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क्या ‘विकास पागल हो गया है’ पर भारी पड़ेगी चिदंबरम की चूक?

देश की राजनीति में और भी ऐसे कई मौके आए हैं. जब किसी नेता या विशिष्ट व्यक्ति के मुंह से निकले कुछ शब्द ऐसे उलटे पड़े कि पूरा चुनाव ही सफाई देने में गुजर गया, लेकिन भरपाई नहीं हो पाई और नतीजा हार के तौर पर देखना पड़ा. 

गुजरात चुनाव गुजरात चुनाव
सुरभि गुप्ता/खुशदीप सहगल/बालकृष्ण
  • नई दिल्ली,
  • 30 अक्टूबर 2017,
  • अपडेटेड 11:43 PM IST

‘अच्छे दिन आने वाले हैं’…इस अकेले जुमले का 2014 लोकसभा चुनाव में देश भर में लोगों पर ऐसा जादू चला कि नरेंद्र मोदी की आंधी के सामने तमाम विरोधी नेताओं के तंबू तिनके की तरह उड़ गए.

अब याद कीजिए 'मौत का सौदागर' वाला वो जुमला जिसे 2007 गुजरात विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने नरेंद्र मोदी पर निशाना साधने के लिए इस्तेमाल किया था. सोनिया के इसी जुमले को मोदी और बीजेपी ने गुजरातियों की अस्मिता के साथ ऐसे जोड़ा कि चुनाव नतीजे में कांग्रेस चारों खाने चित नजर आई.

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ये दोनों मिसाल सिर्फ इसलिए दी गईं कि चुनाव में सिर्फ एक नारा, एक जुमला, एक मुद्दा, एक बयान ही कभी-कभार ऐसे लोगों की जुबान पर चढ़ जाते हैं कि पूरे चुनाव का रुख ही पलट डालते हैं.  

देश की राजनीति में और भी ऐसे कई मौके आए हैं. जब किसी नेता या विशिष्ट व्यक्ति के मुंह से निकले कुछ शब्द ऐसे उलटे पड़े कि पूरा चुनाव ही सफाई देने में गुजर गया, लेकिन भरपाई नहीं हो पाई और नतीजा हार के तौर पर देखना पड़ा.   

याद कीजिए बिहार विधानसभा का पिछला चुनाव. उसी वक्त संघ प्रमुख मोहन भागवत का आरक्षण खत्म करने की वकालत का आभास देने वाला बयान. इस बयान ने उस चुनाव में बीजेपी की लुटिया डुबो दी.

इंदिरा गांधी ने जब 1971 के  लोकसभा चुनाव में ‘गरीबी हटाओ, देश बचाओ’ का नारा दिया तो लोगों ने उसे हाथोंहाथ लिया. इस नारे ने कांग्रेस के लिए ऐसी संजीवनी का काम किया कि पार्टी आगे भी इसे कई राज्यों के चुनाव में भुनाती रही.   

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जुमला, नारा या बयान गलत निशाने पर बैठ जाए तो चुनाव में पार्टियों को लेने के देने भी पड़ जाते हैं. ‘मौत का सौदागर’ वाले बयान का कांग्रेस के लिए क्या हश्र हुआ, ये ऊपर बताया जा चुका है. ऐसा ही ‘आत्मघाती गोल’ राहुल गांधी ने इसी साल संपन्न हुए यूपी विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान भी किया. बॉर्डर पर सर्जिकल स्ट्राइक से देशभक्ति का जोश लोगों में भरा हुआ था और बीजेपी उसे भुनाने में लगी हुई थी. उसी वक्त राहुल गांधी ने एक चुनावी सभा में कह डाला कि ‘मोदी जवानों के खून की दलाली कर रहे हैं.’  बताने की जरूरत नहीं कि यूपी में कांग्रेस को दोबारा मजबूत करने के प्रशांत किशोर के सारे नुस्खे धरे के धरे रह गए. यूपी के जो नतीजे आए उनमें कांग्रेस की दुर्गति तो हुई सो हुई, ‘यूपी के लड़के’ का नारा राहुल के साथ समाजवादी पार्टी के जिन युवा कर्णधार अखिलेश यादव के लिए दिया गया था, उनकी पार्टी को भी करारी शिकस्त का मुंह देखना पड़ा.   

