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गुजरात की सियासी रणभूमि में कांग्रेस और बीजेपी के बीच तलवारें खिंच चुकी हैं. कांग्रेस जहां सत्ता में वापसी के लिए हाथ पांव मार रही है, तो वहीं बीजेपी अपनी सत्ता को बरकरार रखने की जद्दोजहद में है. चुनावी चर्चा के बीच पाटीदार छाए हुए हैं और ऐसा लगा रहा है जैसे इस चुनाव में सिर्फ पाटीदार आरक्षण ही मुद्दा है. लेकिन ऐसा जमीनी स्तर पर बिल्कुल नहीं है.
पाटीदार वोट सिर्फ 16 फीसदी
पाटीदारों को अपने पक्ष में करने के लिए कांग्रेस बीजेपी दोनों ही दिन रात एक किए हुए हैं. इसे देखकर लगता है कि गुजरात में सिर्फ पाटीदार समुदाय ही रहते हैं, बाकी नहीं. जबकि राज्य में पाटीदार समुदाय का महज 16 फीसदी वोट है बाकी 84 फीसदी वोट तो दूसरे समुदायों के ही हैं. लेकिन चर्चा सिर्फ पाटीदार पाटीदार पाटीदार की हो रही है, तो क्या बाकी समुदाय को लेकर राजनीतिक दलों के पास कोई फार्मूला है, या फिर उन्हें भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है?
गुजरात का जातीय समीकरण
गुजरात की सियासत में करीब 52 फीसदी अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) बेताज बादशाह है. राज्य में 146 जातियां ओबीसी की कटेगरी में आती हैं. इसमें क्षत्रिय करीब 16 फीसदी हैं. इसके अलावा 16 फीसदी पाटीदार समुदाय (सामान्य जाति में आता है) को गुजरात का किेंगमेकर कहा जाता है. गुजरात में 7 फीसदी दलित, 11 फीसदी आदिवासी, 9 फीसदी मुस्लिम और 5 फीसदी में सामान्य जाति के ब्राह्मण, बनिया और अन्य जातियां शामिल हैं.
बाकी समुदायों के क्या हैं मुद्दे?
गुजरात में सबसे दयनीय हालत दलित समुदाय की है. गुजरात में पिछले कुछ समय में दलितों के साथ ऐसे हमलों के कई मामले सामने आ चुके हैं. दलित उत्पीड़न के मामले तो गुजरात में आम हैं, लेकिन आगामी विधानसभा चुनावों में ये मुद्दा नहीं बन रहा है. जबकि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की साल 2015 की रिपोर्ट के मुताबिक़, अनुसूचित जाति के लोगों पर होने वाले अत्याचार, जिसमें गंभीर चोटें आई हों, ऐसे मामलों में गुजरात देश में दूसरे नंबर पर है.
किसान आत्महत्या के मामले में 9वें स्थान पर गुजरात
गुजरात के किसानों की हालत किसी से छिपी नहीं है. गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 'मॉडल स्टेट' गुजरात में 3 सालों (2013 से 2015) के बीच 1483 किसानों ने खुदकुशी की है. किसानों की खुदकुशी के मामले में गुजरात का देश में 9वां स्थान है. कर्ज की मार से दबे होने के चलते गुजरात में किसान खुदकुशी करने को मजबूर हो रहा है. इसके बावजूद किसानों का मुद्दा विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों उठाते हुए नजर नहीं आ रहे हैं.
गुजरात में पाटीदार
गुजरात में पाटीदार मतदाता करीब 16 फीसदी हैं. मौजूदा सरकार में करीब 40 विधायक और 7 मंत्री पटेल समुदाय से हैं. पाटीदार समाज बीजेपी का परंपरागत वोटर रहा है. 2014 में नरेंद्र मोदी के गुजरात के सीएम से देश का पीएम बन जाने के बाद से पाटीदारों पर बीजेपी की पकड़ कमजोर हुई है. हार्दिक पटेल के नेतृत्व में शुरू हुए पटेल आंदोलन ने बीजेपी की पकड़ को और कमजोर कर दिया है. हार्दिक पटेल बीजेपी के खिलाफ लगातार माहौल बनाने में जुटे हैं.
