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गुजरात में NCP के साथ नहीं लड़ेगी कांग्रेस, क्या बिगड़ सकता है खेल?

विधानसभा चुनाव नतीजों के आंकड़ों पर गौर करें तो तस्वीर धूमिल नजर आती है. एनसीपी ने 2002 में 81 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिनमें से 77 सीटों पर उसके उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. एनसीपी को महज 1.71 फीसदी वोट मिला.

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार
जावेद अख़्तर
  • नई दिल्ली,
  • 24 अगस्त 2017,
  • अपडेटेड 1:58 PM IST

गुजरात में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. दोनों प्रमुख पार्टियों ने अपनी रणनीति पर काम शुरू कर दिया है. इस बीच कांग्रेस ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के साथ मिलकर चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है.

गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी ने बुधवार को ही कहा कि कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनाव में एनसीपी के साथ गठबंधन नहीं करेगी. सोलंकी ने एनसीपी को बीजेपी की बी-पार्टी बताते हुए ये ऐलान किया.

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मगर, बड़ा सवाल ये है कि क्या कांग्रेस का एनसीपी के साथ चुनाव में न जाना उसे कोई नुकसान पहुंचा सकता है? या क्या फिर कोई ऐसी सूरत बनेगी, जो बीजेपी के विजयी रथ को आगे बढ़ाने में भूमिका निभा सकती है? इससे भी बड़ा सवाल ये कि क्या एनसीपी गुजरात में इतना दम-खम रखती है कि चुनाव नतीजों को प्रभावित कर सकती है?

विधानसभा चुनाव नतीजों के आंकड़ों पर गौर करें तो तस्वीर धूमिल नजर आती है. एनसीपी की स्थापना 1999 में हुई और पार्टी ने गुजरात में 2002 का विधानसभा चुनाव लड़ा. एनसीपी ने 81 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिनमें से 77 सीटों पर उसके उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. एनसीपी को महज 1.71 फीसदी वोट मिला.

2007 में मिलीं 2 सीट

2007 विधानसभा चुनाव में एक बार फिर एनसीपी ने हाथ आजमाया. इस चुनाव में एनसीपी ने सिर्फ 10 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे और पार्टी का प्रदर्शन काफी बेहतर रहा. एनसीपी उम्मीदवारों को कुल 1.65 फीसदी वोट मिले और पार्टी के 3 विधायक जीतकर आए.

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इसके बाद 2012 विधानसभा चुनाव में एनसीपी की परमोर्मेंस में गिरावट आई और महज 0.95 फीसदी वोट मिला. इस चुनाव में एनसीपी को 2 सीटें मिलीं.

आंकड़ों से साफ है कि 182 सीटों वाली गुजरात विधानसभा में एनसीपी खासी कमजोर है. मगर, पार्टी ज्यादा से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने की कोशिश करती है. कांग्रेस गुजरात की सत्ता से 20 साल से बाहर है, ऐसे में अगर एनसीपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ती है तो मुमकिन है पार्टी के वोट शेयर और सीटों में कुछ बढ़ोतरी हो जाए. हालांकि, 1995 में सत्ता से बेदखल होने के बाद कांग्रेस अब तक 60 सीटों का आंकड़ा भी नहीं छू पाई है. ऐसे में एनसीपी की 2 या 3 सीटों का सहारा भी उसे सत्ता के शिखर तक पहुंचा पाए, ऐसा संभव नजर नहीं आता.

अगर, बीजेपी को एनसीपी के समर्थन का अनुमान लगाया जाए तो ऐसी स्थिति में वो बीजेपी के लिए बोनस साबित हो सकता है.

हाल में हुए राज्यसभा चुनाव में भी एनसीपी के एक विधायक ने बीजेपी उम्मीदवार को वोट करने का दावा किया था. वहीं गुजरात में एनसीपी का अतीत भी बीजेपी की तरफ झुका नजर आता है. लिहाजा, प्रत्यक्ष रूप से गठबंधन में न सही, परोक्ष रूप से टीम-बी के रूप में भी अगर एनसीपी चुनावी समर में आती है, तो बीजेपी के लिए फायदेमंद ही साबित होगा.

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गुजरात में एनसीपी के अलावा जेडीयू, गुजरात परिवर्तन पार्टी और बहुजन समाज पार्टी भी बड़ी संख्या में सीटों पर हाथ आजमाती हैं. इन तीनों पार्टी के आंकड़ों को देखा जाए तो सीटों की संख्या में न के बराबर है, मगर वोट प्रतिशत दोनों में किसी भी पार्टी के नतीजों को प्रभावित कर सकता है. पिछले चुनाव में गुजरात परिवर्तन पार्टी ने 3.63 फीसदी और बहुजन समाज पार्टी ने 1.25 फीसदी वोट हासिल किए थे. वहीं जेडीयू को महज 0.67 फीसदी वोट मिले थे.

बहरहाल, अभी किसी प्रकार के गठबंधन की कोई घोषणा नहीं हो पाई है. मगर, लगातार कमजोर हो रही है कांग्रेस का छोटे दलों के साथ चुनावी मैदान में न जाना, उसकी स्थिति को और खराब कर सकता है.

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