
गुजरात में चुनाव प्रचार खत्म हो चुका है. काफी कड़वी चुनावी लड़ाई के बाद अब गुरुवार शाम तक गुजरात के वोटर बीजेपी और कांग्रेस दोनों की तकदीर ईवीएम में सील कर देंगे. सोमवार को सुबह 11 बजे तक हाल के वर्षों के सबसे प्रतीक्षित विधानसभा चुनाव के नतीजों की तस्वीर साफ हो जाएगी. इंडिया टुडे टीवी के कंसल्टिंग एडिटर और लोकप्रिय प्राइम टाइम शो न्यूज टुडे के होस्ट राजदीप सरदेसाई ने राज्य की राजनीतिक धड़कन को समझने के लिए पूरे गुजरात का दौरा किया. अपनी गहन चुनावी रिपोर्टिंग के आधार पर वे बता रहे हैं गुजरात चुनाव की 10 मुख्य बातें:
1. मोदी का जादू:
नरेंद्र मोदी का गुजरातियों के दिल पर राज कायम है. उन्होंने राज्य में मुख्यमंत्री के रूप में लगातार तीन चुनाव लड़े और जीते हैं. आज वह मुख्यमंत्री पद के लिए नहीं लड़ रहे, फिर भी यह चुनाव उनके करिश्मे पर ही लड़ा जा रहा है. गुजरातियों से उनका जिस तरह से जुड़ाव है, वैसा किसी भी और नेता का नहीं.
2. राहुल का नया अवतार:
करीब एक दशक से जूझ रहे और राजनीति में अनिच्छा से काम करते दिख रहे राहुल गांधी को नया रूप मिल गया है. वह जिस ऊर्जा से गुजरात चुनाव लड़ रहे हैं, उससे उनके तमाम आलोचक भी चकित हो गए हैं. अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी जैसे बोल्ड तो वह नहीं हैं, लेकिन एक बड़े वक्ता की जगह एक अच्छे श्रोता होने के अपने नरम, उदार रवैए से उन्होंने लोगों के दिल में जगह बनाई है. यदि वह अपने इस उभार को वास्तव में वोटों में बदल पाए, तो 2019 में एक तगड़ी लड़ाई देखने को मिल सकती है.
3. एक्स फैक्टर:
पटेलों के गढ़ में एक नया नेता उभरा है और वह इस चुनाव का एक्स फैक्टर यानी चौंकाने वाली खास ताकत बन चुका है. हार्दिक पटेल लड़ाई को सड़कों पर ले जाने वाला एक ऐसा योद्धा बन गया है, जिसने बीजेपी के लिए लड़ाई एकतरफा होने को असंभव बना दिया. कांग्रेस को अपने उभार का काफी हद तक श्रेय हार्दिक पटेल को देना होगा. उनके अंदर ममता बनर्जी जैसा लगातार लड़ने का जुझारूपन, केजरीवाल जैसा अक्खड़पन और बाल ठाकरे जैसी तेज धार वाली वाकपुटता है. वह आज के मुताबिक ताकत और भविष्य के नेता हैं.
4. गुजरात मॉडल:
गुजरात मॉडल पर सवाल खड़ा हो गया है. इस चुनाव ने गुजरात के विकास पर इतनी रोशनी डाल दी है जितनी पहले कभी नहीं थी, इस वजह से इसकी खामियां भी उजागर हो गई हैं. जी हां, गुजरात ने भौतिक बुनियादी ढांचे के निर्माण की दिशा में अच्छा काम किया है, लेकिन सामाजिक और सेवा क्षेत्र में उसका प्रदर्शन खराब है. शिक्षा और सेहत पूरी तरह से निजी हाथों को सौंप देने की वजह से मोदी का गुजरात मॉडल हास्यास्पद बन गया है. इसलिए 'विकास गांडो थायो' बनाम 'हू विकास छूं' की लड़ाई में अवधारणा की लड़ाई बहुत निचले स्तर तक पहुंच गई है.
