-अलग पंजीकरण होगा. अब यह सरकार ही बता सकती है कि असंख्य रजिस्ट्रेशनों और रिटर्न की व्यवस्था के बाद जीएसटी कारोबार को कैसे आसान करेगा? हकीकत यह है कि जीएसटी में पंजीकरण का यही अकेला प्रावधान इस पूरे सुधार को पटरी से उतार देगा क्योंकि भारत में कर नियमों के पालन की लागत (कंप्लायंस कॉस्ट) पहले ही काफी ऊंची है, जो जीएसटी के बाद कई गुना बढ़ सकती है.
एक और प्रावधान काबिलेगौर है जो देश में अलग-अलग राज्यों में संचालन करने वाली कंपनियों या प्रतिष्ठानों पर भारी पड़ेगा. जीएसटी ऐक्ट के तहत अगर कोई कंपनी अपनी ही किसी शाखा या इकाई को माल या सेवा भेजती है तो इस पर टैक्स लगेगा. माल या सेवा पाने वाली इकाई इस टैक्स की वापसी के लिए बाद में दावा करेगी. यह प्रावधान जीएसटी से देश में कॉमन मार्केट बनने की उम्मीदों को भावभीनी श्रद्धांजलि है.
जीएसटी के मिलने वाले फायदों की राह में सबसे बड़ा रोड़ा
इनपुट टैक्स क्रेडिट जीएसटी की जान है, जिसके तहत उत्पादन या आपूर्ति के दौरान कच्चे माल या सेवा पर चुकाए गए टैक्स की वापसी होती है. यही व्यवस्था एक उत्पादन या सेवा पर बार-बार टैक्स का असर खत्म करती है पर इससे जुड़ा प्रावधान अनोखा है. जीएसटी ऐक्ट कहता है कि सप्लायर ने सरकार को टैक्स नहीं चुकाया है तो उस सेवा या कच्चे माल का इस्तेमाल करने वाला निर्माता टैक्स क्रेडिट का दावा नहीं कर सकेगा. यह प्रावधान जीएसटी के मिलने वाले फायदों की राह में सबसे बड़ा रोड़ा होगा. एक्साइज और सर्विस टैक्स कानूनों में जटिल परिभाषाओं और प्रावधानों के कारण सुप्रीम कोर्ट, हाइकोर्ट, ट्रिब्यूनलों और अपील कमिशनरों के पास 1.20 लाख से ज्यादा मुकदमे लंबित हैं. जीएसटी कानून में भी असंगतियों और पेचदार परिभाषाओं की बहुतायत है जो कानूनी जटिलताएं बढ़ाएंगी और मनमाने नोटिस भेजने का मौका देंगी.
सरकार जो भी दावा करे, जीएसटी के मॉडल ऐक्ट को पढ़ते हुए यह समझना मुश्किल नहीं कि अधिकारियों ने जीएसटी कानून को पुराने कस्टम, एक्साइज, सर्विसेज और वैट कानूनों की असंगतियों का पुलिंदा बना दिया है. उम्मीद यह थी कि जीएसटी के जरिए आधुनिक, सहज और दूरदर्शी टैक्स सिस्टम मिलेगा.
इस कानून को देखने के बाद जीएसटी में कारोबारी सहजता की उम्मीदें किनारे लग गई हैं. रही बात समेकित कर ढांचे की तो तीन स्तरीय जीएसटी में न स्टांप ड्यूटी शामिल होगी, न मोटर वेहिकल टैक्स और कुछ राज्यों में तो चुंगी शामिल होने पर भी शक है. पेट्रोल-डीजल पर लगने वाला टैक्स जीएसटी के अतिरिक्त होगा. मंदी, राज्यों के राजस्व में गिरावट और वेतन आयोग के कारण बढ़े खर्चों की वजह से जीएसटी की दर ऊंची ही रहनी है. इनडाइरेक्ट टैक्स की औसत दर इस समय 24 फीसदी है, इसे देखते हुए जीएसटी रेट 18 से 20 फीसदी के बीच रह सकता है जिसका मतलब है कि सर्विस टैक्स की दर में चार से छह फीसदी का इजाफा होगा और कई स्तरों पर उत्पाद शुल्क वैट भी बढ़ेगा.
जीएसटी की राजनीति नहीं बल्कि इसका अर्थशास्त्र, क्रियान्वयन और प्रशासन महत्वपूर्ण है. क्रांतिकारी सुधार दिखाने को बेचैन सरकार को इससे चाहे जो राजनैतिक उम्मीदें हों लेकिन जीएसटी जिस तरह आकार ले रहा है, वह आर्थिक अवसरों के बजाए पूरे टैक्स सिस्टम में असंगतियों और अराजकता के रास्ते खोल सकता है. उम्मीद है कि हमारे नेता इतने संवेदनशील सुधार को लेकर 'आ बैल मुझे मार' नहीं करेंगे.