गुजरात विधानसभा चुनाव दिसंबर में होने वाले हैं. इसी को लेकर पिछले दिनों ‘विकास गांडो थायो छे’ यानी ‘विकास पागल हो गया है ’ का नारा सोशल मीडिया पर ऐसा उछला कि बीजेपी नेताओं को जवाब देने में पसीने आने लगे. यहां तक कि प्रधानमंत्री मोदी को इसकी काट के लिए नारा देना पड़ा ‘हूं विकास छुं, हूं गुजरात छुं’ (मैं विकास हूं, मैं गुजरात हूं).

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अभी विकास पर राजनीतिक कुश्ती के दांव जारी ही थे कि पूर्व गृह मंत्री और कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने गुजरात में जा कर ही राजकोट में ऐसा बयान दे डाला कि बीजेपी की जैसे मुराद पूरी हो गई. चिदंबरम ने कहा- ‘कश्मीर में जब लोग आजादी की बात करते हैं तो उनकी चाहत स्वायत्तता की होती है और कश्मीर घाटी में अनुच्छेद 370 का अक्षरश: सम्मान करने की मांग की जाती है. जिसका मतलब है कि लोग ज्यादा स्वायत्तता की मांग कर रहे हैं.’

गौर से देखा जाए तो बीजीपी चुनाव में भगवा रंग घोलने की कोशिश में पहले से ही जुटी थी. याद कीजिए 20 अक्टूबर को केदारनाथ मंदिर के सामने रैली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संबोधन. पूरे माथे पर केसरिया चंदन, गले में रुद्राक्ष की माला के साथ मोदी का 40 मिनट लंबा भाषण. मोदी भाषण बेशक उत्तराखंड की देवभूमि से दे रहे थे लेकिन उनकी निगाहें गुजरात के लोगों पर ही थीं, जिनके लिए केदारनाथ धाम परम पूज्य मंदिर है.

दिवाली पर ‘मेगा अयोध्या शो’, सरयू के किनारे प्रज्ज्वलित 1 लाख 71 हजार दीयों का विश्व रिकॉर्ड, राम की विशाल प्रतिमा की बात, हेलिकॉप्टर से उतरते ‘राम, लक्ष्मण, सीता’ का मुख्यमंत्री योगी की ओर से स्वागत...ये सब कुछ संयोग नहीं है. गुजरात से बड़ी संख्या में हिंदू तीर्थयात्री अयोध्या आते हैं. लेकिन अयोध्या से गुजरात का इतना ही नाता नहीं है. 2002 में गोधरा ट्रेन कांड में जो लोग जलकर मरे थे उनमें से ज्यादातर अयोध्या से लौट रहे तीर्थयात्री ही थे.  

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गुजरात के सूरत से पकड़े गए कथित आतंकवादी का कांग्रेस के दिग्गज नेता अहमद पटेल से अस्पताल का नाम लेकर बीजेपी की ओर से जिस तरह जुड़ाव दिखाने की कोशिश की गई या फिर चुनाव के दौरान गुजरात में जिस तरह मुंबई हमले जैसी आशंका जताई जा रही है, ऐसा नहीं कि कांग्रेस के नेता हवा का रुख समझ नहीं रहे हैं. राहुल गांधी बार- बार गुजरात के मंदिरों में दर्शन करने यूं ही नहीं जा रहे हैं. अब ये बात दूसरी है कि जब ‘कट्टर हिंदुत्व’ का दांव फेंका जाता है तो कांग्रेस के ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ का नुस्खा कागज की तरह उड़ जाता है.

बीजेपी नेता लगातार ये कहते रहे हैं कि उनके सबसे सम्मानित नेताओं में से एक श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाने के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत कश्मीर की जेल में हुई थी, जहां वो कश्मीर को विशेष दर्जा दिए जाने के खिलाफ प्रदर्शन करने गए थे. कश्मीर में आए दिन भारतीय जवानों के बलिदान के बीच चिदंबरम को जाने क्या सूझी कि वो गुजरात जाकर ऐसा बयान दे आए जबकि वो खुद गृह मंत्री रह चुके हैं.

मामले की नजाकत को समझते हुए कांग्रेस ने फौरन चिदंबरम के बयान से पार्टी को अलग किया. लेकिन क्या बीजेपी गुजरात चुनाव में इतनी आसानी से लोगों को इसे भूलने देगी? जब कश्मीर में देश के सपूतों की शहादत का हवाला देकर बीजेपी चुनावी मैदान में बार-बार चिदंबरम के बयान को दोहराएगी, तो उसके सामने ‘विकास पागल हो गया है’ का नारा मजबूती से टिका रहता है या नहीं, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा.

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