5. विभाजन का खेल:
राज्य में गांवों और शहरों में बहुत फर्क हो गया है. शहरों में चमकदार नए फ्लाईओवर और ऊंची इमारतें दिखती हैं, तो ग्रामीण गुजरात में काफी पिछड़ापन है. ऐसा लगता है कि पटेल फैक्टर के बावजूद शहरों की ज्यादातर सीट पर बीजेपी जीत जाएगी, लेकिन ग्रामीण गुजरात रियायत बरतने वाला नहीं है. राज्य में पंचायत व्यवस्था काफी पहले टूट चुकी है. किसान परेशान हैं और गांवों में पढ़े-लिखे या अनपढ़ दोनों तरह के युवाओं में बेरोजगारी का आलम है.
6. आर्थिक मसले:
गुजराती जीएसटी और नोटबंदी को अपनाने के लिए तैयार था, लेकिन तब जब 'कारोबार प्रभावित न होता.' छोटे और मझोले उदयमों में गुजराती कारोबारी के लिए नोटबंदी और जीएसटी दोहरी मार साबित हुए हैं. गुस्सा शायद इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि कारोबार अनुकूल माने जाने वाले गुजराती पीएम की सरकार उनकी शिकायतें सुनने को तैयार नहीं है. यह गुस्सा एक गुमनाम टाइप के सीएम द्वारा चलाई जा रही सरकार के खिलाफ जा सकता है.
7. मुसलमान कोई मसला नहीं:
मियां मुशर्रफ से लेकर मुगलों, मियां अहमद पटेल और सलमान निजामी तक, शायद ही किसी राज्य में समुदायों के ध्रुवीकरण की इस तरह से आसान और वैधानिक कोशिश हुई हो, जैसी कि गुजरात में हुई. इन सबके बावजूद गुजरात की जनसंख्या में 10 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले मुसलमानों की कोई बात नहीं कर रहा. यहां तक कि कांग्रेस ने भी इस बार चुनाव में एक बार भी 2002 की चर्चा नहीं की और राहुल गांधी मंदिर-मंदिर दर्शन के लिए जाते रहे.
8. जाति की राजनीति:
गुजरात में जाति की राजनीति एक अलग तरह की है. यहां जाति तो महत्वपूर्ण है, लेकिन दलों के आधार पर बांटने वाली नहीं है. पटेलों की एकजुटता हार्दिक पटेल के पीछे दिख रही है, हालांकि उनका एक वर्ग बीजेपी को वोट देगा. सौराष्ट्र के कोली दक्षिण गुजरात के कोलियों से अलग वोट कर सकते हैं, दलित और आदिवासी भी बंटे हुए हैं और ओबीसी शायद अल्पेश ठाकोर के मुताबिक न चलें. जिस तरह से बीजेपी को अपने विस्तार के लिए हिंदुत्व प्लस की जरूरत पड़ती है, उसी तरह से कांग्रेस को अपने मतदाता आधार को बढ़ाने के लिए कास्ट प्लस राजनीति की जरूरत है.
9. कौन जीतेगा गुजरात:
सबसे बड़ा सवाल यही है कि गुजरात कौन जीतेगा? लेकिन यह काफी जटिल सवाल है. करीब दो दशकों से गुजरात बीजेपी का मजबूत किला रहा है. अमित शाह ने राज्य में बूथ कार्यकर्ता से लेकर शीर्ष तक एक मजबूत संगठन बनाया है. गुजरात मोदी-शाह का घरेलू मैदान है. कांग्रेस ने भी अब इस पर काम करना शुरू किया है. कांग्रेस के लिए फायदे की बात यह है कि सरकार के खिलाफ एक तरह का अंडरकरेंट है. तो कौन जीतेगा, इस सवाल का जवाब 18 से पहले मिलना असंभव है.
10. सत्यईवीएम जयते:
तमाम शिकायतों के बावजूद किसी मजबूत और अटूट साक्ष्य के अभाव में ईवीएम टैम्परिंग की शिकायत हौआ ही साबित हो रही है. हारने वाले ही ईवीएम में छेड़छाड़ की शिकायत करते रहे हैं और भारत की बहुदलीय लोकतांत्रित व्यवस्था में आज कोई दल किसी राज्य में जीतता है तो दूसरा दल दूसरे किसी राज्य में जीत सकता है.