2012 में पटेलों की पहली पसंद बीजेपी
गुजरात में पटेलों में दो उप-समुदाय हैं. इनमें एक लेउवा पटेल और दूसरा कड़वा पटेल. हार्दिक, कड़वा पटेल हैं. केशुभाई पटेल लेउवा समुदाय से हैं.1990 के दशक से ही दो-तिहाई से ज्यादा पटेल, बीजेपी के पक्ष में वोट करते आए हैं. पाटीदार समुदाय में लेउवा का हिस्सा 60 फीसदी और कड़वा का हिस्सा 40 फीसदी है. कांग्रेस को कड़वा के मुकाबले लेउवा से ज्यादा समर्थन मिलता रहा है. पाटीदार समुदाय संगठित होकर मतदान करता है. पिछले चुनाव 2012 के आंकड़े को देखें तो लेउवा पटेल के 63 फीसदी और कड़वा पटेल के 82 फीसदी वोट बीजेपी को मिले थे. कड़वा पटेल से गुजरात के डिप्टी CM नितिन पटेल हैं, तो वहीं लेउवा पटेल समुदाय के बीजेपी ने जीतू बघानी को प्रदेश अध्यक्ष बना रखा है.
पाटीदारों को मनाने में जुटी बीजेपी
गुजरात के 2017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस-बीजेपी दोनों पाटीदार समुदाय को अपने-अपने पाले में करने के लिए हर संभव कोशिश में जुटे हैं. बीजेपी पाटीदारों की नाराजगी को दूर करने के लिए हाथ-पांव मार रही है. बीजेपी ने अपने डिप्टी CM नितिन पटेल और प्रदेश अध्यक्ष जीतू बघानी को लगा रखा है. दोनों पटेल नेताओं के नेतृत्व में बीजेपी ने सरदार पटेल के गांव करमसद से 'मिशन गुजरात' के लिए गौरव यात्रा भी निकाला था.
खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और पटेलों को साधने की कोशिश कर रहे हैं. गुजरात की बीजेपी सरकार ने पटेल समुदाय के आरक्षण के लिए आयोग को मंजूरी दी. इसके अलावा जिन पटेल समुदाय के लोगों पर आंदोलन की वजह से केस दर्ज हुआ था, उसे भी सरकार वापस लेने की बात कही थी. बीजेपी सरकार ने पाटीदार समुदाय के प्रतिनिधियों से बातचीत की और पाटीदारों को खुश करने के लिए कई कदमों का ऐलान किया है.
कांग्रेस भी पटेलों को जोड़ने की कवायद में लगी है. पिछले दिनों कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने गुजरात में अपना चुनावी आगाज पटेलों के दुर्ग सौराष्ट्र से किया. राहुल ने पटेलों का दिल जीतने के लिए सभी कवायद की. राहुल ने पटेल समुदाय को संबोधित करने से लेकर उनके आत्मगौरव माने जाने वाले बोडलधाम मंदिर तक में माथा टेका था. इसके अलावा हार्दिक पटेल ने कांग्रेस को समर्थन के देने के लिए कई शर्ते रखी, जिसमें से कांग्रेस ने आरक्षण को छोड़कर बाकी बातें मान ली थी.
आरक्षण को लेकर संवैधानिक रास्ता तलाश करने के लिए कांग्रेस ने अपने पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल को आगे किया. कपिल सिब्बल और पाटीदार नेताओं की बातचीत का पहले दौर की बैठक बुधवार की रात में हुई, जिसमें हार्दिक पटेल शामिल नहीं हुए, लेकिन पाटीदार आरक्षण समित से जुड़े हुए बाकी लोग शामिल थे. पाटीदारों ने सवाल उठाया कि पहले कांग्रेस साफ करे कि संवैधानिक तौर पर कैसे कांग्रेस पाटीदारों को आरक्षण दे सकती है. आरक्षण को लेकर 2 से 3 ऑप्शन कांग्रेस ने बताए हैं जिस पर पहले हार्दिक से और बाद में समाज से चर्चा करने के बाद फैसला लिया जाएगा कि कांग्रेस को समर्थन दें या नहीं.