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क्या मोदी के बाद राहुल भी बना रहे हैं गुजरात को अपनी सियासी प्रयोगशाला?

नरेंद्र मोदी के सियासी ऊभार में हिंदुत्व के फॉर्मूले को सबसे बड़ा कारण माना जाता है तो साथ ही सियासत में इसे बीजेपी का सफल प्रयोग भी कहा गया. अब राहुल गांधी भी गुजरात से अपनी सियासी पहचान बनाने की कोशिश में हैं.

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 15 नवंबर 2017,
  • अपडेटेड 1:00 PM IST

नरेंद्र मोदी के सीएम से देश का पीएम बनने तक के सफर में गुजरात की अहम भूमिका रही है. नरेंद्र मोदी के सियासी ऊभार में हिंदुत्व के फॉर्मूले को सबसे बड़ा कारण माना जाता है तो साथ ही सियासत में इसे बीजेपी का सफल प्रयोग भी कहा गया. 2002 में मोदी ने जिस हिंदुत्व कार्ड के जरिए गुजरात में अपनी पहचान बनाई और सत्ता में आए और एक दशक से अधिक समय तक लगातार सत्ता संभाली. 2014 में इसी प्रयोग को आगे बढ़ाते हुए मोदी राष्ट्रीय राजनीति में आए और फिर बीजेपी को ऐतिहासिक जीत दिलाई. अब राहुल गांधी भी गुजरात से अपनी सियासी पहचान बनाने की कोशिश में हैं.

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मोदी की इस जीत का श्रेय कहीं ना कहीं हिंदुत्व की राजनीति को दिया जाता है और गुजरात को इसकी प्रयोगशाला के तौर पर देखा गया. आज गुजरात फिर एक ऐसे ही मोड़ पर दिख रहा है. जहां केंद्र में हैं कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी. राहुल आने वाले दिनों में कांग्रेस की कमान संभालने वाले हैं और ताजपोशी से पहले उन्होंने गुजरात को अपनी सियासी प्रयोगशाला बनाने में जुटे हुए हैं.

राहुल गांधी गुजरात की धरती पर लगातार सियासी प्रयोग करते दिख रहे हैं. राहुल एक तरफ मोदी के हिंदुत्व की राजनीति की काट करने की कोशिश है तो वहीं राष्ट्रीय राजनीति की ओर से ले जाने वाले सियासी मुद्दों का लिटमस टेस्ट भी होता दिख रहा है.

राहुल का मुस्लिम तुष्टिकरण से तौबा

गुजरात से राहुल गांधी बीजेपी द्वारा कांग्रेस पार्टी पर लगाए गए 'हिंदू विरोधी' और 'अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण' जैसे आरोपों के जवाब देने की कोशिश कर रहे हैं. दरअसल 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार की एक बड़ी वजह एंटनी कमेटी ने हिंदू विरोधी छवि मानी थी. राहुल ने गुजरात यात्रा के जरिए कांग्रेस की हिंदू विरोधी छवि को तोड़ने की कवायद की है. गुजरात में राहुल को देखकर यही लगता है कि उन्होंने तुष्टिकरण से तौबा कर लिया है.

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मुस्लिम बहुल इलाकों में होनी वाली कांग्रेस की रैलियों में राहुल के साथ संत महंत मंच पर नजर आते हैं. राहुल का काफिला जिस रास्ते से गुजरता है उस रास्ते में पड़ने वाली किसी मस्जिद पर न वो रुकते हैं और नही माथा टेकते हैं. इतना ही नहीं राहुल ने गुजरात में अभी तक के अपनी चारों यात्राओं के दौरान मुस्लिमों के मुद्दे पर बोलने से बचते नजर आए.

सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर

बीजेपी ने करीब बीस साल पहले हिंदुत्व कार्ड के जरिए कांग्रेस की हाथों से सत्ता छीनी थी. इसके बाद कांग्रेस आज तक गुजरात में वापस सत्ता में नहीं आ सकी. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी बीजेपी के हिंदुत्व राजनीति के हथियार से ही बीजेपी को मात देने की जुगत में हैं. गुजरात में राहुल गांधी ने सॉफ्ट हिंदुत्व की राह को अपनाया है. राहुल ने नवसृजन यात्रा की शुरुआत सौराष्ट्र के द्वारकाधीश मंदिर में पूजा-अर्चना के साथ की. राहुल गले में भगवा फटका डाले और माथे पर तिलक लगाए नजर आते हैं.

राहुल ने गुजरात के सभी प्रमुख मंदिरों में जाकर दर्शन किया. राहुल पहाड़ी पर स्थित देवी मां चामुंडा के दर्शनों के लिए बिना रुके ही 15 मिनट में एक हजार सीढ़ियां चढ़ गए थे. राहुल का ट्विटर एकाउंट मंदिरों में दर्शन वाले उनकी फोटो से भरा पड़ा है. राहुल के मंदिरों में माथा टेकने से बीजेपी बेचैन है और उनके मंदिरों में जाने पर भी सवाल उठा रही है. राहुल इसके जवाब में कहते हैं वे शिवभक्त हैं.

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मंडल से कमंडल की काट

गुजरात में राहुल गांधी ने मोदी के उस ट्रंप कार्ड की काट खोजी जिसने 2014 के चुनावों में कांग्रेस को कमोबेश हाशिए पर लाकर खड़ा कर दिया. यानी हिंदू कार्ड का जवाब जातीय कार्ड से. राहुल मंडल से कमंडल की काट को उतरे हैं. बीजेपी के लिए सबसे मुश्किल बात यह है कि जातिगत राजनीति उसे रास नहीं आती है. बिहार का विधानसभा चुनाव इसका उदाहारण है. यही वजह है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने बिहार की तर्ज पर गुजरात के सियासी रण को जीतने के लिए जातीय कार्ड खेला है.

1985 में माधवसिंह सोलंकी ने जातीय का समीकरण ऐसा बनाया जिसके जरिये कांग्रेस को जो जीत दिलायी थी वो किसी भी पार्टी के लिए गुजरात में अब तक की सबसे बड़ी जीत थी. राहुल गांधी ने गुजरात में बीजेपी से सत्ता छीनने के लिए गुजरात में पाटीदार, ओबीसी, और दलित व आदिवासी मतों को साधने की जुगत की है. इन तीनों समाज के मतों को देखें तो करीब 70 फीसदी से ऊपर की हिस्सेदारी है.

राहुल ने गुजरात में जाति आंदोलन से निकले त्रिमूर्ति अल्पेश, जिग्नेश और हार्दिक को गले लगाया है. कांग्रेस के जातीय कार्ड से बीजेपी में बेचैनी बढ़ी है. नरेंद्र मोदी को गुजरात में कहना पड़ा कि जातिवाद के बहकावे में ना आए, जातिगत मुद्दों से देश के विकास में रुकावट आएगी.

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गुजरात विधानसभा चुनाव के सियासी रणभूमि को राहुल ने अपनी सियासी प्रयोगशाला बनाया है. ऐसे मे राहुल गुजरात की रण को अपने राजनीतिक फॉर्मूले से कामयाबी हासिल करते हैं, तो इन्हीं फॉर्मूले को लेकर देश भर में बीजेपी के मुकाबला करने उतरेगी.

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